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सुप्रीम कोर्ट के अहम फैसले के बाद क्या अब सुधरेगी दिल्ली की सियासत?

अब सुप्रीम कोर्ट की नसीहत के बाद दिल्ली के लोगों में एक बार फिर उम्मीद जगी है कि दिल्ली सरकार और राजनिवास में टकराव बंद होगा।

By JP YadavEdited By: Updated: Thu, 05 Jul 2018 12:35 PM (IST)
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सुप्रीम कोर्ट के अहम फैसले के बाद क्या अब सुधरेगी दिल्ली की सियासत?
नई दिल्ली (सौरभ श्रीवास्तव)। दिल्ली के लोगों ने वर्ष 2015 में एकतरफा मतदान कर अन्ना के आंदोलन से निकली उम्मीद की लौ को साकार रूप दे दिया था। उन्हें लगा था कि अरविंद केजरीवाल एक ऐसे मुख्यमंत्री बनेंगे जो नकारात्मक करने के बजाय में सच्चाई, ईमानदारी और शुचिता का मानदंड स्थापित करेंगे। रामलीला मैदान में शपथ ग्रहण के समय केजरीवाल ने उन्हें इस बात का भरोसा भी दिलाया था, लेकिन कुछ समय बाद ही राजनिवास के साथ उनकी सरकार का ऐसा टकराव शुरू हुआ कि लोगों की उम्मीदें धूमिल होती चली गईं।

अब सुप्रीम कोर्ट की नसीहत के बाद दिल्ली के लोगों में एक बार फिर उम्मीद जगी है कि दिल्ली सरकार और राजनिवास में टकराव बंद होगा और उनके हित के लिए दोनों मिलकर काम करेंगे। 67 विधायकों के साथ दिल्ली की सत्ता में आई केजरीवाल सरकार ने दिल्लीवासियों से 70 वादे किए थे।

असुरक्षा की भावना में घिरी महिलाओं, कॉलेजों में दाखिले से वंचित हो रहे युवाओं, अमानवीय हालात में रह रहे झुग्गी बस्ती के लोगों और पल-पल भ्रष्टाचार से जूझ रहे दिल्लीवासियों को इन वादों से बहुत उम्मीदें थीं। इन्हें पूरा करने के लिए यह जरूरी था कि दिल्ली सरकार उपराज्यपाल व केंद्र सरकार के साथ समन्वय बनाकर काम करे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

पहले उपराज्यपाल नजीब जंग के साथ दिल्ली सरकार के टकराव के हालात बने रहे। उनके जाने के बाद जब अनिल बैजल उपराज्यपाल बनकर आए तो लगा कि राजनिवास के साथ दिल्ली सरकार के संबंध सुधरेंगे, लेकिन कुछ ही समय बाद मुख्यमंत्री ने कहना शुरू कर दिया कि बैजल भी जंग की राह पर चल रहे हैं। धीरे-धीरे हालात इतने बिगड़ गए कि अभी कुछ दिन पहले मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री व दो मंत्रियों ने राजनिवास के प्रतीक्षालय में धरना दे दिया।

दिल्ली सरकार की ओर से ये आरोप भी लगाए गए कि बैजल केंद्र के इशारे पर दिल्ली के अधिकारियों को उसके खिलाफ भड़का रहे हैं, जबकि अधिकारियों का आंदोलन उनकी सुरक्षा और प्रतिष्ठा को लेकर था। दिल्ली सरकार के उपराज्यपाल के साथ साढ़े तीन साल से जारी टकराव से दिल्ली काफी पीछे चली गई है। सरकार यह लगातार आरोप लगाती रही है कि उपराज्यपाल उसे काम नहीं करने दे रहे हैं, उसकी फाइलें रोकी जाती हैं।

वहीं, राजनिवास ने कई बार यह स्पष्ट किया है कि जिन फाइलों में वैधानिक प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया, उसे ही सरकार को लौटाया गया है।

बयानबाजी से बचे सरकार

अब सुप्रीम कोर्ट ने अधिकार क्षेत्रों की व्याख्या कर दी है और निर्देशित भी किया है कि दोनों बेहतर समन्वय के साथ काम करें। ऐसे में दिल्ली सरकार को उपराज्यपाल के खिलाफ बयानबाजी से बचना चाहिए। हालांकि, साढ़े तीन साल के अनुभव और आप सरकार के कामकाज के तरीके को देखकर आशंका भी है कि उसके व्यवहार में शायद ही बदलाव हो। 

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