दिल्लीवासियों के लिए राहत की खबर, गर्मी और बारिश का कर सकेंगे मुकाबला; इस साल लागू हो सकता है नया क्लाइमेट एक्शन प्लान
इस साल दिल्ली भी चरम मौसमी घटनाओं से व्यापक स्तर पर प्रभावित हुई है। राष्ट्रीय राजधानी में 13 मई से लगातार 40 दिन तक अधिकतम तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से ऊपर दर्ज किया गया। मई के आखिर में मुंगेशपुर तथा नरेला में पारा 49.9 डिग्री सेल्सियस तक जा पहुंचा। भीषण गर्मी के कारण शहर में 60 लोगों की मौत भी हुई।
राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली। अप्रत्याशित भीषण गर्मी और भारी वर्षा का सामना करने के बाद दिल्ली में जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने के लिए इस साल से नया एवं बहुप्रतीक्षित क्लाइमेट एक्शन प्लान लागू किया जा सकता है। आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि इस प्लान का अंतिम मसौदा तैयार है और उसे दिल्ली सरकार के पर्यावरण मंत्री की मंजूरी का इंतजार है। इसके बाद उसे केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय को भेजा जाएगा।
इस साल दिल्ली भी चरम मौसमी घटनाओं से व्यापक स्तर पर प्रभावित हुई है। राष्ट्रीय राजधानी में 13 मई से लगातार 40 दिन तक अधिकतम तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से ऊपर दर्ज किया गया। मई के आखिर में मुंगेशपुर तथा नरेला में पारा 49.9 डिग्री सेल्सियस तक जा पहुंचा। भीषण गर्मी के कारण शहर में 60 लोगों की मौत भी हुई। दूसरी तरफ 28 जून को हुई मूसलाधार वर्षा के कारण 11 लोगों की जान चली गई तथा संपत्ति को भी खासा नुकसान हुआ।
सात साल तक की परिश्रम का नतीजा है कार्य योजना
भारत ने 2008 में जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (एनएपीसीसी) पेश की थी। इसके बाद राज्य सरकारों से कहा गया था कि वे राष्ट्रीय रणनीतियों के तहत जलवायु परिवर्तन पर राज्य स्तरीय कार्य योजना (एसएपीसीसी) तैयार करें। साल 2010-2019 की अवधि के लिए दिल्ली की पिछली जलवायु कार्ययोजना को सात साल तक पक्षकारों के साथ सलाह-मशविरा के बाद 2019 में अंतिम रूप दिया गया था और यह अब पुरानी हो गई है।
नई योजना पर काम 2021 में शुरू हुआ और पहला मसौदा 2022 में पूर्ण हुआ। बताया जा रहा है कि बातचीत और योजना को अंतिम रूप देने में करीब दो साल का समय लगा। मुख्य सचिव की अध्यक्षता में राज्य स्तरीय संचालन समिति ने मई और जून में दो बैठकों में अंतिम मसौदे पर चर्चा की।
दिल्ली के पर्यावरण मंत्री को मंजूरी के लिए भेजा गया
एक सूत्र ने बताया, ‘‘एसएपीसीसी का नया मसौदा दिल्ली के पर्यावरण मंत्री को मंजूरी के लिए भेजा गया है। मंजूरी मिलने के बाद इसे केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय को भेजा जाएगा। योजना के लिए नोडल एजेंसी पर्यावरण विभाग इस साल योजना के क्रियान्वयन को लेकर आशान्वित है।’’
पिछली योजना में छह प्रमुख क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित किया गया था जिनमें ऊर्जा, परिवहन, हरित क्षेत्र, शहरी विकास और मौसम ‘पैटर्न’ में अनुमानित परिवर्तन शामिल था। नए एसएपीसीसी में पिछले दशक के दौरान मौसम की चरम घटनाओं का विश्लेषण शामिल है और इसमें वायु प्रदूषण, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन, नवीकरणीय ऊर्जा, परिवहन मुद्दे, वातानुकूलन, ‘हीट आइलैंड्स’ (शहरी क्षेत्र का औसत तापमान उसके ग्रामीण परिवेश से अधिक होना) और कृषि पैटर्न समेत अन्य पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
संवेदनशील आबादी के लिए खतरा उत्पन्न होने की बात
एसएपीसीसी के मसौदे में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के कारण 2050 तक 2.75 लाख करोड़ रुपये के नुकसान का अनुमान लगाया गया है तथा वर्षा और तापमान के पैटर्न में परिवर्तन से संवेदनशील आबादी के लिए खतरा उत्पन्न होने की बात कही गई है। योजना में ‘‘लू/उच्च तापमान और कम दिनों में भारी वर्षा की घटनाओं’’ को प्रमुख चुनौतियां बताया गया है।
शहर में 27-28 जून को 228.1 मिमी वर्षा दर्ज की गई जो जून की औसत 74.1 मिमी से तीन गुना अधिक है और 1936 के बाद इस महीने में हुई सबसे अधिक वर्षा है। पिछले वर्ष दिल्ली में आठ-नौ जुलाई को 153 मिमी वर्षा हुई थी, जो 1982 के बाद से जुलाई में 24 घंटे में हुई सबसे ज्यादा वर्षा थी, जिसके कारण बड़े पैमाने पर जलभराव हुआ और अस्थायी रूप से स्कूल बंद करने पड़े थे।
दक्षिण दिल्ली को सबसे अधिक संवेदनशील जिला
नए एसएपीसीसी ने अनुमान लगाया है कि मध्यम-उत्सर्जन परिदृश्य (आरसीपी 4.5) में दिल्ली का औसत तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाएगा और उच्च-उत्सर्जन परिदृश्य (आरसीपी 8.5) में 2.1 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाएगा। एक विस्तृत जिला-विशिष्ट संवेदनशीलता मूल्यांकन में दक्षिण दिल्ली को सबसे अधिक संवेदनशील जिला और नई दिल्ली को सबसे कम संवेदनशील जिला बताया गया है।