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Climate Change: खाड़ी देशों को जलवायु परिवर्तन से खासा नुकसान, UAE और सऊदी अरब GDP के 72% का घाटा झेल रहे

जलवायु परिवर्तन (Climate Change) से निपटने के लिए वैश्विक रणनीति बनाने के इरादे से फिलहाल दुबई में संयुक्त राष्ट्र की 28वीं बैठक चल रही है। इस बीच क्रिश्चियन ऐड द्वारा जारी किये गये एक अध्‍ययन में जलवायु परिवर्तन के कारण अरब प्रायद्वीप पर पड़ने वाले विनाशकारी आर्थिक प्रभावों को रेखांकित किया गया है। वर्ष 2100 तक ग्‍लोबल वार्मिंग में तीन डिग्री सेल्सियस तक वृद्धि होने दी जाए।

By sanjeev GuptaEdited By: GeetarjunUpdated: Mon, 11 Dec 2023 08:15 PM (IST)
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खाड़ी देशों को जलवायु परिवर्तन से खासा नुकसान, UAE और सऊदी अरब GDP के 72% का नुकसाल झेल रहे
राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली। जलवायु परिवर्तन (Climate Change) से निपटने के लिए वैश्विक रणनीति बनाने के इरादे से फिलहाल दुबई में संयुक्त राष्ट्र की 28वीं बैठक चल रही है। इस बीच क्रिश्चियन ऐड द्वारा जारी किये गये एक अध्‍ययन में जलवायु परिवर्तन के कारण अरब प्रायद्वीप पर पड़ने वाले विनाशकारी आर्थिक प्रभावों को रेखांकित किया गया है।

दूसरी बातों के साथ इस रिपोर्ट में साफ तौर पर बताया गया है कि अगर वर्ष 2100 तक ग्‍लोबल वार्मिंग में तीन डिग्री सेल्सियस तक वृद्धि होने दी जाए तो अरब प्रायद्वीप की जीडीपी को औसतन 69 प्रतिशत का नुकसान होगा। साथ ही, कॉप28 की मेजबानी कर रहे यूएई और सऊदी अरब दोनों ही जलवायु परिवर्तन के चलते जीडीपी के 72 प्रतिशत नुकसान का सामना कर रहे हैं।

वर्ष 2012 के बाद से पहली बार खाड़ी देश में आयोजित कॉप28 में हिस्‍सा ले रहे प्रतिनिधि वैश्विक स्‍तर पर जीवाश्‍म ईंधन के इस्‍तेमाल को क्रमिक रूप से चलन से बाहर करने की तारीख पर चर्चा कर रहे हैं। वहीं, नयी रिपोर्ट बढ़ते तापमान के उन क्षेत्रों पर पड़ने वाले आर्थिक प्रभावों का खाका खींचती है जो पहले से ही दुनिया के सबसे गर्म इलाके माने जाते हैं।    

‘मरकरी राइजिंग: द इकोनॉमिक इम्‍पैक्‍ट ऑफ क्‍लाइमेट चेंज ऑन द अरेबियन पेनिन्‍सुला’ शीर्षक वाली यह रिपोर्ट मरीना आंद्रिएविच की अगुवाई में तैयार की गयी है। मरीना विएना में इंटरनेशनल इंस्‍टीट्यूट फॉर अप्‍लाइड सिस्‍टम्‍स एनालीसिस में अर्थशास्‍त्री हैं।

रिपोर्ट के प्रमुख तथ्यों पर एक नज़र

यह रिपोर्ट अरब प्रायद्वीप के आठ देशों में जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाले आर्थिक नुकसान का अनुमान पेश करती है।

अगर वर्ष 2100 तक ग्‍लोबल वार्मिंग में तीन डिग्री सेल्सियस तक वृद्धि होने दी जाए तो अरब प्रायद्वीप की जीडीपी को औसतन 69 प्रतिशत का नुकसान होगा।

कॉप28 की मेजबानी कर रहे यूएई और सऊदी अरब दोनों ही जीडीपी के 72 प्रतिशत नुकसान का सामना कर रहे हैं।

ग्रीनपीस एमईएनए का कहना है कि यह क्षेत्र ‘रहने के लायक नहीं’ रह जाने की जोखिम से गुजर रहा है।

अगर दुनिया ग्‍लोबल वार्मिंग में वृद्धि को डेढ़ डिग्री सेल्सियस तक रोकने में कामयाब हो जाती है तो साल 2050 तक जीडीपी को औसतन -8.2 प्रतिशत और वर्ष 2100 तक औसतन -36 प्रतिशत का नुकसान होगा।  

यह निष्कर्ष तब सामने आए जब देशों ने दुबई शिखर सम्मेलन में जीवाश्म ईंधन को ख़त्म करने की तारीख पर बहस की।

