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FCI किसानों की उम्मीदों पर फेर रहा पानी, औने-पौने दाम पर गेहूं बेचने को मजबूर अन्नदाता

बिजेंद्र ने बताया कि सोमवार को कई चक्कर काटने के बाद जब वह मंडी में गेहूं से भरी ट्राली लेकर पहुंचे तो मंडी अधिकारियों ने यह कहकर मना कर दिया कि गेहूं के दानों का विकास सही से नहीं हुआ है और दाने टूटे हुए हैं।

By Mangal YadavEdited By: Updated: Wed, 14 Apr 2021 02:48 PM (IST)
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एफसीआइ की ओर से सैंपल जांच के दौरान धांधली करने का भी आरोप लगाया।
नई दिल्ली [सोनू राणा]। नरेला स्थित फूड कारपोरेशन आफ इंडिया (एफसीआइ) के गोदाम में गेहूं की खरीद न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर शुरू होने से किसानों की खुशी का ठिकाना नहीं है। वह खुश होकर गेहूं लेकर गोदाम में पहुंच तो रहे हैं, लेकिन यहां उनके हाथ निराशा ही लग रही है। क्योंकि खरीद शुरू होते ही एफसीआइ दानों में कमी गिनाने लगा है। इस वजह से किसान औन-पौन दाम पर गेहूं मिल व आढ़तियों को बेचने को मजबूर हैं। बांकनेर गांव के बिजेंद्र खत्री भी एक ऐसे ही किसान हैं, जो काफी दिनों से गेहूं को एमएसपी पर बेचने के लिए कभी मंडी तो कभी एफसीआइ के गोदाम के चक्कर लगा रहे थे। लेकिन एफसीआइ की ओर से सैंपल रद करने के बाद उन्हें मजबूरी में अपने गेहूं मिल में बेचने पड़े।

बिजेंद्र ने बताया कि वह कई वर्षो से खेती कर रहे हैं। सोमवार को कई चक्कर काटने के बाद जब वह मंडी में गेहूं से भरी ट्राली लेकर पहुंचे तो मंडी अधिकारियों ने यह कहकर मना कर दिया कि गेहूं के दानों का विकास सही से नहीं हुआ है और दाने टूटे हुए हैं।

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उन्होंने बताया कि जब इतनी मेहनत से उगाई गई गेहूं की फसल के सैंपल रद करने का उन्होंने विरोध किया। इसके बाद मजबूरी में उन्हें गेहूं मिल में 1800 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से बेचने पड़े। उनके अनुसार एक ट्राली गेहूं एमएसपी 1975 रुपये से कम बेचने पर उन्हें करीब 12 हजार रुपये का नुकसान हुआ। उन्होंने एफसीआइ की ओर से सैंपल जांच के दौरान धांधली करने का भी आरोप लगाया।

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बिजेंद्र खत्री ने कहा कि छोटी-छोटी खामियों को दूर करने के बजाय किसानों के गेहूं को रद किया जा रहा है, मजबूरन मिलों में कम कीमत पर गेहूं बेचना पड़ रहा है। मौके पर मौजूद एफसीआइ के अधिकारियों ने बताया कि यह सैंपल इसलिए फेल किए गए क्योंकि गेहूं के दाने टूटे हुए थे और सिकुड़े हुए थे। उनका अच्छे से विकास नहीं हुआ था। साथ ही वह कूपन के अनुसार दस्तावेज नहीं लेकर आया था, जिस वजह से उसके गेहूं नहीं खरीदे गए।


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