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दिल्ली के जस्‍सी ने निभाई इंसानियत की प्रीत, पढ़ें पूरा मामला

22 अप्रैल की घटना को याद करते हुए 34 वर्षीय जसप्रीत उर्फ जस्‍सी राहत की सांस लेते हैं।

By JP YadavEdited By: Updated: Mon, 30 Apr 2018 06:36 AM (IST)
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दिल्ली के जस्‍सी ने निभाई इंसानियत की प्रीत, पढ़ें पूरा मामला

नई दिल्‍ली (मनु त्‍यागी)। डरी-सहमी सी चेहरे पर परेशानी की लकीरें, हाथ में तीन बैग लिए एक लड़की…अचानक मेरे पास आती है और कहती है भैया आप बस मुझे जल्‍दी से किसी भी होटल में पहुंचा दीजिए। मैं चौंका न जगह का नाम, न होटल का पता और न ही किराए-भाड़े के लिए कोई मोल भाव। मैंने खुद से कहा जस्‍सी कुछ तो गड़बड़ है। मैं उस वक्‍त बंगला साहिब गुरुद्वारे के बाहर खड़ा हुआ था।

मैंने भी देर नहीं लगाई मैडम को तुरंत कहा बैठिए। रास्‍ते में उनसे होटल के लिए आधार कार्ड आदि के बारे में पूछा। बातों-बातों में आधार कार्ड देखने के लिए लिया और उस पर से उनका पता देख लिया। उनका गुस्‍सा और घबराहट धीरे-धीरे बातों में निकलने लगा।

कहती हैं आप बस मुझे जल्‍दी से किसी भी होटल छोड़ दो। मैं घर छोड़कर आई हूं। यह सुनते ही मैं भी सकपकाया। लेकिन मैंने तय किया कि कुछ भी हो इनको समझाकर घर भेजने का रास्‍ता निकालना है। फिर मैं उन्‍हें संसद मार्ग की तरफ यह कहते हुए ले गया कि मैडम यहां बस नजदीक में ही होटल मिल जाएगा। और तत्‍परता दिखाते हुए मैंने ऑटो सीधे संसद मार्ग थाने में लगा दिया।

वहां पूजा मैडम (पुलिस ऑफिसर) आईं। मैंने जल्‍दी से उन्‍हें सारी बात बताई। वे लड़की को अपने साथ अंदर ले गईं। लड़की को समझाया गया। काउंसलिंग की गई। उनके माता-पिता को बुलाया गया। लड़की के माता-पिता के वहां पहुंचते ही उनकी घबराहट और आंसू सब कुछ बयां कर रहे थे। तभी पुलिस वाली मैडम ने उनसे कहा शुक्र मनाइए लड़की सुरक्षित है। धन्‍यवाद दीजिए उस शख्‍स का कि बेटी को सीधे यहां लेकर आया।

सोमवार 22 अप्रैल की इस घटना को बताते हुए 34 वर्षीय जसप्रीत उर्फ जस्‍सी राहत की सांस लेते हैं और कहते हैं, ये मेरा फर्ज था। आज जहां दिल्‍ली-एनसीआर में बेटियां खुद को असुरक्षित महसूस कर रही हैं। वहां ऐसे में एक लड़की को कैसे इस तरह यूं ही सड़क पर छोड़ देता। वो भी रात के समय। मेरे लिए तो जिंदगी का सबसे बड़ा ईनाम उन मैडम को उनके माता-पिता को सौंपने के बाद उनके चेहरे की खुशी और राहत थी। मेरा भी छोटा सा परिवार है। घर में मां है, पत्‍नी है और तीन बेटियां हैं सभी की जिम्‍मेदारी मेरे कंधों पर है।

आज के समाज में बेटी का पिता होना कितनी बड़ी जिम्‍मेदारी और चुनौती है मैं महसूस करता हूं। इसीलिए जब कभी भी कहीं ऐसी स्थिति मेरे सामने आई तो मैंने अपना फर्ज अदा किया है। जसप्रीत कहते हैं एक साल पहले भी 30 वर्ष की उम्र की एक लड़की पहाड़गंज इलाके में मुझे मिली थीं।

उन्‍होंने मुझसे कहा कहीं भी किसी रैन बसेरे में छोड़ दो। और ऑटो में बैठे हुए रोती रहीं। तब मैं उन्‍हें भी पहाड़गंज पुलिस स्‍टेशन लेकर गया ताकि उन्‍हें सुरक्षित स्‍थान पर पहुंचा दिया जाए। अभी दो दिन पहले भी एयरपोर्ट मेट्रो स्‍टेशन से एक बड़े अधिकारी को मैं ऑटो में ले जा रहा था उनका मोबाइल मेरे ऑटो में छूट गया और वो वहां से जा चुके थे। मैं काफी जद्दोजहद के बाद दो घंटे बाद उनका मोबाइल उन तक पहुंचा सका।

बाबा जी और मां ने दी शिक्षा

मूल रूप से दिल्‍ली दिल्‍ली के जंगपुरा इलाके में रहने वाले जसप्रीत ने दिल्‍ली के ही डीएवी स्‍कूल से 12 वीं तक पढ़ाई की है और 12 साल से ऑटो चला रहे हैं। कहते हैं कि मैं हर रोज सुबह 6 बजे ही ऑटो लेकर बंगला साहिब गुरुद्वारा आ जाता हूं। अपने दिन की शुरुआत यहीं से करता हूं। मुझे यहां गुरुद्वारे में बाबा से और घर में बचपन से मेरी मां से यही सीख मिली कि हमेशा दूसरों का भला करो।

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