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महिला किसी भी देश की हो, घरेलू हिंसा में नागरिकता से कोई संबंध नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट

Delhi High Court हाईकोर्ट ने कहा कि वीजा की स्थिति की परवाह किए बिना विदेशी महिला को साझा घर में रहने का अधिकार है। एक महिला की नागरिकता का घरेलू संबंध में होने या साझा घर में रहने के अधिकार से कोई संबंध नहीं है। इस मामले में महिला विदेश में रहती है और पति भारत में रहता ह।

By Ritika Mishra Edited By: Geetarjun Updated: Sat, 10 Aug 2024 06:49 PM (IST)
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घरेलू हिंसा में महिला की नागरिकता से कोई संबंध नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट

जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट ने विदेशी महिला द्वारा सत्र अदालत के फैसले को चुनौती देने वाली एक याचिका पर टिप्पणी करते हुए कहा कि घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 के तहत घरेलू हिंसा होने में महिला की नागरिकता से कोई संबंध नहीं है। इसलिए, एक विदेशी नागरिक भी घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत साझा घर में रहने का अधिकार रखती है।

न्यायमूर्ति अनूप जयराम भंभानी की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि एक विदेशी नागरिक होने के बावजूद महिला को अपने वीजा की स्थिति की परवाह किए बिना साझा घर में रहने का अधिकार है।

घरेलू संबंध का मतलब, साझा घर में रहने वाले

न्यायमूर्ति ने कहा कि अदालतों को सावधान रहना चाहिए कि वह घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत कार्यवाही को विदेशी अधिनियम, 1946 के तहत कार्यवाही के साथ न मिलाए। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि घरेलू संबंध का मतलब केवल भारतीय नागरिकों के बीच का संबंध नहीं होता, बल्कि यह उन सभी व्यक्तियों पर लागू होता है जो एक साझा घर में रहते हैं या रह चुके हैं, चाहे उनकी नागरिकता कुछ भी हो।

अदालत ने यह भी कहा कि यदि कोई महिला अपने वीजा की शर्तों का उल्लंघन करती है, तो वह विदेशी अधिनियम के तहत कार्रवाई के लिए उत्तरदायी हो सकती है, लेकिन यह घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत उसके अधिकारों को प्रभावित नहीं करेगा।

अगर वह देश छोड़ने को मजबूर होती है तो...

न्यायमूर्ति भंभानी ने कहा कि यदि कोई महिला अस्थायी रूप से भारत में रह रही हो और किसी कारणवश देश छोड़ने के लिए मजबूर होती है तो वह संरक्षण की हकदार होगी, क्योंकि वह घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत पीड़ित व्यक्ति हो सकती है।

सत्र कोर्ट ने पूछी थी नागरिकता

याचिकाकर्ता महिला ने सत्र न्यायालय के आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। सत्र न्यायालय ने अपने आदेश में स्थानीय एसएचओ को उसकी नागरिकता के बारे में रिपोर्ट दाखिल करने और यह सत्यापित करने का निर्देश दिया कि वह भारतीय नागरिक है या नहीं।

सत्र न्यायालय को दिया निर्देश

सत्र न्यायालय के आदेश को खारिज करते हुए न्यायमूर्ति भंभानी ने कहा कि विदेशी नागरिक का यह दावा कि प्रतिवादी व्यक्ति के साथ उसका साझा घर था, भारत में उसकी नागरिकता की स्थिति के आधार पर तय नहीं किया जा सकता। अदालत ने सत्र न्यायालय को निर्देश दिया कि महिला की अपील पर बिना उसकी नागरिकता की स्थिति के सवाल पर विचार किए, कानून के अनुसार फैसला करे।

ये था मामला

मूल रूप से अफगानिस्तान की रहने वाली बीबी सबेरा ने मेजर चंद्र शेखर पंत के खिलाफ द्विविवाह के लिए मुकदमा चलाने की मांग करते हुए आरोप लगाया था कि मेजर ने काबुल में उससे इस्लामिक रीति-रिवाजों के अनुसार निकाह किया था। महिला ने आरोप लगाया था कि मेजर ने निकाह के लिए इस्लाम धर्म अपनाया था और अपना नाम बदलकर हिम्मत खान रख लिया था।

निकाह के कुछ समय बाद वो उसे छोड़कर भारत आ गया। महिला उसकी तलाश में जब भारत आई तो उसे मेजर के पहले से ही शादीशुदा होने की जानकारी मिली। महिला ने आरोप लगाया कि मेजर ने कभी उससे अपनी वास्तविक वैवाहिक स्थिति का जिक्र नहीं किया था। मामला महिला कोर्ट से होते हुए सत्र अदालत पहुंचा। फिर सत्र अदालत के एक फैसले के खिलाफ महिला ने हाईकोर्ट में अपील की थी।

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