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दिल्ली से काटकर एनसीआर में पेड़ लगाने का औचित्य नहीं, वृक्षों की कीमत पर विकास पड़ेगा महंगा

बात चाहे प्रत्यारोपित पेड़ों के सूखने की हो या फिर काटे गए पेड़ों की क्षतिपूर्ति के तौर पर किए गए पौधारोपण में गड़बड़झाले की... इसके लिए सीधे तौर पर सिस्टम जिम्मेदार है। इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि अगर दिल्ली में किसी को पेड़ काटने के लिए अनुमति चाहिए तो उसे वन विभाग की वेबसाइट पर आवेदन के लिए अलग से लिंक भी आसानी से मिल जाएगा।

By sanjeev GuptaEdited By: Pooja TripathiUpdated: Sat, 16 Sep 2023 04:17 PM (IST)
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पेड़ों की कटाई पड़ेगी विकास पर भारी। जागरण

नई दिल्ली, संजीव गुप्ता। भले ही राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में हरियाली की घनी चादर नजर आती है, लेकिन पौधारोपण के नाम पर स्थितियां ठीक नहीं हैं। प्रत्यारोपण के नाम पर एक तिहाई भी पेड़ नहीं बचते, लेकिन योजना शुरू होने के नाम पर पेड़ कट जरूर जाते हैं या उन्हें कहीं और लगाने की बात कह दी जाती है। एक पेड़ हटाने के बदले 10 पेड़ लगाने की बात महज कागजों में हरियाली वाली बात ही साबित होती है।

15 साल में 100 हेक्टेयर से अधिक वन क्षेत्र पर हुए विकास कार्य

दिल्ली में बीते 15 साल के दौरान करीब 103.79 हेक्टेयर वन क्षेत्र पर विकास कार्य हुए हैं। इन विकास कार्यों के लिए केंद्र सरकार की तरफ से स्वीकृति दी गई। इस जमीन पर विकास से जुडे़ प्रोजक्ट जैसे सड़कें एवं ट्रांसमिशन लाइनें बिछाने का काम हुआ है। केंद्र सरकार ने इसके लिए वन संरक्षण अधिनियम 1980 के तहत मंजूरी दी।

सरकारी आंकड़ों के अनुसार वन क्षेत्र की 63.30 हेक्टेयर जमीन का वर्ष 2022-23 में और 21.75 हेक्टेयर जमीन का भू उपयोग 2021-22 में बदला गया। इतना ही नहीं, करीब 384.38 हेक्टेयर (3.84 वर्ग किमी) वन भूमि पर अतिक्रमण भी है।

इंडिया स्टेट आफ फॉरेस्ट रिपोर्ट – 2021 के अनुसार दिल्ली का वन क्षेत्र करीब 195 वर्ग किमी है। यह दिल्ली के कुल भूभौतिकीय क्षेत्र 1483 वर्ग किमी का 13.15 प्रतिशत हे। इसमें से 103 वर्ग किमी वन क्षेत्र ही सरकारी रिकार्ड में अधिसूचित है।

किस साल में वन विभाग की कितनी जमीन पर हुए विकास कार्य

2016 से 2021 के दौरान दिल्ली में हर दिन काटे गए औसतन आठ पेड़

पर्यावरण कार्यकर्ता विक्रांत तोंगड़ द्वारा लगाई गई एक आरटीआइ के जवाब में सामने आया है कि अगस्त 2016 से अगस्त 2021 तक दिल्ली में हर रोज औसतन आठ पेड़ काटे गए हैं। इन पांच वर्षों में विभिन्न परियोजनाओं के लिए शहर में कुल 15,090 पेड़ काटे गए, जिसमें व्यक्तियों और राज्य और केंद्रीय एजेंसियों को उनकी परियोजनाओं के लिए दी गई अनुमति शामिल थी।

