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दिल्ली के किसान कर रहे खेती, पंजाब समेत कई राज्यों के प्रदर्शनकारी दे रहे धरना

कुतुबगढ़ गांव के किसान जोगेंद्र राणा कृषि कानूनों का खुलकर समर्थन करते हैं। उनका कहना है कि इन कानूनों से ही किसानों की जिंदगी में खुशहाली आएगी। जोगेंद्र राणा परिवार के साथ करीब 11 एकड़ जमीन पर गेहूं की खेती कर रहे हैं।

By JP YadavEdited By: Updated: Sat, 26 Dec 2020 09:52 AM (IST)
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दिल्ली व हरियाणा के कुछ ही लोग प्रदर्शन में हिस्सा ले रहे हैं।
नई दिल्ली [सोनू राणा]। देश की राजधानी दिल्ली के बॉर्डर (यूपी और हरियाणा) पर पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों के किसान धरने दे रहे हैं, वहीं दिल्ली के किसान मेहनत के दम पर मिट्टी से सोना उगाने के लिए दिन-रात एक कर रहे हैं। बॉर्डर पर बैठे प्रदर्शनकारियों को इन मेहनती किसानों से सीख लेनी चाहिए। दिल्ली के किसानों के अनुसार, मेहनत से ही खेती होती है। ऐसे धरना देने से कोई फसल नहीं होती। दिल्ली के किसानों के अनुसार, कृषि कानून उनके लिए फायदेमंद है। कृषि कानूनों के बनने से किसानों को आजादी ही मिली है। कुतुबगढ़ गांव के किसान जोगेंद्र राणा कृषि कानूनों का खुलकर समर्थन करते हैं। उनका कहना है कि इन कानूनों से ही किसानों की जिंदगी में खुशहाली आएगी। जोगेंद्र राणा परिवार के साथ करीब 11 एकड़ जमीन पर गेहूं की खेती कर रहे हैं। उनके अनुसार फसलों को उगाने में काफी मशक्कत करनी पड़ती है। अगर ऐसे बॉर्डर पर बैठे रहने से ही खेती हो जाए तो सभी खेती कर लें।

जोगेंद्र का कहना है कि यह समय गेहूं की फसल में सिंचाई करने का है। ऐसे समय पर अपने खेतों में न होकर दूसरी जगह पर बैठे होने का कोई मतलब नहीं है।

जोगेंद्र के अनुसार दिल्ली व हरियाणा के कुछ ही लोग प्रदर्शन में हिस्सा ले रहे हैं, वे भी नेताओं के कहने पर। उनका कहना है कि ये कानून किसानों के लिए काफी फायदेमंद साबित होंगे। उनके अनुसार दिल्ली के किसान इन कृषि कानूनों को रद नहीं करवाना चाहते हैं।

उन्होंने कहा कि उन्हें व उनके आसपास के लोगों को फसल बेचने के लिए अब नरेला व आजादपुर मंडी जाना पड़ता है। अगर वे कांट्रैक्ट फार्मिग करेंगे तो उनको न तो मंडियों में चक्कर काटने की जरूरत है और न ही पैसों के लिए महीनों इंतजार करना पड़ेगा। इसके अलावा वे हरियाणा में भी अपनी फसल बेच सकते हैं। उन्होंने कहा कि पहले मंडी में आढ़ती उनकी फसल के दाम निर्धारित करते थे, पर अब वे खुद ही अपनी फसल की कीमत निर्धारित कर सकते हैं।

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