Move to Jagran APP
5/5शेष फ्री लेख

DUSU Election 2023: DU चुनाव में पिछले 10 वर्षों से चल रहा इन दो जातियों का जादू, जानिए इनके जातिगत समीकरण

DUSU Election 2023 चार वर्ष पूर्व 2019 में हुए चुनाव में एबीपीवी के अक्षित दहिया जीते थे। वे जाट जाति से आते हैं। 2018 में जीते अंकित बैसोया गुर्जर हैं। 2017 में एनएसयूआइ से जीते रॉकी तुसीद जाट हैं। 2016 में जीते अमित तंवर 2015 में जीते सतेंद्र अवाना 2014 में जीते मोहित नागर और 2013 में जीते अमित अवाना गुर्जर जाति से हैं।

By Jagran NewsEdited By: Narender SanwariyaUpdated: Sat, 16 Sep 2023 06:45 AM (IST)
Hero Image
डूसू चुनाव में 22 सितंबर 2023 को चार पदों पर 52 कॉलेजों के छात्र मतदान करेंगे।

DUSU Election 2023: नई दिल्ली, उदय जगताप। दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ (डूसू) चुनाव में प्रत्याशियों की घोषणा में छात्र संगठनों ने जतीय समीकरण साधने की पूरी कोशिश की है। हालांकि दिल्ली विश्वविद्यालय में देशभर से छात्र पढ़ने आते हैं। लेकिन, स्थानीय दिल्ली के छात्रों के लिहाज से टिकट वितरण किया गया है। जाट और गुर्जर जाति के प्रत्याशियों को टिकट वितरण में अधिक तरजीह दी गई है। पिछले 10 वर्षों का रिकार्ड देखें तो सभी अध्यक्ष जाट और गुर्जर जाति से ही बने हैं। डूसू चुनाव में 52 कॉलेजों के लगभग 1.5 लाख छात्र मतदाता होते हैं। लेकिन, मतदान का प्रतिशत 40 के आसपास ही रहता है। 1.5 लाख में 60 हजार छात्र ही मतदान करते हैं। इनमें ज्यादातर स्थानीय छात्र होते हैं। जिनके लिए जाति का महत्व विधानसभा और लोकसभा के चुनावों की तरह ही होता है।

जातिगत समीकरण

यही वजह है कि अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने अध्यक्ष पद के लिए गुर्जर जाति के प्रत्याशी तुषार डेढ़ा पर दांव लगाया है। तुषार गोंडा के रहने वाले हैं। पिछले आठ वर्षों से एबीवीपी से जुड़े हैं। गुर्जर जाति के छात्रों की बड़ी संख्या विश्वविद्यालय में है। उपाध्यक्ष पद के उम्मीदवार सुशांत धनकड़ जाट जाति से आते हैं। जाट जाति के छात्रों का भी डीयू में बाहुल्य है। दिल्ली में जाट और गुर्जर समुदाय बहुतायत में है। इसका असर विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले छात्रों पर भी दिखता है।

यह भी पढ़ें: DUSU Election: दिल्ली यूनिवर्सिटी छात्र संघ चुनाव के लिए 97 उम्मीदवारों ने किया नामांकन, अब आगे क्या होगा?

अध्यक्ष पद के प्रत्याशी

एबीवीपी ने संयुक्त सचिव पद पर सचिन बैसला को उतारा है, वो गुर्जर जाति से आते हैं। भारतीय राष्ट्रीय छात्र संगठन (एनएसयूआइ) ने दो प्रत्याशी जाट और एक प्रत्याशी गुर्जर जाति का चुना है। साफ है कि एनएसयूआइ भी जातिगत समीकरण को साधने में पीछे नहीं हटना चाहती। यही वजह है कि अध्यक्ष पद के प्रत्याशी हितेश गुलिया और उपाध्यक्ष पद के प्रत्याशी अभि दहिया दोनों जाट हैं। संयुक्त सचिव शुभम चौधरी गुर्जर जाति से हैं। एनएसयूआइ के एक पदाधिकारी ने कहा, मतदान का प्रतिशत हमेशा अधिक नहीं रहता।

जातीय समीकरण साधने की सत्यता

जाट और गुर्जर जाति की लाबी विश्वविद्यालय में काफी सक्रिय है। वे मतदान में बढ़चढ़कर हिस्सा लेते हैं। नोर्थ कैंपस के बाहर के कॉलेजों इनकी तादात अधिक है। इसका सीधा असर चुनाव परिणामों पर पड़ता है। इनका वोट मिलने पर जीत सुनिश्चित हो जाती है। एबीवीपी ने इसी समीकरण का ख्याल रखते हुए गुर्जर समुदाय से अपना प्रत्याशी चुना है। छात्र संगठनों के जातीय समीकरण साधने की सत्यता पिछले 10 वर्ष के आंकड़ों से भी साफ होती है।

यह भी पढ़ें: DUSU Election: डूसू चुनाव में ABVP का वर्चस्व, 10 साल में सात बार अध्यक्ष पद पर किया कब्जा

टिकट वितरण पर जाति का असर

चार वर्ष पूर्व 2019 में हुए चुनाव में एबीपीवी के अक्षित दहिया जीते थे। वे जाट जाति से आते हैं। 2018 में जीते अंकित बैसोया गुर्जर हैं। 2017 में एनएसयूआइ से जीते रॉकी तुसीद जाट हैं। 2016 में जीते अमित तंवर, 2015 में जीते सतेंद्र अवाना, 2014 में जीते मोहित नागर और 2013 में जीते अमित अवाना गुर्जर जाति से हैं। आंकड़े बताते हैं कि किस तरह जाति का गणित डूसू चुनाव में हावी रहता है। हालांकि वामपंथी संगठनों के टिकट वितरण पर जाति का असर दिखाई नहीं देता। लेकिन, वे चुनावी मैदान में भी उतने असरदार नहीं दिखते।

आपके शहर की तथ्यपूर्ण खबरें अब आपके मोबाइल पर