वृक्ष प्रत्यारोपण वाले कुछ प्रमुख प्रोजेक्टों का ब्योरा

  1. द्वारका एक्सप्रेस वे के लिए वर्ष 2019 में करीब 10 हजार पेड़ काटने की अनुमति ली गई थी। इसमें से दो हजार प्रत्यारोपित होने थे। लेकिन प्रत्यारोपित किए गए करीब 50 फीसद पेड़ रखरखाव के अभाव में सूख गए हैं।
  2. अर्बन एक्सटेंशन रोड (यूईआर)-दो, जिसे दिल्ली की तीसरी रिंग रोड भी कहा जाता है, के निर्माण के लिए पर्यावरण विभाग ने पांच पैकेजों में राजधानी में 6,600 से अधिक पेड़ काटने एवं प्रत्यारोपित करने की अनुमति दी है। पर्यावरण विभाग द्वारा जारी अधिसूचना के अनुसार भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआइ) इस परियोजना के लिए 2,314 पेड़ काटेगा जबकि 4,365 पेड़ प्रत्यारोपित करेगा। एनएचएआइ को प्रतिपूरक वृक्षारोपण और इसे सात साल तक बनाए रखने के लिए सुरक्षा जमाराशि के रूप में 38.07 करोड़ रुपये भी अग्रिम जमा करने के लिए कहा गया है।
  3. दिल्ली मेट्रो फेज चार के कोरिडोर की राह में 6,961 पेड़ काटे जाएंगे, जिसमें से 2200 प्रत्यारोपित होंगे। काटे गए पेड़ों के बदले डीएमआरसी को द्वारका के धूलसिरस गांव में 25 हेक्टेयर जमीन पर 34 हजार पौधे लगाने होंगे।
  4. सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के लिए 2466 से अधिक पेड़ों को हटाया या प्रत्यारोपित किया गया है।
  5. राज्य पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण (एसईआइएए) ने सितंबर 2022 में एम्स पुनर्विकास परियोजना के लिए 2,641 पेड़ हटाने की मंजूरी दी। 1,910 पेड़ों को प्रत्यारोपित जबकि 731 को काटा जाना है।
  6. अगस्त 2023 में कामन केंद्रीय सचिवालय की साइट पर भवन निर्माण के चलते 107 पेड़ों को हटाने या प्रत्यारोपित करने और अरकपुर बाग मोची में बनने वाले पश्चिमी रेलवे के बहुमंजिला आवासीय भवन के निर्माण में 96 पेड़ों को प्रत्यारोपित करने की अनुमति दी है।

डीडीए ने पौधे लगाने के लिए पड़ोसी राज्यों में मांगी जमीन

राजधानी में जमीन की कमी को देखते हुए दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) ने पौधारोपण के लिए केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय से पड़ोसी राज्यों में जमीन मांगी थी। डीडीए का कहना है कि केंद्रीय परियोजनाओं के लिए शहर में वन भूमि का अधिग्रहण किए जाने पर आसपास के राज्यों में प्रतिपूरक पौधारोपण की अनुमति दी जाए।

डीडीए के मुताबिक प्रतिपूरक पौधारोपण के लिए दिल्ली में बहुत सीमित भूमि उपलब्ध है। यह योजना बनाई गई थी कि दिल्ली के 15 फीसद क्षेत्र को हरित आवरण के लिए अलग रखा जाएगा। लेकिन यह क्षेत्र पहले से ही वृक्षारोपण या अन्य सार्वजनिक सुविधाओं के कारण संतृप्त है। इसलिए हमारे पास प्रतिपूरक पौधारोपण के लिए खाली गैर-वन भूमि नहीं है। केंद्र सरकार ने इसके लिए अनुमति दे दी है।

करीब 55 हजार पेड़ लगाए गए सहारनपुर में

दिल्ली से बाहर पेड़ लगाने के क्रम में अभी तक एक केस रेलवे का ही रहा है। रेलवे को अपने एक प्रोजेक्ट के लिए करीब 5500 पेड़ काटने थे, लेकिन विकल्प स्वरूप उसके पास 55000 पेड़ लगाने की जगह यहां उपलब्ध नहीं थी। ऐसे में उसे ये पेड़ लगाने के लिए सहारनपुर में जमीन दी गई।

डीडीए के पास दिल्ली में फैला हरित क्षेत्र करीब 16,035 एकड़ में है। यहीं पर आमतौर पर वृक्षारोपण किया जाता है।