खाड़ी देशों में दुनिया का सबसे ज्‍यादा प्रति व्यक्ति कार्बन डाई ऑक्‍साइड का उत्सर्जन होता है।

संयुक्त अरब अमीरात में एक सामान्‍य व्यक्ति कांगो गणराज्य के 645 लोगों की तुलना में अधिक कार्बन डाई ऑक्‍साइड के उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार है।

बर्क एट अल द्वारा सहयोगी-समीक्षित प्रणाली आधारित अनुमानों से जाहिर होता है कि अगर इस सदी के अंत तक वैश्विक तापमान में बढ़ोत्‍तरी को तीन डिग्री सेल्सियस तक पहुंचने दिया गया तो खाड़ी देशों को वर्ष 2100 तक जीडीपी के औसतन -69 प्रतिशत का नुकसान होने की आशंका है। अगर देश पैरिस समझौते के अनुरूप वैश्विक तापमान में वृद्धि को डेढ़ डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने में कामयाब हो भी जाते हैं तब भी इन देशों की जीडीपी को वर्ष 2050 तक -8.2 प्रतिशत और साल 2100 तक -36 प्रतिशत का औसत नुकसान होगा।  

इससे जीवाश्‍म ईंधन के फैलाव से क्षेत्र के लिये पैदा होने वाले खतरे जाहिर होते हैं। जीवाश्‍म ईंधन ही 75 प्रतिशत ग्रीनहाउस गैसें जीवाश्‍म ईंधन से ही पैदा होती हैं। इन निष्कर्षों ने क्षेत्र के जलवायु वैज्ञानिकों और प्रचारकों से इस सप्ताह कॉप28 में जीवाश्म ईंधन को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने की तारीख पर सहमति बनाने का आह्वान किया है।  

वर्ष 2050 और 2100 तक इन देशों की अर्थव्यवस्था आज की तुलना में और बेहतर होने की उम्मीद है। अध्ययन में जलवायु परिवर्तन से उस परिदृश्‍य की तुलना में जब जलवायु परिवर्तन नहीं हुआ हो, उनके सकल घरेलू उत्पाद को होने वाले नुकसान की मात्रा पर प्रकाश डाला गया है।

रिपोर्ट यह भी जाहिर करती है कि इस क्षेत्र में स्थित देशों में प्रदूषणकारी तत्‍वों का प्रतिव्‍यक्ति उत्‍सर्जन भी दुनिया में सबसे ज्‍यादा है। कॉप28 के मेजबान देश यानी यूएई का एक ही आम नागरिक हर साल 25.8 टन कार्बन डाई ऑक्‍साइड के उत्‍सर्जन के लिये जिम्‍मेदार है। यह कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य के औसत व्यक्ति से 645 गुना अधिक है, जिसका प्रति व्यक्ति सीओ2 उत्सर्जन 0.04 टन है।  

विशेषज्ञों की प्रतिक्रिया

ग्रीनपीस मिडिल ईस्‍ट एवं नार्थ अमेरिका में कैम्‍पेंस लीड शेडी खलील ने कहा, ''जलवायु परिवर्तन से सबसे गंभीर खतरे वाले क्षेत्रों में से एक के रूप में, मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका एक ऐसे भविष्य का सामना कर रहे हैं जहां बढ़ते तापमान से विशाल क्षेत्र निर्जन हो सकते हैं, अनगिनत समुदायों की कमजोरियां बढ़ सकती हैं और विस्थापन, युद्ध और समय से पहले मौतें हो सकती हैं। कॉप28 में हमें जीवाश्‍म ईंधनों के न्‍यायसंगत और समानतापूर्ण फेजआउट के लिये संकल्‍प लेना ही होगा। यह संकल्‍प सिर्फ हमारे क्षेत्र के भले के लिये ही नहीं है, बल्कि यह दुनिया की तरफ एक पुकार है कि वह अक्षय ऊर्जा स्रोतों को अपनाने की फौरी जरूरत पर मुस्‍तैदी से काम करे। आज उठाये जाने वाले हमारे कदम यह तय करेंगे कि यह क्षेत्र और बाकी दुनिया आने वाली पीढि़यों के लिये रहने लायक बचेगी या नहीं।”

