Munshi Premchand: प्रेमचंद की रचनाओं में बसती है एक दुनिया, मन को छू जाते हैं 'सूरदास' और 'होरी' जैसे किरदार
Munshi Premchand प्रेमचंद ने कहानियों और उपन्यासों के जरिये हर वर्ग को प्रभावित किया जो ग्रामीण परिवेश से जुड़ा है। उनके अधिकतर पात्र ग्रामीण परिवेश से हैं। उपन्यासों की लोकप्रियता के चलते ही प्रेमचंद को उपन्यास सम्राट कहा जाता है।
By Jp YadavEdited By: Updated: Sun, 31 Jul 2022 02:42 PM (IST)
नई दिल्ली, जागरण ऑनलाइन डेस्क। किसी भी लेखक और उसकी रचना की सफलता इस बात में है कि वह पाठक के हृदय को द्रवित करने के साथ ही अपनी कथनी के उद्देश्य में सफल भी हो जाए। 20वीं सदी के महान उपन्यासकार-कथाकार मुंशी प्रेमचंद अपने रचनाकर्म के माध्यम से पाठकों के हृदय में सफलतापूर्वक उतरते हैं और उसे अपना बना लेते हैं।
किसान, मजदूर रहे प्रेमचंद के अहम पात्रउत्तर से लेकर दक्षिण और पूरब से लेकर पश्चिम तक, अगर भारत को आज भी समझना है तो प्रेमचंद की कृतियां पर्याप्त हैं। आज भी भारत के गांवों में 'गोदान' के 'होरी', 'धनिया' और 'गोबर' जैसे पात्र मौजूद हैं, जिनका जिक्र प्रेमचंद 100 बरस पहले कर चुके हैं। झूठ आडंबर और पाखंड के चंगुल में फंसे ये पात्र आज भी उसी दर्द से गुजर रहे हैं, जो प्रेमचंद के पात्रों ने भुगता है।
निडर भी हैं प्रेमचंद के पात्र'क्या बिगाड़ के डर से ईमान की बात न कहोगे' यह संवाद मुंशी प्रेमचंद मशहूर कहानी 'पंच परमेश्वर' का है। जब खाला के साथ छल करके जुम्मन शेख उनकी जमीन लिखवा लेते हैं और खाला की सेवा करना बंद कर देते हैं उस समय खाला उनके मित्र अलगू चौधरी को पंच बनाती हैं और उनसे न्याय की गुहार लगाती हैं। अलगू कहता है कि जुम्मन मेरा पुराना मित्र है उसके खिलाफ न्याय करके हमारी दोस्ती में बिगाड आ जाएगा तब खाला कहती हैं- 'क्या बिगाड़ के डर से ईमान की बात न कहोगे?' ये शब्द अलगू चौधरी के मन में बैठ जाते है और वो पंच बनने को तैयार हो जाते हैं।
इसी तरह 'रंगभूमि' उपन्यास का आदर्शवादी पात्र 'सूरदास' भी है, जो कारखाना लगाने का विरोध इसलिए कहता है कि क्योंकि उस डर है कि इससे गांव में व्यभिचार फैलेगा। वह कारखाना लगाने का विरोध करते-करते मर जाता है, लेकिन वह अपनी जमीन देने के लिए तैयार नहीं होता है। कहा तो यह जाता है कि प्रेमचंद का यह पात्र गांधी का प्रतीक है, जो अंत में मारा तो जाता है, लेकिन अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं करता।
दुनियाभर के लेखकों पर था प्रेमचंद का प्रभाव यही वजह है कि प्रेमचंद भारत से बाहर यूरोप और अमेरिका समेत अन्य महाद्वीप में भी लोकप्रिय हैं। 20वीं सदी के समकालीन लेखकों में प्रेमचंद के लेखन का प्रभाव भी देखने को मिलता है। मैक्सिम गोर्की और एंटोन चेखव दोनों ही प्रेमचंद से प्रभावित थे। या यूं कहें कि उस दौर के सभी लेखक, उपन्यासकार और कथाकार मुंशी प्रेमचंद की लेखनी के दीवाने थे।
