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जामिया के अधिकारियों पर FIR दर्ज, कर्मचारी ने लगाया जातिगत टिप्पणी करने और धर्म परिवर्तन का दबाव बनाने का आरोप

जामिया पुलिस को दी शिकायत में पीड़ित ने बताया कि उनके साथ लगातार भेदभाव किया जाता रहा है। भेदभाव से बचने के लिए धर्म परिवर्तन का दबाव डाला जा रहा है। आरोप है कि एक प्रोफेसर ने पीड़ित से कहा था कि धर्म परिवर्तन करने के बाद उनके साथ कोई भेदभाव नहीं होगा। पीड़ित विश्वविद्यालय में अपर डिवीजन क्लर्क के पद पर है।

By uday jagtap Edited By: Sonu Suman Updated: Thu, 18 Jul 2024 10:59 PM (IST)
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जामिया के अधिकारियों पर जातिगत टिप्पणी करने और जबरन धर्म परिवर्तन का दबाव बनाने का आरोप।
जागरण संवाददाता, दक्षिणी दिल्ली। जामिया मिलिया इस्लामिया (जेएमआई) के वर्तमान और पूर्व कार्यवाहक रजिस्ट्रार और एक प्रोफेसर पर जातिगत टिप्पणी करने के मामले में प्राथमिकी दर्ज की गई है। प्राकृतिक विज्ञान विभाग में सहायक के रूप में कार्यरत एक कर्मचारी ने जबरन धर्म परिवर्तन कराने का दबाव डालने, जातिगत टिप्पणी व भेदभाव करने के आरोप तीनों पर लगाए हैं।

आरोपितों में पूर्व कार्यवाहक रजिस्ट्रार प्रोफेसर नाजिम हुसैन जाफरी, वर्तमान कार्यवाहक रजिस्ट्रार एम नसीम हैदर और विदेशी भाषा अध्ययन केंद्र के प्रोफेसर शाहिद तसलीम शामिल हैं। पुलिस सूत्रों के अनुसार शिकायतकर्ता राम निवास सिंह ने विश्वविद्यालय में तैनात तीनों अधिकारियों पर जबरन धर्म परिवर्तन के लिए दबाव डालने व जातिसूचक टिप्पणी करने सहित अन्य आरोप लगाए थे।

भेदभाव से बचने के लिए धर्म परिवर्तन का दबाव

पुलिस को दी शिकायत में पीड़ित ने बताया कि उनके साथ लगातार भेदभाव किया जाता रहा है। भेदभाव से बचने के लिए धर्म परिवर्तन का दबाव डाला जा रहा है। आरोप है कि एक प्रोफेसर ने पीड़ित से कहा था कि धर्म परिवर्तन करने के बाद उनके साथ कोई भेदभाव नहीं होगा। पीड़ित ने 30 मार्च 2007 को विश्वविद्यालय में अपर डिवीजन क्लर्क के रूप में अपनी सेवाएं देना शुरू किया था। अब वह विश्वविद्यालय में प्राकृतिक विज्ञान संकाय में सहायक के रूप में कार्यरत हैं।

जामिया प्रशासन ने आरोप को बताया निराधार और झूठी

जामिया नगर पुलिस ने शिकायत के आधार पर केस दर्ज कर जांच शुरू कर दी है। पूरे मामले में जेएमआई प्रशासन ने बयान जारी कर कहा है कि केस दर्ज करने की जानकारी मिली है। प्राथमिकी पूरी तरह से निराधार और झूठी है। राम निवास एक आदतन वादी हैं, जिन्होंने विश्वविद्यालय की अल्पसंख्यक स्थिति की चुनौती सहित कई मामले दायर किए हैं, लेकिन इन्हीं तक सीमित नहीं हैं और विश्वविद्यालय के सुचारू कामकाज में बाधा डालने की पूरी कोशिश कर रहे हैं।

प्रशासन ने कहा कि यह विश्वविद्यालय और वर्तमान प्रशासन को अस्थिर करने का एक प्रयास है। विश्वविद्यालय उचित कानूनी सहारा लेगा, क्योंकि एससी/एसटी अधिनियम की आवश्यक आवश्यकताएं प्राथमिकी में शामिल नहीं हैं और इस प्रकार, अपने कर्मचारियों को इस तरह की दबाव वाली रणनीति से बचाएगा।

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