चलती ट्रेन में हुई चोरी, अब रेलवे यात्री को ब्याज समेत देगा हर्जाना
ट्रेन में सफर के दौरान बैग मोबाइल या अन्य सामान चोरी होने की घटनाएं अक्सर होती रहती हैं। लेकिन रेलवे इसे अपनी सेवा में कमी नहीं मानता है। ऐसी ही घटना होने पर एक यात्री ने इसे कोर्ट में चुनौती दी। तीस हजारी कोर्ट स्थित जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग ने यात्री के पक्ष में फैसला सुनाते हुए उत्तर रेलवे को यात्री को ब्याज समेत हर्जाना देने का आदेश दिया।
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। ट्रेन में सफर के दौरान बैग, मोबाइल या अन्य सामान चोरी होने की घटनाएं अक्सर होती रहती हैं। लेकिन, रेलवे इसे अपनी सेवा में कमी नहीं मानता है। ऐसी ही घटना होने पर एक यात्री ने इसे कोर्ट में चुनौती दी। तीस हजारी कोर्ट स्थित जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग ने यात्री के पक्ष में फैसला सुनाते हुए उत्तर रेलवे को यात्री को ब्याज समेत हर्जाना देने का आदेश दिया।
यात्री का आरोप था कि सात जून, 2014 को वो दिल्ली से पटना के लिए महानंदा एक्सप्रेस से यात्रा कर रही थी। इस दौरान चलती ट्रेन से उसका ट्रॉली बैग चोरी हो गया। चोरी हुए समान की कीमत 1,20,000 रुपये थी।
रेलवे की सेवा में कमी
शिकायतकर्ता ने मानसिक प्रताड़ना सहने के लिए 50 हजार मुआवजे की भी मांग की। आयोग ने दोनों पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद कहा कि रेलवे की सेवा में कमी के कारण यात्री को सीधे नुकसान उठाना पड़ा है।मुआवजा देने का दिया आदेश
आयोग के अध्यक्ष दिव्य ज्योति जयपुरियार और सदस्य अश्वनी कुमार मेहता ने उत्तर रेलवे को शिकायतकर्ता को एक माह के अंदर सात सितंबर 2017 से अब तक 1,20,000 रुपये नौ प्रतिशत ब्याज के साथ देने को आदेश दिया। इसके साथ मानसिक पीड़ा और उत्पीड़न के लिए शिकायतकर्ता को मुआवजे के तौर पर 25,000 रुपये का भुगतान करने का भी आदेश दिया है।
शिकायतकर्ता का आरोप- रेलवे की लापरवाही से चोरी हुआ सामान
शिकायतकर्ता के मुताबिक ट्रेन में यात्रा दौरान उसके चोरी हुए ट्रॉली बैग में कपड़े, जेवर समेत कुछ दस्तावेज थे। चोरी किए गए सामान की कीमत एक लाख बीस हजार रुपये थी। आरोप लगाया गया कि रेलवे की लापरवाही के कारण सामान चोरी हो गया था।शिकायतकर्ता ने चोरी की घटना के बाद सबसे पहले एस-छह कोच के टीटीई को प्राथमिकी दर्ज करने के लिए कहा। लेकिन, प्राथमिकी दर्ज करने की स्थिति के बारे में उन्हें कुछ नहीं बताया गया। इसके बाद, शिकायतकर्ता को रेलवे पुलिस बल से सात सितंबर, 2014 को केवल चोरी की पुष्टि करते हुए एक पत्र मिला।
इस पत्र में प्राथमिकी दर्ज करने के बारे में कुछ भी नहीं कहा गया था। जिसके बाद उसने 23 अप्रैल, 2015 को रेलवे पुलिस में प्राथमिकी दर्ज कराई थी जो 15 मई, 2017 को अप्राप्य (अनट्रेस्ड) के रूप में भेजी गई थी।
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