चेखव और प्रेमचंद में समानता यूं तो रचनाएं अपने समय की दस्तावेज थी। किसी भी रचना पर देश-काल और परिस्थितियों का प्रभाव पड़ता है। बावजूद इसके हजारों किलोमीटर के फासले पर रहने वाले मुंशी प्रेमचंद और चेखव में कई समानताएं थीं। दोनों की रचनाओं में आम आदमी प्रमुख रहा। मुंशी प्रेमचंद के मत से ‘चेखव संसार के सर्वश्रेठ कहानी लेखक’ हैं।कृतियों में गरीबों और असहाय का दर्ज
जिस तरह से प्रेमचंद के उपन्यासों, कहानियों और अन्य रचनाओं में भारत के गांव हैं उनके पात्रों के अपार दुख और कष्ट हैं, उसी तरह चेखव की कृतियां भी मानव मन को द्रवित कर देती हैं। चेखव की कृतियों में भी किसान और तरक्की के सबसे निचने पायदान पर खड़ा वह व्यक्ति है, जो दो जून की रोटी में अपना सबकुछ स्वाहा कर रहा है। गोदान और रंगभूमि के पात्र बयां करते हैं भारत की सच्चाई
'गोदान' और 'रंगभूमि' के जरिये प्रेमचंद आम आदमी और किसानों की समस्याओं को जिस तरह सामने आते हैं। ठीक वैसे चेखव के किसान’ (1897) लघु उपन्यास में जार कालीन रूस के गांवों की दु:खप्रद कहानी प्रस्तुत की गई है।हां यह अलग बात है कि प्रेमचंद ने अपनी कृतियों को पात्रों के दर्द को जिस तरह से बयां किया है वह अद्भुत हैं। वहीं, दूसरी ओर चेखव भी किसानों और ग्रामीण परिवेश का सजीव चित्रण करते हुए रचना कर्म का सफल निर्वाह करते नजर आते हैं।
हिंदी साहित्य का वह सितारा, जिसकी कभी कम ना होगी चमक
यही वजह है कि सदी बीतने के बाद भी यानी कई दशकों बाद प्रेमचंद की कृतियां पाठक को उस दौर में सफलतापूर्वक ले जाती हैं, जहां उसके पात्र अपने धर्म और रीति-रिवाज के लिए जान गंवाते नजर आते हैं। 'गोदान' उपन्यास का पात्र 'होरी' हो या फिर 'रंगभूमि' उपन्यास का पात्र 'सूरदास'।दोनों ही पात्रों का अंत बहुत दुखद हैं, लेकिन होरी और सूरदास के जरिये मुंशी प्रेमचंद बहुत कुछ कह जाते हैं। दोनों ही उन्यास को 100 बरस पूरे होने को हैं, लेकिन पात्र आज भी किसी गांव में जिंदा हैं, बस प्रेमचंद जैसा नजरिया चाहिए। शरतचंद ने प्रेमचंद को कहा था उपन्यास सम्राट प्रेमचंद ने बहुत कम उम्र में लिखना शुरू किया। इसके बाद धीरे-धीरे उनका रचना संसार किस तरह समृद्ध हुआ, यह देश-दुनिया ने देखा। महान लेखक शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने हिन्दी और उर्दू के महानतम लेखकों में शुमार मुंशी प्रेमचंद को उपन्यास सम्राज कहकर संबोधित किया। आज भी प्रेमचंद का उपन्यास सम्राट कहा जाता है। हिंदी फिल्मों में भी है प्रेमचंद का योगदानप्रेमचंद हिन्दी सिनेमा के सबसे अधिक लोकप्रिय साहित्यकारों में से हैं। सत्यजित राय ने उनकी दो कहानियों पर यादगार फ़िल्में बनाईं। 