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Delhi MCD: पढ़िये- दिल्ली नगर निगम के बनने की रोचक कहानी, शीला दीक्षित को क्यों करना पड़ा था बंटवारा

Delhi Municipal Corporation दिल्ली नगर निगम (Delhi Municipal Corporation) राजधानी के तीन स्थानीय निकायों में से एक है। दिल्ली में नई दिल्ली नगर परिषद और दिल्ली छावनी बोर्ड भी हैं जो लोगों को सेवाएं देने का कार्य करते हैं।

By Jp YadavEdited By: Updated: Sat, 05 Nov 2022 10:37 AM (IST)
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दिल्ली नगर निगम की की फाइल फोटो।
नई दिल्ली, जागरण संवाददता। देश की राजधानी में लोगों को नागरिक सेवाएं बेहतर तरीके से उपलब्ध हों, इसके लिए दिल्ली नगर निगम, नई दिल्ली नगर पालिका परिषद और दिल्ली छावनी बोर्ड का गठन किया गया है। इनमें सबसे महत्वपूर्ण है दिल्ली नगर निगम। दिल्ली नगर निगम देश ही नहीं, बल्कि दुनिया की सबसे बड़ी नगर पालिका संगठन है। बताया जाता है कि दिल्ली नगर निगम तकरीबन डेढ़ करोड़ लोगों को नागरिक सेवाएं प्रदान करता है। राजधानी दिल्ली के लोगों को बेहतर सेवाएं देने के लिए दिल्ली नगर निगम 7 अप्रैल, 1985 को अस्तित्व में आया।

पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के शासनकाल में वर्ष 2011 के दिसंबर महीने में विधानसभा से दिल्ली नगर निगम संशोधन विधेयक पारित किया गया था। इसके तहत एमसीडी को तीन भागों में बांटा गया। दिल्ली विधानसभा से पारित होने के बाद 2012 में निगम चुनाव से पहले एमसीडी को तीन भागों में विभाजन को क्रियान्वित किया गया। 20 साल फिर दिल्ली नगर निगम एक हो गया है। अब पूर्वी दिल्ली नगर निगम, उत्तर दिल्ली नगर निगम और दक्षिणी दिल्ली नगर निगम एक हो गया है। 2022 में चुनाव के बाद दिल्ली नगर निगम का एक मेयर होगा। नई दिल्ली में लगभग 80 प्रतिशत इमारतों का स्वामित्व नई दिल्ली नगर परिषद क्षेत्र के पास है।  

1. 23 अप्रैल 1863 को हुई नगर पालिका की पहली नियमित बैठक

वर्ष 1863 से पहले की अवधि का दिल्ली में स्वायत शासन का कोई अभिलिखित इतिहास उपलब्ध नहीं है, लेकिन वर्ष 1862 में में किसी एक प्रकार की नगर पालिका के सबूत मौजूद हैं। तत्कालीन पंजाब सरकार की एक अधिसूचना के अनुसार दिनांक 13 दिसंबर 1862 में 1850 का अधिनियम दिल्ली में लागू हुआ था। नगर पालिका की पहली नियमित बैठक 23 अप्रैल 1863 को हुई थी। जिसमें स्थानीय नागरिक आमंत्रित किए गए थे। एक जून 1863 को आयोजित हुई अन्य बैठक की अध्यक्षता दिल्ली के कमिश्नर ने की थी और उपयुक्त ढंग से उसके कार्यवृत लिखे गए थे।

2. 1874 में नगर पालिका ने सरकारी नजूल संपत्तियों को हस्तगत किया

वर्तमान के चांदनी चौक में मौजूद ऐतिहासिक टाउन हॉल के भवन का निर्माण वर्ष 1866 में पूरा हुआ था। इसके निर्माण में उस समय 1.86 लाख रुपये की लागत आई थी। पहले इसे लारेंस इंस्टीट्यूट कहा जाता था फिर इसे इंस्टीट्यूट बिल्डिंग के नाम से भी जाना जाता था। सन् 1864 और 1869 के मध्य में टाउनहॉल में घंटाघर का निर्माण किया गया। उस समय इस पर 22 हजार 136 रुपये की लागत आई थी। वर्ष 1874 में नगर पालिका ने सरकारी नजूल संपत्तियों को हस्तगत किया था।

3. धर्म के अनुसार सदस्य निर्वाचित

वर्ष 1881 में नगर पालिका को प्रथम श्रेणी की कमेटी में वर्गीगत किया गया और उसके 21 सदस्य थे। यहां पर पहली बार सदस्यों को क्षेत्र के अनुसार नहीं बल्कि धर्म के अनुसार सदस्य निर्वाचित होते थे। इन 21 सदस्यों में से छह सदस्य अधिकारी वर्ग से होते थे, जबकि शेष सदस्य गैर-सरकारी वर्ग से होते थे। इन गैर-सरकारी सदस्यों में से तीन सदस्य यूरोपियन, छह हिन्दू और छह मुस्लिम धर्म से होते थे।

4. घटाई गई पदेन सदस्यों की संख्या

दिल्ली में बृहद दरबार के बाद नगर पालिका के गठन में पुनः परिवर्तन किया गया। पदेन सदस्यों की संख्या तीन तक सीमित कर दी गई और निर्वाचित होने वाले सदस्यों की संख्या को भी घटाकर 11 कर दिया गया। मनोनीत सदस्यों की संख्या भी निर्वाचित होने वाले सदस्यों के बराबर 11 तक कर दी गई। इसके सन् 1921-22 में नियमों में पुनः संशोधन हुआ तो नगर को 12 वार्ड में विभाजित किया गया। जहां एक हिंदू तो एक मुस्लिम सदस्य को चुनकर भेजा जाता था। कुछ समय बाद सदस्यों की संख्या बढ़कर 36 हुई तो इसमें दो पदेन चार सदस्यों को मनोनीत करने की व्यवस्था हुई। विशिष्ट अभिरुचि द्वारा चुने गए छह सदस्य तथा वार्ड 24 सदस्य चुने जाते थे।

