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वायु प्रदूषण से दिल्ली में हर साल चली जाती है 12 हजार लोगों की जान, राजधानी के बाद यूपी का ये जिला दूसरे स्थान पर

दिल्ली (Deaths due to air pollution in Delhi) में सर्दी का मौसम आते ही वायु प्रदूषण की समस्या बढ़ जाती है। एक रिसर्च में चौंकाने वाली रिपोर्ट आई है। इस शोध के मुताबिक राजधानी में हर साल करीब 12 हजार लोगों की जान वायु प्रदूषण के कारण हुई। इस आंकड़े को और आसानी से समझे तो 100 में से लगभग 12 लोगों की मौत खराब हवा के कारण होती है।

By Santosh Kumar Singh Edited By: Monu Kumar Jha Published: Thu, 04 Jul 2024 07:56 PM (IST)Updated: Thu, 04 Jul 2024 07:56 PM (IST)
Delhi Ari Pollution: देश की राजधानी में वायु प्रदूषण को लेकर चौंकाने वाला आंकड़ा। फाइल फोटो

राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली। लैंसेट प्लैनिटेरी हेल्थ जर्नल में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार भारत में वायु प्रदूषण के कारण मृत्यु दर में वृद्धि हो रही है। दिल्ली सहित देश के 10 शहरों में प्रतिवर्ष हवा में पीएम 2.5 की अधिकता के कारण लगभग 33, 000 लोगों की मौत हो रही है। इसमें सिर्फ दिल्ली में 12 हजार लोग की जान जा रही है, यह प्रतिवर्ष होने वाली कुल मौत का 11.5 प्रतिशत है।

इस तरह से राजधानी में 100 में से लगभग 12 लोगों की मौत यहां की खराब हवा के कारण होती है। कुछ माह पहले एक रिपोर्ट में दिल्ली को विश्व का सबसे प्रदूषित शहर बताया गया था। पूरे वर्ष यहां की हवा खराब रहती है। सर्दी में समस्या और बढ़ जाती है। अदालत से लेकर संसद तक इस समस्या पर चिंता जताने के बाद भी स्थिति में सुधार नहीं है। वाराणसी में भी वायु प्रदूषण से होने वाली मौत 10 प्रतिशत से अधिक है।

डब्ल्यूएचओ के मानक का करना होगा पालन

भारत के स्वच्छ वायु मानदंड विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के 15 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर के दिशा निर्देश से चार गुना अधिक है। यही कारण है कि वायु प्रदूषण के लिहाज से बेहतर माने जाने वाले शहरों में भी लोगों की जान जा रही है। माना जाता है कि मुंबई, बेंगलुरु, कोलकाता और चेन्नई जैसे शहरों में हवा अपेक्षाकृत साफ रहती है, परंतु इन शहरों में भी प्रदूषण से मरने वालों की संख्या अधिक है।

इसका कारण हवा में पीएम 2.5 का स्तर डब्ल्यूएचओ के मानक से अधिक होना। अध्ययन में कहा गया है कि भारत को अपने स्वच्छ वायु मानदंडों को कम से कम डब्ल्यूएचओ के दिशा निर्देश के अनुरूप कम करना चाहिए, जिससे कि नागरिकों को प्रदूषित हवा के खतरों से बचाया जा सके।

पीएम 2.5 में 10 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर की वृद्धि होने पर प्रतिदिन मरने वालों की संख्या1.4 प्रतिशत अधिक हो जाती है। वायु प्रदूषण के स्थानीय स्रोतों के प्रभाव को अलग-अलग करने वाले तकनीक का उपयोग करने पर यह लगभग दोगुना 3.57 प्रतिशत हो गया।

अध्ययन में शामिल संस्थान

भारत के सस्टेनेबल फ्यूचर्स कोलैबोरेटिव, अशोका यूनिवर्सिटी, सेंटर फॉर क्रानिक डिजीज कंट्रोल), स्वीडन के कारोलिंस्का इंस्टीट्यूट और अमेरिका के बोस्टन यूनिवर्सिटी व हार्वर्ड यूनिवर्सिटी।

वर्ष 2008- 2019 के बीच मृत्यु दर के आंकड़ों का किया गया अध्ययन

अध्ययन में दिल्ली, वाराणसी, कोलकाता, पुणे, अहमदाबाद, हैदराबाद, मुंबई, चेन्नई, बेंगलुरु, शिमला 10 शहरों में पीएम 2.5 के संपर्क और वर्ष 2008 से वर्ष 2019 के बीच मृत्यु दर की गणना के आंकड़ों का उपयोग किया गया। इन शहरों में प्रत्येक वर्ष होने वाली कुल मौतों में से 7.2 प्रतिशत (लगभग 33,000) पीएम 2.5 से जुड़ी हो सकती हैं।

शहर-हवा में पीएम2.5 से होने वाली मौत-कुल मौत का प्रतिशत

दिल्ली-12000-11.5

वाराणसी-830-10.2

कोलकाता-4700-7.3

पुणे-1400-5.9

अहमदाबाद-2500-5.6

हैदराबाद-1600-5.6

मुंबई-5100-5.6

चेन्नई-2900-4.9

बेंगलुरु-2100-4.8

शिमला-59-3.7

स्थिति में सुधार की जरूरत

मौजूद वायु प्रदूषण नीति ‘नान-अटेनमेंट सिटी (आधिकारिक तौर पर घोषित वायु पर्यदूषण से सबसे ज्यादा प्रभावित शहर) '' पर केंद्रित है। यह शहरों को प्रदूषण से बचाने के लिए कारगर नहीं है। डब्ल्यूएचओ के मानक से अधिक प्रदूषण वाले शहरों के लिए उचित कदम उठाया जाना चाहिए।

-ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान जैसी नीतिगत तंत्र/क्रिया प्रणाली प्रदूषण की उच्चतम सीमा पर ध्यान केंद्रित करते हैं। उन्हें पूरे वर्ष कार्रवाई पर ध्यान केंद्रित करना होगा।

-वायु प्रदूषण के अव्यवस्थित स्थानीय स्रोतों को तार्किक रूप से समझ हेतु बेहतर ढंग से नीतिगत साधन विकसित करना होगा।

सस्टेनेबल फ्यूचर्स कोलैबोरेटिव में फेलो और अध्ययन के प्रमुख लेखक डॉ भार्गव कृष्णा ने कहा, अध्ययन के परिणाम बताते हैं कि वायु प्रदूषण को कम करना एक राष्ट्रव्यापी चुनौती है। कम प्रदूषित माने जाने वाले शहरों में भी वायु प्रदूषण के कारण मृत्यु दर पर काफी प्रभाव पड़ता है। पूरे वर्ष राष्ट्रव्यापी कड़े अभियान की आवश्यकता है।


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