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KIRORIMAL ENACTUS: आशाओं की स्याही में रंगी उम्मीदों की डोर

किसी कला और उसके कलाकारों को पहचान दिलाना तब और भी मूल्यवान हो जाता है जब इसमें प्रकृति को साथ लेकर चलने की भावना समाहित हो जाए। इसी भावना के साथ काम कर रहे युवा आत्मनिर्भरता लाने के साथ ही प्रकृति की भी कर रहे हैं मदद...

By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Sun, 31 Jan 2021 09:55 AM (IST)
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फिलहाल यही काम हमारी वेबसाइट के जरिए हो रहा है। इससे ज्यादा से ज्यादा युवा हमारे साथ जुड़ गए हैं।

नई दिल्ली, आरती तिवारी। कॅरियर की रेस में भागती युवा पीढ़ी के बीच दिल्ली के किरोड़ीमल कॉलेज के विद्यार्थी यह साबित कर रहे हैं कि जोश और उमंग से भरा युवा मन जिस दिशा में मुड़ जाए, उसमें सफलता के रंग भर ही देता है। ये चंद युवा जरूरतमंद प्रवासी महिलाओं के हुनर को आगे बढ़ाते हुए उन्हें आत्मनिर्भर बनाने के साथ ही उनमें आत्मविश्वास की आभा दमका रहे हैं। इसी के साथ ही पर्यावरण के प्रति दायित्व भी निभा रहे हैं। इसमें कोई बड़ी कंपनी या जाना-माना नाम तो नहीं जुड़ा मगर किरोड़ीमल कॉलेज के ग्रेजुएशन द्वितीय वर्ष के मात्र 15 विद्याथियों का हौसला है जो अपने तीन चुनिंदा प्रोजेक्ट्स की बदौलत बुलंदी की राह पर अग्रसर हैं।

अलग-अलग विषयों से ग्रेजुएशन की पढ़ाई कर रहे ये विद्यार्थी इस उद्देश्य से वास्ता रखते थे, सो साथ आ गए और शुरू हो गया 'इनेक्टस ऑर्गनाइजेशन' के तहत किरोड़ीमल कॉलेज के इन विद्यार्थियों का काम। इसके अंर्तगत तीन प्रोजेक्ट 'प्रोजेक्ट डोर', 'प्रोजेक्ट स्याही' और 'प्रोजेक्ट जनभूमि' जारी हैं, जिसके लिए सभी ने अलग-अलग विभागों की जिम्मेदारियां संभाली हुई हैं।

शुरू हो गया रंगों का कारोबार

भारत में, खासतौर से युवाओं के बीच हैंडीक्राफ्ट की घटती पसंद को लेकर परेशान इन विद्यार्थियों का एकमात्र लक्ष्य था दिल्ली विश्वविद्यालय समेत देशभर के तमाम युवाओं को इस कला से जोडऩा। उनके इसी उद्देश्य को पूरा करता है 'प्रोजेक्ट डोर'। इसके लिए उन्होंने 'टाई एंड डाई' कला से रंगाई के काम को प्रसारित करने की शुरुआत की। अपने प्रोजेक्ट के बारे में आउटरीच हेड यशिका थापर बताती हैं, 'हम सबसे पहले एक एनजीओ 'दीपालय' के साथ जुड़े, जो बिहार, पश्चिम बंगाल, झारखंड जैसे कई राज्यों से आने वालीं प्रवासी महिलाओं के लिए काम करता है। इन महिलाओं में 'टाई एंड डाई' का कौशल था, मगर उनकी इस कला को बढ़ावा देने के लिए मौके कम थे। ऐसे में हम करीब 20-30 महिलाओं से मिले। उनके कौशल को जाना, उनकी परिस्थितियों से रूबरू हुए और उसके बाद काम शुरू किया। उन्हें काम तो पहले से ही आता था, हमने मार्केट की मांग के हिसाब से उनका काम निखारने में मदद की। इसके लिए कई फैशन डिजाइनर से उनकी मुलाकात करवाई और अब वे बड़ी आसानी से हमारे लिए स्कार्फ, दुपट्टे, कुशन कवर से लेकर बेडशीट आदि पर काम करती हैं और हम उनका काम लोगों तक पहुंचाकर उनको वाजिब दाम दिलवाते हैं।'

