'ICU से अतिरिक्त दबाव कम करेगा इच्छामृत्यु का प्रावधान, न हो नियम का गलत इस्तेमाल'
हर व्यक्ति के पास सम्मानजनक मौत का अधिकार है। इच्छामृत्यु पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से यह अधिकार मजबूत हुआ है।
नई दिल्ली [जेएनएन]। निजी अस्पतालों पर अक्सर यह आरोप लगते रहे हैं कि कई मरीजों को बेवजह ही मरणासन्न स्थिति में आइसीयू में वेंटिलेटर पर रखा जाता है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा इच्छामृत्यु पर आदेश दिए जाने से यह उम्मीद की जा रही है कि निजी अस्पतालों के अड़ियल रवैये पर लगाम कसी जा सकेगी।
नियम का गलत इस्तेमाल न होने पाए
गंगाराम अस्पताल के क्रिटिकल केयर विशेषज्ञ डॉ. सुमित रे ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद कोई भी व्यक्ति अपने जीवन का मृत्युलेख पहले से लिखकर रख सकता है और यह इच्छा जाहिर कर सकता है कि मरणासन्न की स्थिति में उसे वेंटिलेटर नहीं लगाया जाए या हटा दिया जाए। उन्होंने कहा कि आइसीयू का खर्च अधिक होता है, इसलिए भारतीय परिदृश्य में यह भी देखा जाना चाहिए कि कहीं इस नियम का गलत इस्तेमाल न होने पाए और लोग खर्च से बचने के लिए इच्छामृत्यु का चयन न करें।
मरीजों पर दवा असर नहीं करती
आइसीयू में भर्ती कई मरीजों पर दवा असर नहीं करती, जिसे डॉक्टर भी भलीभांति समझ रहे होते हैं। कानून से बंधे होने के कारण वे चाहकर भी मरीज को आइसीयू से छुट्टी नहीं दे पाते। मरीजों के परिजन भी अंतिम सांस तक छुट्टी नहीं चाहते। सभी बड़े अस्पतालों के आइसीयू में ऐसे दो-तीन मरीज हमेशा होते हैं। गंगाराम अस्पताल में करीब दो सप्ताह से एक 85 वर्षीय मरीज भर्ती हैं, जिन्हें कई बार स्ट्रोक हुआ। वे मल्टीऑर्गेन फेल्योर से भी पीड़ित हैं। फिर भी परिवार के लोग चाहते हैं कि इलाज हो। जबकि उसका परिणाम कुछ नहीं निकलना।
आइसीयू में 10-20 फीसद बोझ कम होगा
डॉ. सुमित रे ने कहा कि अदालत के फैसले से उम्मीद है कि विभिन्न अस्पतालों के आइसीयू में 10-20 फीसद बोझ कम होगा। इससे बेवजह इलाज का खर्च भी नहीं बढ़ेगा और किसी ऐसे मरीज को वेंटिलेटर की सुविधा मिल पाएगी जिसकी जिंदगी बचाई जा सकेगी।
ब्रेन डेड की तरह अस्पतालों में बने कमेटियां
डॉ. सुमित ने कहा कि जिन मरीजों ने पहले से अपने जीवन और इलाज के बारे में लिखकर नहीं रखा है उनके बारे में फैसले का अधिकार कोर्ट तक सीमित नहीं रहना चाहिए। क्योंकि अदालत यह नहीं समझ सकती कि मरीज को किस हद तक इलाज की जरूरत है। अस्पतालों में मरीजों को ब्रेन डेड घोषित करने का प्रावधान है। इसके लिए हर बड़े अस्पताल में कमेटी बनी है। वह कमेटी मरीज को ब्रेन डेड घोषित करती है। उसी तरह हर अस्प्ताल में विशेषज्ञ डॉक्टरों की एक कमेटी बनाई जानी चाहिए, जिसे तीमारदारों के इच्छा पर मरीज का वेंटिलेटर हटाने व इलाज बंद करने का फैसला लेने का अधिकार होना चाहिए।
लोगों को मिला सम्मानजनक मौत का अधिकार
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष डॉ. केके अग्रवाल ने कहा कि हर व्यक्ति के पास सम्मानजनक मौत का अधिकार है। इच्छामृत्यु पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से यह अधिकार मजबूत हुआ है। इस फैसले से अस्पतालों में इस तरह के मामले भी रुकेंगे, जिसमें यह आरोप लगाया जाता है कि मरीज को बेवजह वेंटिलेटर पर रखा गया। ऐसा करना अमानवीय है, इससे इलाज का खर्च भी बढ़ता है। इसलिए कोर्ट के फैसले का स्वागत होना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला स्वागत योग्य
अपोलो अस्पताल के ग्रुप मेडिकल डायरेक्टर डॉ. अनुपम सिब्बल ने कहा कि कोट लिविंग विल लोगों को मौलिक अधिकार देता है कि वे अपने बारे में पहले फैसला कर सकें। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने वर्ष 2009 में सार्वजनिक तौर पर अपने बारे में फैसला लिया था। सुप्रीम कोर्ट का फैसला स्वागत योग्य है।
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