5. 1946 में लोगों को मिला था अध्यक्ष चुनने का अधिकार

वर्ष 1946 में लोगों को अपने प्रेसीडेंट (अध्यक्ष) को चुनने का अधिकार दिया गया। शेख हबीबुर्रहमान चुने हुए पहले अध्यक्ष थे, लेकिन भारत आजाद हुआ तो विभाजन के दौरान हबीबुर्रहमान पाकिस्तान चले गए। इनके बाद डा. युद्धवीर सिंह को उनके स्थान पर अध्यक्ष चुना गया। वस्यक मताधिकार के अधिकार पर नियमित चुनाव 15 अक्टूबर 1951 को हुए। सदस्यों की संख्या बढ़कर 63 हो गई, जिसमें 50 सदस्य निर्वाचन द्वारा आते थे। हालांकि कुल निर्वाचन क्षेत्र 47 ही थे। ऐसे में तीन निर्वाचन क्षेत्र ऐसे थे जहां पर अनुसूचित जाति का प्रतिनिधित्व होने की वजह से वहां दो सदस्य चुने जाते थे।

6. 1967 में बढ़ी थी निगम के सदस्यों की संख्या

वर्ष 1967 में निगम के सदस्यों की संख्या 80 से बढ़ाकर 100 कर दी गई।. जबकि छह एल्डरमैन पहले की तरह यथावत रहे। 24 मार्च 1975 को निगम भंग कर दी गई। निगम की पांचवी अवधि के लिए चुनाव 12 जून 1977 को हुए। 11 अप्रैल 1980 को गृहमंत्रालय के आदेश के तहत निगम को छह मास के लिए भंग कर दिया गया। 

यह भी जानें

  • 5 फरवरी 1983 को चुनाव होने के पश्चात निगम का छठी अवधि के विधिवत गठन किया गया। इसके बाद 31 मार्च 1997 तक निगम में प्रशासक व विशेष अधिकारी नियुक्त रहे। जिन्होंने निगम के कार्यों का निष्पादन किया।
  • निगम सेवाओं के विकेंद्रीकरण की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए संसदीय विधायकी द्वारा 1993 में दिल्ली नगर निगम (संशोधित) अधिनियम 1993 में (अधिनियम 1993 का 67) में विस्तृत संशोधन किया गया। इसे 17 सितंबर 1993 को संसद द्वारा पारित किया गया। इसके प्रावधान को एक अक्टूबर 1993 को लागू किया गया।
  • संशोधित अधिनियम के आधार पर 1997 में चुनाव होने के बाद एक अप्रैल 1997 को नगर निगम का पुन: गठन हुआ। इसके बाद पांच-पांच वर्ष के कार्यकाल पूरा होने पर निगम का पुनर्गठन किया गया।
  • इसके बाद वर्ष 2011 में दिल्ली नगर निगम अधिनियम में संशोधन कर दिल्ली नगर निगम को तीन निगम (उत्तरी, पूर्वी और दक्षिणी दिल्ली नगर निगम) के रूप में विभाजित किया गया।
  • पूर्वी निगम का गठन एक मई 2012 को 64 पार्षदों के साथ हुआ और दक्षिणी निगम का गठन 2 मई 2012 को 104 पार्षदों के साथ हुआ। प्रत्येक निगम में दस-दस एल्डरमेन की भी व्यवस्था की गई। यह मनोनीत सदस्य दिल्ली विधानसभा में सत्तारुढ़ सरकार की अनुशंसा पर उपराज्यपाल नियुक्त करते थे।
  • दिल्ली सरकार से पर्याप्त फंड न मिलने और निगमों की खराब आर्थिक हालात को देखते हुए केंद्र सरकार ने 9 मार्च 2022 को उपराज्यपाल को पत्र भेजकर दिल्ली के तीनों निगमों को एक करने की बात कही। 
  • इसके बाद केंद्र 22 मार्च 2022 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में हुई केंद्रीय कैबिनेट ने तीनों निगम के एकीकरण के लिए दिल्ली नगर निगम संशोधन विधयेक 2022 को मंजूरी दे दी।
  • 30 मार्च को लोकसभा में इस बिल को पारित कर दिया गया। जबकि पांच अप्रैल को राज्यसभा में पारित कर दिया गया।
  • 18 अप्रैल को इस बिल को राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द ने मंजूरी दे दी। इस संशोधन में सरकार का अर्थ केंद्र सरकार कर दिया गया। इससे निगम से जुड़े फैसले लेने की सारी शक्तियां केंद्र सरकार के पास चली गई।
  • 18 मई को को केंद्रीय गृहमंत्रालय ने आदेश जारी कर कहा कि 22 मई से संशोधित एक्ट लागू हो जाएगा। 20 मई को विशेष अधिकारी के तौर पर 1992 बैच के आइएएस अश्वनी कुमार को बतौर विशेष अधिकारी नियुक्त किया गया।
  • 1998 बैच के आइएएस ज्ञानेश भारती को एकीकृत निगम का आयुक्त नियुक्त किया गया। ज्ञानेश भारती पूर्वकालिक दक्षिणी निगम के भी आयुक्त थे। इस प्रकार 22 मई 2022 को फिर से एक बार दिल्ली नगर निगम का उदय हुआ।
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