Move to Jagran APP

दिल्ली में एक डॉक्टर दंपती ऐसा भी, जिसने बचाईं सैकड़ों जानें, कहलाये धरती के भगवान

डॉक्टर कृष्ण कुमार राठी अपने इस मकसद पर कहते हैं कि एक मरीज डॉक्टर के पास बीमारी का इलाज लेने आता है मानसिक तनाव लेने नहीं।

By JP YadavEdited By: Updated: Mon, 28 May 2018 02:48 PM (IST)
Hero Image
दिल्ली में एक डॉक्टर दंपती ऐसा भी, जिसने बचाईं सैकड़ों जानें, कहलाये धरती के भगवान
नई दिल्ली (मनु त्यागी)। गरीब को बुखार भी हो जाए तो वह डॉक्टर के पास इस डर के कारण नहीं जा पाता कि यदि इलाज कराया तो शाम को परिवार का पेट कौन और कहां से भरेगा। सभी वाकिफ हैं आज एक जुकाम-बुखार के इलाज का बजट भी 2000 से कम में नहीं पड़ता। और गरीब क्या सामान्य परिवार का सदस्य भी किसी एमबीबीएस डॉक्टर के यहां जाने से संकोच करता है कहीं एक बीमारी उसके घर का महीने का बजट न बिगाड़ दे। लेकिन अभी भी कुछ ऐसे एमबीबीएस डॉक्टर हैं जो डॉक्टर को धरती के भगवान कहने की बात को समर्पित भाव से निभा रहे हैं।

जी हां, पूर्वी दिल्ली के परवाना रोड, राधेश्याम पार्क स्थित राठी क्लीनिक में राठी डॉक्टर दंपती के यहां सुबह-शाम हर दिन सैंकड़ों मरीज आते हैं। फीस के तौर पर मात्र 50 रुपये शुल्क ही उनसे लिया जाता है और साथ में मर्ज की दवा भी दी जाती है। मतलब कोई भी मरीज बीमारी के कारण बजट बिगड़ने के तनाव से बेफिक्र रहता है। तभी इन डॉक्टर साहब और मरीज के रिश्ते को यूं ही मजबूत हुए 3 दशक से ज्यादा हो चुके हैं।

विश्वास की डोर इस दरमियान तेजी से ही मजबूत हुई है। स्वस्थ समाज का निर्वाह कर रहे डॉक्टर कृष्ण कुमार राठी अपने इस मकसद पर कहते हैं कि एक मरीज डॉक्टर के पास बीमारी का इलाज लेने आता है मानसिक तनाव लेने नहीं। मैं अपने पिता जी का हमेशा आभार व्यक्त करता हूं कि उन्होंने मुझे ऐसे संस्कारों से पोषित किया कि मैं कभी किसी को कष्ट न दे सकूं। गरीब को मेरी तरफ से कोई आहत न पहुंचे। 30 साल से चली आ रही हम पति-पत्नी द्वारा की जा रही इस सेवा का यदि ईश्वर भी हिसाब मांगेगा तो फक्र से कह सकूंगा कि कभी किसी मरीज को आर्थिक और बीमारी की तकलीफ में यूं ही नहीं छोड़ा।

मजाक बनाते हैं दूसरे

डॉक्टर के जीन में होता है कि वह बीमारी को नब्ज टटोल कर ही पकड़ ले। लेकिन आज कल डॉक्टर्स में यह मिनिकल यानी बौद्धिक कौशल के आधार पर मर्ज को समझने की क्षमता कम हुई है या कह सकते हैं उसका अब इस्तेमाल नहीं करना चाहते। इसीलिए छोटी-छोटी बीमारियों के लिए पैथोलॉजी जांच पर ही आश्रित रहते हैं। जिसे मरीज अपने लिए दंड महसूस करता है। दूसरे डॉक्टर्स के ऐसा करने के लिए प्रेरित होने पर 61 वर्षीय डॉक्टर केके हंसते हुए कहते हैं वो तो हमें ही मूर्ख समझते हैं।

कहते हैं 100 मरीजों को देख कर क्या लाभ आज हम (दूसरे एमबीबीएस डॉक्टर्स) कम मरीजों को देखकर ज्यादा कमा पा रहे हैं और अपने निजी जीवन को ज्यादा वक़्त दे पा रहे हैं। जब कोई युवा डॉक्टर या मेडिकल का छात्र हमसे सलाह लेता है और हमारे अनुभव सुनता है तो उन्हें यही लगता है कि इस पेशे में रहकर और दिल्ली-एनसीआर जैसी जगह में बैठकर भी कमाई नहीं कर रहे। उन्हें हम पति-पत्नी मजाक लगते हैं
मैं मूल रूप से मध्य प्रदेश के ग्वालियर के पास मुरैना का रहने वाला हूं। वहीं पर हमारा तेल का पुश्तैनी कारोबार रहा। बड़ा सामूहिक परिवार था। हमेशा दादा जी और पिता जी को फैक्ट्री में सभी कर्मियों के लिए मददगार के रूप में देखा। पिता जी हमेशा कहीं भी कभी हर किसी की मदद के लिए आगे रहते थे सो बचपन से मैं भी यही सीख गया।

मरीजों ने माना मसीहा

शनिवार सुबह 10 बजे से ही क्लिनिक पर मरीजों की कतार में सभी वर्ग के लोग थे। डॉक्टर केके कहते हैं कि मुझे उस वक्त बहुत संतुष्टि मिलती है जब किसी परिवार से मालिक और सहायक साथ ही मेरे यहाँ इलाज के लिए आते हैं। सभी के लिए एक जैसी फीस है 50 से 100 रुपये तक। दो दिन से बुखार से जूझ रहे 40 वर्षीय राहुल कहते हैं। 15 साल से इन्हीं के यहां आता हूं। मेरे तो घर में बच्चे की ख़ुशी भी डॉक्टर लता राठी मैम के यहाँ ही मिली। मेर लिए तो ये दोनों मसीहा हैं। मुझे निजी कम्पनी में 10 हजार रुपये वेतन मिलता है। इतने में आज क्या होता है। आप तो समझते हो। वो तो शुक्र गुजार हूं कि डॉक्टर साहब का जब भी परिवार में किसी को कोई भी बीमारी होती है तो यहीं आता हूं। मैं ही क्या मेरे जैसे हजारों हैं जो 30 साल से यहीं इसी क्लिनिक पर आते हैं।

देश को है सख्त जरूरत

डॉक्टर राठी दंपती कहते हैं आज देश में बहुत सारे मेडिकल के छात्र प्रैक्टिस कर रहे हैं। हजारों एमबीबीएस डॉक्टर्स हैं फिर भी हालात ऐसे हैं कि देश में एक हजार जनता और सिर्फ एक डॉक्टर है। यदि सभी डॉक्टर थोड़ा स्वार्थ से बचते हुए अपने पेशे का निर्वाह सभी जरूरतमंदों गरीब और मध्यम वर्ग के लिए भी करें तो इस देश में बहुत से लोग आर्थिक अभाव में बीमारी का इलाज न करा पाने की पीड़ा से बच जाएंगे। देश में जागरूकता भी आएगी। और डॉक्टर बिरादरी पर भरोसा भी बढ़ेगा। फार्मा कम्पनीज में भी जो किस्म-किस्म की महंगी ब्रांडेड दवाओं को लेकर होड़ मची है उससे भी हम डॉक्टर्स को बचना होगा। वाकई हर शहर को सामुदायिक चिकित्सा की आवश्यकता है। एक मरीज बहुत उम्मीदों के साथ हमारे पास आता है।
 

आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।