देश-समाज की चिंता करने वाली पीढ़ी तैयार करेगी राष्ट्रीय शिक्षा नीति: डीयू कुलपति
दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के कुलपति प्रोफेसर योगेश सिंह ने कहा है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 देश और समाज की चिंता करने वाली पीढ़ी तैयार करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। दैनिक जागरण के साथ विशेष बातचीत में उन्होंने स्पष्ट किया कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति के दो पहलू हैं एक-शिक्षा का प्रारूप तय करना और दूसरा-इसके माध्यम से नई पीढ़ी में संस्कृति देशप्रेम और देश को समझने का भाव गढ़ना।
अनंत विजय/उदय जगताप, नई दिल्ली। दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के कुलपति प्रोफेसर योगेश सिंह ने कहा है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 देश और समाज की चिंता करने वाली पीढ़ी तैयार करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। दैनिक जागरण के साथ विशेष बातचीत में उन्होंने स्पष्ट किया कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति के दो पहलू हैं, एक-शिक्षा का प्रारूप तय करना और दूसरा-इसके माध्यम से नई पीढ़ी में संस्कृति, देशप्रेम और देश को समझने का भाव गढ़ना। प्रो. योगेश कहते हैं कि नीति को अंगीकार करने के बाद डीयू ने इसे लेकर कई नवाचार भी किए हैं।
सजग नागरिक तैयार करना विश्वविद्यालयों का कार्य
जब मोदी सरकार ने वर्ष 2020 में राष्ट्रीय शिक्षा नीति को देश के समक्ष प्रस्तुत किया तो डीयू देश का पहला केंद्रीय विश्वविद्यालय बना जिसने व्यवस्थित तरीके से इसे लागू करने की प्रक्रिया शुरू की। प्रो. योगेश सिंह कहते हैं कि सजग नागरिक तैयार करना विश्वविद्यालयों का काम है। यह एक दिन में नहीं होगा, लेकिन इसके बाद जो पीढ़ी आएगी, वह अलग होनी चाहिए। आजादी के पचहत्तर वर्ष में जो हुआ, इसमें अपना ही दोष है।
पुरानी व्यवस्था में अपनी-अपनी चिंता करने वाले लोग सामने आए, देश-समाज की चिंता करने वाले लोग नहीं। शिक्षा नीति में जब संस्कार की बात करते हैं तो इसमें हर स्तर का संस्कार है। पहले तो शिक्षकों का मन बनना चाहिये। इसमें समय लगेगा। राष्ट्रीय शिक्षा नीति मैकाले की व्यवस्था में सुधार करने का प्रयास है।
ज्ञान की परंपरा का अध्ययन
प्रो. योगेश ने कहा कि हिंदू स्टडीज के नाम पर अमेरिका और यूरोप के कुछ विश्वविद्यालयों में पढ़ाई होती है। भारत में इसकी पढ़ाई नहीं होती, ये अजीब बात है। हमारे पास ज्ञान की परंपरा है, लेकिन बहुत सा ज्ञान प्राकृत और पाली भाषा में मिलता है।
प्राकृत और पाली जानने वाले देश में 200 लोग भी नहीं हैं। ऐसे में तो यह ज्ञान खत्म हो जायेगा। इसके लिए हमने हिंदू स्टडीज केंद्र शुरू किया। वास्तव में धर्म का जो ज्ञान था, उसका ठीक से अध्ययन हुआ ही नहीं। भारत के पास इतने वर्ष नेतृत्व रहा तो हमारे पास नेतृत्व की कोई समझ तो होगी न। वह समझ क्या थी, इस पर कोई शोध नहीं हुआ।
प्रो. योगेश बताते हैं कि हमने इंडिपेंडेंस एंड पार्टिशन स्टडीज पर भी एक केंद्र बनाया है। उद्देश्य है कि बंटवारे की विभीषिका झेलने वाले जितने लोग बचे हैं, उनका इतिहास संकलित किया जाये। अध्ययन हो कि आगे ऐसी घटना की पुनरावृत्ति कैसे रोकी जाए।
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