दिल्ली से काटकर एनसीआर में पौधे लगाने का क्या है औचित्य

बात चाहे प्रत्यारोपित पेड़ों के सूखने की हो या फिर काटे गए पेड़ों की क्षतिपूर्ति के तौर पर किए गए पौधारोपण में गड़बड़झाले की... इसके लिए सीधे तौर पर सिस्टम जिम्मेदार है। सरकारी तंत्र के लिए वृक्षों का संरक्षण कभी भी प्राथमिकता में नहीं रहा। कहने को दिल्ली में भी वन विभाग जरूर है, लेकिन न तो उसके पास पर्याप्त स्टाफ है और न ही यथावश्यक व्यवस्था। हरित क्षेत्र बढ़ाने, वन और वृक्ष संरक्षण तो कागजी बातें अधिक लगती हैं। यह बात कही दिल्ली बायोडायवर्सिटी काउंसिल के अध्यक्ष प्रो. सीआर. बाबू ने।

इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि अगर दिल्ली में किसी को पेड़ काटने के लिए अनुमति चाहिए तो उसे वन विभाग की वेबसाइट पर आवेदन के लिए अलग से लिंक भी आसानी से मिल जाएगा और सप्ताह दस दिन में अनुमति भी मिल जाएगी। लेकिन अगर आप कहीं पर कट रहे पेड़ को बचाना चाहेंगे तो आपको कोई मदद नहीं मिलेगी।

वन विभाग की हेल्पलाइन पर संपर्क मुश्किल

वन विभाग की हेल्पलाइन पर संपर्क हो पाना ही मुश्किल है। हाे भी गया तो ज्यादा से ज्यादा शिकायत नंबर मिल जाएगा, इससे अधिक कुछ नहीं। पुलिस को फोन करेंगे तो भी यह कहकर चली जाएगी कि वन विभाग के पास जाइए।

किसी प्रोजेक्ट के लिए वन विभाग के पास पेड़ काटने का आवेदन आता है तो कायदे से विभाग का स्टाफ मौका मुआयना करने के लिए होना चाहिए। लेकिन स्टाफ की कमी से यह भी ईमानदारी पूर्वक संभव नहीं हो पाता। फारेस्ट गार्ड की अनुशंसा पर ही अनुमति दे दी जाती है।

अब काटे जाने वाले पेड़ किस किस प्रजाति के हैं, उनके बदले में जो पेड़ लगाए जा रहे हैं, वह कौन कौन सी प्रजाति के हैं तथा बाद में उनकी देखभाल की क्या व्यवस्था रहेगी, इस पर भी सब गड़बड़झाला रहता है। यही वजह है कि बाद में आधे से ज्यादा पौधे सूख जाते हैं। वृक्ष प्रत्यारोपण को लेकर भी कमोबेश वही स्थिति है।

दिल्ली में कटें तो वहीं लगें पेड़

मेरा यह भी कहना है कि अगर पेड़ दिल्ली में काटा जा रहा है तो उसके बदले 10 पेड़ लगाने की व्यवस्था भी यहीं पर होनी चाहिए। एनसीआर में लगाने का कोई औचित्य नहीं है। मेरा यह भी कहना है कि किसी भी प्रोजेक्ट के लिए पेड़ काटने की अनुमति देने से पहले उस प्रस्ताव में काटे जाने वाले पेड़ों की संख्या जितनी कम हो सके, उतनी कम कराई जानी चाहिए। ऐसा होना मुश्किल भी नहीं है।

दिल्ली सरकार की ओर से यह विभागीय तथ्य भी सामने आ चुका है कि पौधारोपण अभियान में आंकड़ों की बाजारीगरी होती रही है। एक ही जगह लगाए गए पौधे कई विभागों की गिनती में शामिल हो जाते हैं। इसकी वजह यह कि विभागों को यही नहीं पता होता कि उन्होंने पेड़ लगाए किसकी जमीन पर हैं।

हालांकि वृक्ष संरक्षण अधिनियम, दिल्ली 1994 के तहत वन विभाग के पास काफी शक्तियां हैं। लेकिन विभाग अपनी ही शक्तियों से अनजान है। इनका प्रयाेग करने के लिए जरूरी अमला भी नहीं है उसके पास। इन हालातों में यही कहा जा सकता है कि दिल्ली की आबोहवा को वाकई बेहतर बनाना है तो स्मॉग टावर से ज्यादा ध्यान दिल्ली के हरित और वन क्षेत्र पर देने की है।

इसके लिए बजट और गंभीरता दोनों चाहिए। कोरोनाकाल में आक्सीजन की कमी से दिल्ली में न जाने कितने ही लोग काल का ग्रास बन गए। अगर अब भी वृक्षों की कीमत नहीं समझी गई तो फिर भगवान ही मालिक है।

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