इस रिपोर्ट की लीड रिसर्चर और मरीना विएना में इंटरनेशनल इंस्‍टीट्यूट फॉर अप्‍लाइड सिस्‍टम्‍स एनालीसिस में अर्थशास्‍त्री मरीना आंद्रिएविच ने कहा, "यह अध्ययन हमें दिखाता है कि अगर पहले से ही गर्म अरब प्रायद्वीप में तापमान इसी तरह बढ़ता रहा तो इस क्षेत्र के लोगों को कितना गंभीर आर्थिक नुकसान होगा। यह अफसोस की बात है कि वैश्विक स्तर पर बढ़ने वाली गर्मी दुनिया के इसी क्षेत्र में तेल और गैस जलाए जाने की वजह से उत्पन्न होगी। जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल को चरणबद्ध तरीके से खत्म करने पर सहमति एकमात्र सबसे उल्लेखनीय चीज है जो उत्सर्जन में कटौती लाने और जलवायु परिवर्तन के ज्वार को काम करने के लिए कॉप28 में हासिल की जा सकती है। यह सिर्फ अरब का इलाका ही नहीं है जो प्रदूषणकारी तत्वों के उत्सर्जन में बढ़ोत्तरी होने से बड़े आर्थिक नुकसान का सामना कर रहा है बल्कि अन्य कई ऐसे देश हैं जहां सबसे गरीब लोग जलवायु परिवर्तन की सबसे ज्यादा कीमत चुकाएंगे।"

कार्डिफ विश्वविद्यालय में एनर्जी नेटवर्क्स एंड सिस्टम के प्रोफेसर मेसाम कद्रदान ने कहा, "जलवायु परिवर्तन के आर्थिक नुकसान पहले से ही मौजूद हैं और अगर उत्सर्जन इसी तरह जारी रहा तो यह और भी बढ़ेगा। इसका विज्ञान बिल्कुल स्पष्ट है कि जीवाश्म ईंधन का जलाया जाना ही जलवायु परिवर्तन का प्रमुख कारण है। यही वजह है कि अनेक जलवायु वैज्ञानिक और सैकड़ों देश कॉप28 का आह्वान कर रहे हैं कि इस बैठक में जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल को धीरे-धीरे खत्म करने की एक तारीख निश्चित की जाए। अरब प्रायद्वीप दुनिया के सबसे गर्म इलाकों में से एक है और जीवाश्म ईंधन संबंधी परियोजनाओं के प्रसार को अगर इसी तरह जारी रहने दिया गया तो इस इलाके को जलवायु परिवर्तन के बेहद गंभीर परिणाम भुगतने होंगे।"

क्रिश्चियन एड के सीनियर क्लाइमेट एडवाइजर जोआब ओकांडा ने कहा, "यह साल अब तक के सबसे गर्म साल के तौर पर रिकॉर्ड बनाने जा रहा है और इसके लिए जीवाश्म ईंधन को सीधे तौर पर जिम्मेदार माना जाना चाहिए क्योंकि ऐसे ईंधन की वजह से ग्रीनहाउस गैसों का 75% तक हिस्सा उत्पन्न होता है नतीजतन जलवायु संकट बढ़ रहा है। अरब प्रायद्वीप जैसे इलाके में जहां रह रहे लोग पहले से ही भीषण गर्मी का सामना कर रहे हैं वहां जीवाश्म ईंधन उद्योग का लगातार फलना फूलना वहां रह रहे लोगों की जिंदगी के लिए खतरा है। पूरी दुनिया में इस खतरे से जूझ रहे लोग अनेक सालों से जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल को धीरे-धीरे खत्म करने की गुहार कर रहे हैं और अभी तक इस मुद्दे को कॉप बैठकों में नजरअंदाज किया जाता रहा है। संयुक्त अरब अमीरात में इस चलन को बंद करने की जरूरत है। इस नए युग का सूरज उगाने के लिए दुनिया के सबसे बड़े तेल उत्पादक देश में से एक से बेहतर जगह और क्या होगी।"

इंपीरियल कॉलेज लंदन में एटमॉस्फेरिक फिजिक्स की पूर्व प्रोफेसर जोआना हे ने कहा, "जीवाश्म ईंधन जलवायु संकट से परस्पर जुड़ा हुआ है और जब तक इनका इस्तेमाल धीरे-धीरे बंद नहीं किया जाएगा तब तक वैश्विक स्तर पर तापमान नये रिकॉर्ड बनाता रहेगा और जलवायु परिवर्तन की वजह से और अधिक आपदाएं पैदा होती रहेगी। जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के लिहाज से खाड़ी क्षेत्र अत्यधिक जोखिम वाला इलाका है और अगर तापमान इसी तरह बढ़ता रहा तो इस क्षेत्र को जलवायु संबंधी गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा।"

ध्यान रहे कि सऊदी अरब के पूर्व पेट्रोलियम एवं खनिज संसाधन मंत्री शेख अहमद ज़की यमनी ने जून 2000 में कहा था, "पाषाण युग का अंत इसलिए नहीं हुआ था कि हमारे पास पत्थरों की कमी थी और तेल के युग का अंत भी होगा लेकिन इसलिए नहीं कि हमारे पास तेल की कमी होगी।"

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