1977 में 'शतरंज के खिलाड़ी' और 1981 में 'सद्गति'। प्रेमचंद के निधन के दो साल बाद सुब्रमण्यम ने 1938 में 'सेवासदन' उपन्यास पर फ़िल्म बनाई जिसमें सुब्बालक्ष्मी ने मुख्य भूमिका निभाई थी। टीवी धारावाहिक निर्मला भी हुआ लोकप्रिय1977 में मृणाल सेन ने प्रेमचंद की कहानी 'कफन' पर आधारित 'ओका ऊरी कथा' नाम से एक तेलुगु फ़िल्म बनाई, जिसको सर्वश्रेष्ठ तेलुगु फिल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला। 1963 में 'गोदान' और 1966 में 'गबन' कहानी लोकप्रिय फिल्में बनीं। 1980 में उनके उपन्यास पर बना टीवी धारावाहिक 'निर्मला' भी बहुत लोकप्रिय हुआ था।बहुमुखी प्रतिभा के धनी प्रेमचंद ने उपन्यास, कहानी, नाटक, समीक्षा, लेख, सम्पादकीय, संस्मरण आदि अनेक विधाओं में साहित्य की रचना की। प्रमुखतया उनकी ख्याति कथाकार के तौर पर हुई और अपने जीवन काल में ही वे 'उपन्यास सम्राट' की उपाधि से सम्मानित हुए। उन्होंने कुल 15 उपन्यास, 300 से कुछ अधिक कहानियां, 3 नाटक, 10 अनुवाद, 7 बाल-पुस्तकें तथा हजारों पेज के लेख, सम्पादकीय, भाषण, भूमिका, पत्र आदि की रचना की।प्रेमचंद पर डाक टिकट भी जारी हुआमुंशी प्रेमचंद की स्मृति में भारतीय डाक विभाग ने 31 जुलाई, 1980 को उनकी जन्मशती पर 30 पैसे मूल्य का एक डाक टिकट जारी किया। गोरखपुर के जिस स्कूल में वे शिक्षक थे, वहां प्रेमचंद साहित्य संस्थान की स्थापना की गई है। इसके बरामदे में एक भित्तिलेख है। यहां उनसे संबंधित वस्तुओं का एक संग्रहालय भी है। जहां उनकी एक वक्षप्रतिमा भी है।विदेशी भाषाओं में भी हुआ प्रेमचंद की कृतियों का अनुवादप्रेमचंद की पत्नी शिवरानी देवी ने प्रेमचंद घर में नाम से उनकी जीवनी लिखी और उनके व्यक्तित्व के उस हिस्से को उजागर किया है, जिससे लोग अनभिज्ञ थे। उनके ही बेटे अमृत राय ने 'क़लम का सिपाही' नाम से पिता की जीवनी लिखी है। उनकी सभी पुस्तकों के अंग्रेजी व उर्दू रूपांतर तो हुए ही हैं, चीनी, रूसी आदि अनेक विदेशी भाषाओं में उनकी कहानियां लोकप्रिय हुई हैं।31 जुलाई, 1880 को वाराणसी जिले (उत्तर प्रदेश) के लमही गांव में जन्में प्रेमचंद ने मात्र 13 साल की उम्र में रचनाएं लिखनी शुरू कर दीं थीं। 8 अक्टूबर 1936 को बनारस में ही उनका निधन हुआ।मुंशी प्रेमचंद की प्रमुख कृतियां
आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।यही वजह है कि सदी बीतने के बाद भी यानी कई दशकों बाद प्रेमचंद की कृतियां पाठक को उस दौर में सफलतापूर्वक ले जाती हैं, जहां उसके पात्र अपने धर्म और रीति-रिवाज के लिए जान गंवाते नजर आते हैं। 'गोदान' उपन्यास का पात्र 'होरी' हो या फिर 'रंगभूमि' उपन्यास का पात्र 'सूरदास'।दोनों ही पात्रों का अंत बहुत दुखद हैं, लेकिन होरी और सूरदास के जरिये मुंशी प्रेमचंद बहुत कुछ कह जाते हैं। दोनों ही उन्यास को 100 बरस पूरे होने को हैं, लेकिन पात्र आज भी किसी गांव में जिंदा हैं, बस प्रेमचंद जैसा नजरिया चाहिए। शरतचंद ने प्रेमचंद को कहा था उपन्यास सम्राट प्रेमचंद ने बहुत कम उम्र में लिखना शुरू किया। इसके बाद धीरे-धीरे उनका रचना संसार किस तरह समृद्ध हुआ, यह देश-दुनिया ने देखा। महान लेखक शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने हिन्दी और उर्दू के महानतम लेखकों में शुमार मुंशी प्रेमचंद को उपन्यास सम्राज कहकर संबोधित किया। आज भी प्रेमचंद का उपन्यास सम्राट कहा जाता है। हिंदी फिल्मों में भी है प्रेमचंद का योगदानप्रेमचंद हिन्दी सिनेमा के सबसे अधिक लोकप्रिय साहित्यकारों में से हैं। सत्यजित राय ने उनकी दो कहानियों पर यादगार फ़िल्में बनाईं। 1977 में 'शतरंज के खिलाड़ी' और 1981 में 'सद्गति'। प्रेमचंद के निधन के दो साल बाद सुब्रमण्यम ने 1938 में 'सेवासदन' उपन्यास पर फ़िल्म बनाई जिसमें सुब्बालक्ष्मी ने मुख्य भूमिका निभाई थी। टीवी धारावाहिक निर्मला भी हुआ लोकप्रिय1977 में मृणाल सेन ने प्रेमचंद की कहानी 'कफन' पर आधारित 'ओका ऊरी कथा' नाम से एक तेलुगु फ़िल्म बनाई, जिसको सर्वश्रेष्ठ तेलुगु फिल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला। 1963 में 'गोदान' और 1966 में 'गबन' कहानी लोकप्रिय फिल्में बनीं। 1980 में उनके उपन्यास पर बना टीवी धारावाहिक 'निर्मला' भी बहुत लोकप्रिय हुआ था।बहुमुखी प्रतिभा के धनी प्रेमचंद ने उपन्यास, कहानी, नाटक, समीक्षा, लेख, सम्पादकीय, संस्मरण आदि अनेक विधाओं में साहित्य की रचना की। प्रमुखतया उनकी ख्याति कथाकार के तौर पर हुई और अपने जीवन काल में ही वे 'उपन्यास सम्राट' की उपाधि से सम्मानित हुए। उन्होंने कुल 15 उपन्यास, 300 से कुछ अधिक कहानियां, 3 नाटक, 10 अनुवाद, 7 बाल-पुस्तकें तथा हजारों पेज के लेख, सम्पादकीय, भाषण, भूमिका, पत्र आदि की रचना की।प्रेमचंद पर डाक टिकट भी जारी हुआमुंशी प्रेमचंद की स्मृति में भारतीय डाक विभाग ने 31 जुलाई, 1980 को उनकी जन्मशती पर 30 पैसे मूल्य का एक डाक टिकट जारी किया। गोरखपुर के जिस स्कूल में वे शिक्षक थे, वहां प्रेमचंद साहित्य संस्थान की स्थापना की गई है। इसके बरामदे में एक भित्तिलेख है। यहां उनसे संबंधित वस्तुओं का एक संग्रहालय भी है। जहां उनकी एक वक्षप्रतिमा भी है।विदेशी भाषाओं में भी हुआ प्रेमचंद की कृतियों का अनुवादप्रेमचंद की पत्नी शिवरानी देवी ने प्रेमचंद घर में नाम से उनकी जीवनी लिखी और उनके व्यक्तित्व के उस हिस्से को उजागर किया है, जिससे लोग अनभिज्ञ थे। उनके ही बेटे अमृत राय ने 'क़लम का सिपाही' नाम से पिता की जीवनी लिखी है। उनकी सभी पुस्तकों के अंग्रेजी व उर्दू रूपांतर तो हुए ही हैं, चीनी, रूसी आदि अनेक विदेशी भाषाओं में उनकी कहानियां लोकप्रिय हुई हैं।