DUSU Election 2024: टिकट की उम्मीद में फूंके लाखों, जब मिली मायूसी तो कैंपस में मंत्री को दौड़ा-दौड़ा कर पीटा
DUSU Election दिल्ली विश्वविद्यालय में इन दिनों छात्र संघ चुनाव की चर्चा जोरों पर हैं। अब इसको लेकर उम्मीदवारों की लिस्ट भी जारी हो गई है। हर बार ABVP और NSUI में सीधी टक्कर देखने को मिलती है। इसी कारण से छात्र नेता इस दो संगठनों से टिकट की आस लगाए रहते हैं। इसलिए कई नेता को टिकट नहीं मिलने से नाराज हैं।
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। DUSU Election 2024 Hindi दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ (डूसू) चुनाव पर सभी राजनीतिक दलों की नजर रहती है। यही वजह है कि छात्र नेता लंबे समय तक चुनाव के लिए तैयारी करते हैं। इन दिनों छात्रों से लेकर शिक्षकों में डीयू परिसर में डूसू चुनाव की ही चर्चा है।
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) और नेशनल स्टूडेंट यूनियन ऑफ इंडिया (एनएसयूआई) में ही टक्कर होती है और इसलिए सभी छात्र नेता इन दोनों संगठन से टिकट पाने की कोशिश करते हैं। चर्चा है कि कई छात्र नेता टिकट न मिलने से नाराज हैं।
नामांकन के अंतिम दिन जब नहीं मिला टिकट
एक छात्र नेता तो टिकट मिलने से पहले ही लाखों रुपये खर्च कर दिए। नामांकन के आखिरी दिन उसे एनएसयूआई (NSUI) से टिकट नहीं मिल सका। वहां मौजूद संगठन के बड़े पदाधिकारियों ने उसे सीधे इनकार कर दिया। फिर क्या था उसका गुस्सा काबू में नहीं रहा और पूरे संगठन पर आग-बबूला हो गया।अगले ही दिन उसने अपने साथियों के साथ डीयू (DU) के कला संकाय (Arts Faculty) में प्रचार के लिए प्रयागराज से आए संगठन मंत्री को दौड़ा-दौड़ा कर पीट दिया। छात्र नेता की हरकत पर संगठन शर्मसार है। संगठन के पदाधिकारी ने पल्ला झाड़ते हुए कहा कि सभी को टिकट नहीं दिया जा सकता।
उधर, एबीवीपी (ABVP) से दो छात्र नेता नाराज हो गए थे और उन्होंने निर्दलीय नामांकन भरने की जिद पकड़ ली थी। लेकिन, शाम को सूची जारी-जारी होते उन्हें समझा लिया गया। नहीं तो संगठन को वोट कटने का डर रहता।
वाम छात्र संगठनों के गठबंधन में भी अपनी डफली अपना राग
डूसू चुनाव (Delhi University) में स्टूडेंट फेडरेशन आफ इंडिया (एसएफआई) और ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन (AISA) ने हाथ मिलाया है। अध्यक्ष और उपाध्यक्ष पद आइसा को और सचिव व संयुक्त सचिव के पद एसएफआई (SFI) को दिए गए हैं। संयुक्त गठबंधन के प्रत्याशी कालेज में कैंपेन कर रहे हैं। लेकिन, उनका असर नहीं दिख रहा है और छात्रों से लेकर शिक्षकों में इसकी चर्चा है।
खासकर एबीवीपी (ABVP) और एनएसयूआई NSUI)। गठबंधन के बावजूद दोनों ही संगठन वाम संगठनों को चुनाव की दौड़ में मानकर नहीं चल रहे हैं और सारा ध्यान एक दूसरे को हराने पर लगा रहे हैं। चुनाव की घोषणा से पहले आइसा ने एनएसयूआइ से हाथ मिलाने की कोशिश की थी। लेकिन, उन्होंने इसे अनसुना कर दिया।पिछले वर्ष उन्हें नोटा से भी कम वोट मिले थे। इस बार दोनों संगठन वोट प्रतिशत बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं। तीन महिला उम्मीदवारों के भरोसे उन्हें छात्राओं से अधिक वोटों की उम्मीद है। देखना होगा कि दोनों संगठन कितना दम दिखा पाते हैं। फिलहाल उनका असर दिखाई नहीं दे रहा है।
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