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Exclusive Interview: बिना किसी बाध्यता के मिले प्रदूषण मुक्त आबोहवा : सुनीता नारायण

सार्वजनिक परिवहन प्रणाली मजबूत करनी होगी। औद्योगिक इकाइयों को स्वच्छ ईधन पर लाना होगा। ट्रक व अन्य भारी वाहनों को अविलंब बीएस--6 पर लाया जाए।

By Arun Kumar SinghEdited By: Updated: Wed, 08 Jul 2020 09:16 AM (IST)
Exclusive Interview: बिना किसी बाध्यता के मिले प्रदूषण मुक्त आबोहवा : सुनीता नारायण
नई दिल्ली। कोरोना महामारी के बीच लॉकडाउन-अनलॉक में दिल्ली का पर्यावरण ही बेहतर नहीं हुआ, बल्कि इससे भविष्य को लेकर एक उम्मीद भी जगी है। साफ हवा में हर कोई खुलकर सांस ले रहा है। आगे ऐसी ही स्थिति कैसे बनाए रखी जा सकती है और इसके लिए क्या योजनाएं बनाई जानी चाहिए, इन विषयों को लेकर नईदुनिया के सहयोगी प्रकाशन दैनिक जागरण के संजीव गुप्ता ने जानी--मानी पर्यावरणविद व सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) की महानिदेशक सुनीता नारायण से लंबी बातचीत की। प्रस्तुत हैं मुख्य अंश :--

 लॉकडाउन को कैसे देखती हैं आप? इससे क्या सीख मिली? 

-लॉकडाउन ने लोगों को भले ही घरों में कैद कर दिया, लेकिन हवा को प्रदूषण से बिल्कुल मुक्त कर दिया। मृतप्राय यमुना को भी जैसे फिर से जीवन मिल गया। लेकिन यह सब तब हुआ, जब जिंदगी भी ठहर सी गई थी। होना यह चाहिए कि बिना किसी बाध्यता के हमें खुलकर सांस लेने के लिए प्रदूषण मुक्त आबोहवा मिले। 

 किस तरह के उपायों से पर्यावरण में सुधार आगे भी बरकरार रह सकता है?

-सार्वजनिक परिवहन प्रणाली मजबूत करनी होगी। औद्योगिक इकाइयों को स्वच्छ ईधन पर लाना होगा। ट्रक व अन्य भारी वाहनों को अविलंब बीएस--6 पर लाया जाए। इलेक्टि्रक वाहनों को बढ़ावा दिया जाए। पैदल चलने की प्रवृत्ति और साइकिलिंग को प्रोत्साहित किया जाए। 

 लॉकडाउन और अनलॉक के बीच दैनिक जागरण की भूमिका को लेकर आप क्या कहेंगी? 

-किसी महामारी के दौर में एक राष्ट्रीय समाचार पत्र की जो भूमिका होनी चाहिए, उस पर दैनिक जागरण सौ फीसद खरा उतरा है। तमाम बाधाओं को पार करते हुए जागरण रोज हमारे पास आया। इसका वेब पोर्टल भी उपयोगी साबित हुआ। जागरण ने इस कठिन दौर में भ्रम दूर किया और समाज को सच से रूबरू कराया। 

 दैनिक जागरण की पत्रकारिता को लेकर क्या विचार हैं? 

दैनिक जागरण ने क्रिस्टल क्लियर पत्रकारिता की। जागरण की टीम ने इस कठिन दौर में हर अहम घटना को बेहतर ढंग से प्रस्तुत किया। जब घर में बैठे--बैठे लोग तनाव और अवसाद का शिकार हो रहे थे, तब जागरण ने नए-नए कॉलम शुरू करके उन्हें इससे भी उबारने का प्रयास किया। 

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