पेन से उगाएं पेड़

यह तो हर किसी ने सुना होगा कि 'मुश्किल है पानी पर पानी से पानी लिखना!' मगर 'प्रोजेक्ट स्याही' की बदौलत आप कागज पर कागज से कागज जरूर लिख सकते हैं। दरअसल, यहां तैयार किए जाने वाले पेन प्लास्टिक से नहीं बल्कि कागजों की रीयूज करके बनते हैं। तो इस तरह आप न सिर्फ कागज का दोबारा इस्तेमाल कर सकते हैं बल्कि पेन के जरिए होने वाले प्लास्टिक के अत्यधिक प्रदूषण से भी बच सकते हैं। इसके अलावा इन पेनों की खास बात यह है कि ये पौधे भी उगा सकते हैं। दरअसल, इन पेन के आखिरी सिरे पर बीज होते हैं। तो एक बार जब आपका पेन खत्म हो जाए और आप इसे फेंकना चाहें तो पूरे गर्व से फेंक सकते हैं क्योंकि आपका फेंका हुआ यह पेन कुछ ही वक्त में एक पेड़ बन जाएगा।

ऑर्गेनिक लाइफस्टाइल का मंत्र

आज हर कोई ऑर्गेनिक लाइफस्टाइल अपनाने की ओर बढ़ रहा है। ऐसे में इस ओर भी कदम बढ़ाने के उद्देश्य में मददगार है 'प्रोजेक्ट जनभूमि'। इस बारे में इनेक्टस किरोड़ीमल की प्रेसिडेंट नताशा सिंह बताती हैं, 'इस प्रोजेक्ट के अंर्तगत हम शहरी क्षेत्रों में ऑर्गेनिक लाइफस्टाइल को प्रमोट करने और इस ओर जागरूकता फैलाने का काम कर रहे हैं। आज लगभग हर कोई घर पर ही गार्डनिंग को महत्ता देता है। ऐसे में हम अपने गार्डनिंग टूलकिट उपलब्ध करवाकर उनकी मदद कर रहे हैं। इसके लिए हम ऐसे लोगों के पास गए जो अपने हाथों से गार्डनिंग टूल बनाते थे मगर सस्ते दामों में बेचने के कारण उतना फायदा नहीं कमा पाते थे। हमारा यह उद्देश्य न सिर्फ आत्मनिर्भर भारत की पैरवी करता है, साथ ही 'वोकल फॉर लोकल' का पूरा समर्थन करता है। इसके अलावा हम जलाशयों के पोषण और फूलों से खाद बनाने के में भी जुटे हैं। जिससे लोग रासायनिक खाद के बजाय सिर्फ जैविक खाद का उपयोग करें। इसमें हमें बिडला मंदिर का पूरा सहयोग मिलता है। जो न सिर्फ मंदिर के फूल उपलब्ध कराते हैं बल्कि मंदिर के पीछे की थोड़ी जगह भी दे रहे हैं, जहां हम फूलों से खाद तैयार करते हैं।'

तकनीक का साथ

इनेक्टस किरोड़ीमल कॉलेज की आउटरीच हेड यशिका थापर ने बताया कि हम सभी इस बात से सहमत थे कि भारतीय हैंडीक्राफ्ट से स्टूडेंट्स को मिलवाना है, ताकि वो भी हमारी तरह इसे पसंद करें और इसे अपनाएं। हमारे तीनों प्रोजेक्ट फिलहाल कोरोना महामारी के कारण प्रभावित तो हुए मगर हमने तकनीक की मदद से उससे निबटना शुरू कर दिया है। हम कोरियर की मदद से महिलाकर्मियों तक कच्चा माल पहुंचा देते हैं और वे भी इसी तरह हमें पेन, कपड़े आदि भिजवा देती हैं। किसी जानकारी अथवा सलाह के लिए हम वीडियो कॉल कर लेते हैं। इस तरह हमारा काम और उन महिलाओं के चेहरे पर मुस्कान लगातार जारी है।

ग्राहकों से सीधा संवाद

इनेक्टस किरोड़ीमल कॉलेज की वाइस प्रेसिडेंट अरुद्र सेन गुप्ता ने बताया कि लोग कहते हैं पढ़ाई के बीच यह सब मुश्किल होता होगा, मगर हमारे सभी सदस्यों ने अपना समय बेहतर तरीके से मैनेज किया हुआ है। हमारी एक मात्र मुश्किल यह थी कि हमारी कोई पंजीकृत कंपनी नहीं थी तो बाजार में हम अपने उत्पादों को नहीं उतार सकते थे। इसके लिए हमने सीधे ग्राहकों तक अपना काम पहुंचाना शुरू किया। हम कैंपेन लगाकर व सोसाइटीज में जाकर सीधे लोगों के सामने अपना उद्देश्य और काम रखते थे। जिन्हें पसंद आता गया वो सहर्ष हमारा उत्पाद ले लेते हैं। 

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