31 जुलाई, 1880 को वाराणसी जिले (उत्तर प्रदेश) के लमही गांव में जन्में प्रेमचंद ने मात्र 13 साल की उम्र में रचनाएं लिखनी शुरू कर दीं थीं। 8 अक्टूबर 1936 को बनारस में ही उनका निधन हुआ।मुंशी प्रेमचंद की प्रमुख कृतियां
- सुशीला की मृत्यु
- दो सखियां
- बुढ़ी काकी
- देवी
- विरजन की विदा
- सोहाग का शव
- झांकी
- पैपुजी
- कमलाचरण के मित्र
- आत्म-संगीत
- क्रिकेट मैच
- कायापलट
- एक्ट्रेस
- ज्योति
- कोई दुख न हो तो बकरी खरीद ला
- भ्रम
- ईश्वरीय न्याय
- दिल की रानी
- दुनिया का सबसे अनमोल रतन
- कर्तव्य और प्रेम का संघर्ष
- ममता
- धिक्कार
- शेख मखगूर
- स्नेह पर कर्त्तव्य की विजय
- मंत्र
- बोहनी
- शोक का पुरस्कार
- कमला के नाम विरजन के पत्र
- प्रायश्चित
- बंद दरवाजा
- सांसारिक प्रेम और देशप्रेम
- प्रतापचन्द्र और कमलाचरण
- कप्तान साहब
- तिरसूल
- विक्रमादित्य का तेगा
- नमक का दारोगा
- दो बैलों की कथा
- पंच- परमेश्वर
- एक आंच की कसर
- नैराश्य लीला
- उद्धार
- विजय
- कौशल
- नरक का मार्ग
- धिक्कार
- वफ़ा का खंजर
- माता का ह्रदय
- निर्वासन
- लैला
- मुबारक बीमारी
- नैराश्य
- परीक्षा
- नेउर
- वासना की कड़ियॉँ
- अपनी करनी
- स्त्री और पुरुष
- शूद्र
- पुत्र-प्रेम
- गैरत की कटार
- स्वर्ग की देवी
- एकता का सम्बन्ध पुष्ट होता है
- इज्जत का खून
- घमण्ड का पुतला
- तेंतर
- देवी
- होली की छुट्टी
- दु:ख-दशा
- इस्तीफा
- स्वांग
- आखिरी मंजिल
- आल्हा
- नसीहतों का दफ्तर
- राजहठ
- त्रियाचरित्र
- मिलाप
- मनावन
- अंधेर
- सिर्फ एक आवाज
- बांका जमींदार
- अनाथ लड़की
- . कर्मों का फल
- जेल
- पत्नी से पति
- शराब की दूकान
- जुलूस
- मैकू
- समर-यात्रा
- शांति
- बैक का दिवाला
- आत्माराम
- बड़े घर की बेटी
- दुर्गा का मन्दिर
- शंखनाद
- नाग पूजा
- कफ़न
- आधार
- दण्ड
- शिष्ट-जीवन के दृश्य
- नादान दोस्त
- अमृत
- विश्वास
- बड़े बाबू
- प्रतिशोध
- राष्ट्र का सेवक
- खुदी
- सैलानी बंदर
- नब़ी का नीति-निर्वाह
- आख़िरी तोहफ़ा
- मन का प्राबल्य
- अलग्योझा
- मंदिर और मस्जिद
- क़ातिल
- विदुषी वृजरानी
- ईदगाह
- प्रेम-सूत्र
- वरदान
- माधवी
- मां
- तांगेवाले की बड़
- वैराग्य
- काशी में आगमन
- बेटों वाली विधवा
- शादी की वजह
- डिप्टी श्यामाचरण
- प्रेम का स्वप्न
- बडे भाई साहब
- मोटेराम जी शास्त्री
- सखियां
- विदाई
- शांति
- पर्वत-यात्रा
- निष्ठुरता और प्रेम
- मतवाली योगिनी
- नशा
- कवच
- नये पड़ोसियों से मेल-जोल
- सभ्यता का रहस्य
- स्वामिनी
- दूसरी शादी
- ईर्ष्या
- समस्या
- ठाकुर का कुआं
- सौत