Delhi: 122 वर्षों में सबसे गर्म रहा साल 2022, ला नीना इफेक्ट को धता बता रही ग्लोबल वॉर्मिंग
मौसम विज्ञान विभाग ने साल 2022 को 122 वर्षों में सर्वाधिक गर्म करार दिया है। इस बार की सर्दियों को भी उल्लेखनीय बर्फबारी एवं वर्षा के अभाव में खासा गर्म बताया गया है। गैर सरकारी संगठन क्लाइमेट ट्रेंड ने इसके लिए ला नीना को प्रमुख वजह बताया है।
By sanjeev GuptaEdited By: Abhi MalviyaUpdated: Thu, 09 Mar 2023 08:24 PM (IST)
नई दिल्लू, राज्य ब्यूरो। मौसम विज्ञान विभाग ने साल 2022 को 122 वर्षों में सर्वाधिक गर्म करार दिया है। इस बार की सर्दियों को भी उल्लेखनीय बर्फबारी एवं वर्षा के अभाव में खासा गर्म बताया गया है। गैर सरकारी संगठन क्लाइमेट ट्रेंड ने इसके लिए ला नीना और पश्चिमी विक्षोभ के बदले पैटर्न को प्रमुख वजह बताया है। एक नए विश्लेषण के अनुसार नवंबर और दिसंबर में बरसात और बर्फबारी की कोई खास घटना दर्ज नहीं की गई। पश्चिमी हिमालय में बर्फबारी व वर्षा के कुछ अच्छे दौरों के साथ जनवरी की शुरुआत अच्छी रही। इससे गंगा के मैदानी इलाकों में शीतलहर भी चली, लेकिन फरवरी ने दिसंबर के समान मार्ग का अनुसरण किया, जिसने इसे फिर से रिकार्ड सूची में शामिल किया।
विश्लेषण बताता है कि उत्तर पश्चिम, मध्य, पूर्व और पूर्वोत्तर भारत में काफी हद तक सर्दियों की वर्षा नहीं हुई। बंगाल की दक्षिण खाड़ी में कुछ कम दबाव वाले क्षेत्रों के बनने के कारण दक्षिण प्रायद्वीप में ही कुछ वर्षा दर्ज की गई, लेकिन उनका प्रभाव भी केवल दक्षिणी भागों तक ही सीमित था।
सर्दियों के प्रमुख महीनों के दौरान देशव्यापी कमी में काफी योगदान मध्य भारत और उत्तर पश्चिम भारत से रहा। दिसंबर से फरवरी तक दोनों क्षेत्रों में अत्यधिक कम वर्षा रही थी। हालांकि, जम्मू- कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के पहाड़ी राज्यों में थोड़े अच्छे समय के कारण जनवरी में कुछ राहत मिली।
मौसम विज्ञानियों के अनुसार, तापमान और वर्षा में विसंगति मौसम के पैटर्न में बदलाव का परिणाम है। सर्दी के मौसम में पश्चिमी विक्षोभ की तीव्रता और आवृत्ति काफी कम रही है। पश्चिमी विक्षोभ मौसम की गतिविधियों को चलाने और उत्तर पश्चिम एवं और मध्य भारत के आस-पास के क्षेत्रों में सर्दियां लाने के लिए जाना जाता है। हालांकि, जनवरी में अच्छी संख्या में सक्रिय पश्चिमी विक्षोभ देखे गए, लेकिन भारत-गंगा के मैदानी क्षेत्रों के मौसम पर कोई प्रभाव नहीं डाल सके। वैज्ञानिकों और मौसम विज्ञानियों के बीच इस पर भी सहमति है कि यह जलवायु परिवर्तन का युग है।
ला नीना की समुद्री घटना को धता बताती ग्लोबल वार्मिंग
ला नीना को एक समुद्री-वायुमंडलीय घटना के रूप में परिभाषित किया गया है, जिसमें समुद्र की सतह से ठंडे पानी के ऊपर उठने के कारण भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर में पानी का तापमान सामान्य से अधिक ठंडा हो जाता है। ला नीना का उत्तर भारत में सर्दियों की वर्षा से संबंध है। हालांकि, ला नीना के व्यवहार पैटर्न के लिए कोई नियम पुस्तिका नहीं है।
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- -उत्तर भारत में सर्दी के मौसम की वर्षा सामान्य से कम
- -पश्चिमी हिमालय पर सामान्य से कम हिमपात
- -मैदानी इलाकों में सर्दियों के तापमान का सामान्य से कम होना
- -उत्तर भारत में दीर्घकालीन शीत ऋतु (विस्तारित सर्दियां)