दिल्ली AIIMS के बाद सफदरजंग अस्पताल में हुआ पहला बोन मैरो प्रत्यारोपण, गरीब परिवार को मिलेगी बड़ी राहत
दिल्ली एम्स के बाद सफदरजंग अस्पताल में बोन मैरो प्रत्यारोपण शुरू हो गया है। शनिवार को रक्त विकार की बीमारी से पीड़ित एक बच्चे को सफदरजंग अस्पताल में पहला बोन मैरो प्रत्यारोपण किया गया है। डॉक्टर मरीज के स्वास्थ्य पर नजर रख रहे हैं। उसके ठीक होने जाने पर अगले कुछ दिनों में अस्पताल प्रशासन इस मामले की जानकारी साझा करेगा।
नई दिल्ली, राज्य ब्यूरो। सफदरजंग अस्पताल में पहला बोन मैरो प्रत्यारोपण हुआ है। रक्त विकार की बीमारी से पीड़ित एक बच्चे को बोन मैरो प्रत्यारोपण किया गया है। अभी मरीज को वार्ड में भर्ती रखा गया है और उसके स्वास्थ्य में सुधार हो रहा है।
गरीब परिवारों के मरीजों को मिलेगी राहत
दिल्ली में एम्स के बाद यह सुविधा शुरू करने वाला सफदरजंग अस्पताल सरकारी क्षेत्र का दूसरा अस्पताल हैं जहां आम मरीजों को बोन मैरो प्रत्यारोपण की सुविधा मिल सकेगी। इससे ब्लड कैंसर, अप्लास्टिक एनीमिया व थैलेसीमिया जैसी बीमारियों से पीड़ित मरीजों मध्यम वर्गीय और गरीब परिवारों के मरीजों को राहत मिलेगी।
सफदरजंग अस्पताल में हुए पहले बोन मैरो प्रत्यारोपण के मामले पर अस्पताल प्रशासन अभी अधिक बोलने और बताने को तैयार नहीं है। अस्पताल प्रशासन के अनुसार, बोन मैरो प्रत्यारोपण के बाद डॉक्टर मरीज के स्वास्थ्य पर नजर रख रहे हैं। उसके ठीक होने जाने पर अगले कुछ दिनों में अस्पताल प्रशासन इस मामले की जानकारी साझा करेगा।
थैलेसीमिया का एकमात्र कारगर इलाज
डॉक्टर बताते हैं कि बोन मैरो प्रत्यारोपण ब्लड कैंसर, लिम्फोमा व मल्टीपल मायलोमा का सबसे असरदार इलाज है। वहीं थैलेसीमिया के मरीजों को बार-बार खून चढ़ाने की जरूरत पड़ती है। बोन मैरो प्रत्यारोपण थैलेसीमिया का एक मात्र कारगर इलाज है, लेकिन सरकारी क्षेत्र के अस्पतालों में इसकी सुविधाएं सीमित होने के कारण ज्यादातर मरीज इस इलाज से महरूम ही रहते हैं।
निजी अस्पतालों में इस इलाज का खर्च 15 से 20 लाख रुपये। दिल्ली में सरकारी क्षेत्र के अस्पतालों में एम्स में इसकी सुविधा पहले से उपलब्ध है। इसके अलावा धौला कुआं स्थित आर्मी अस्पताल में भी यह सुविधा है, लेकिन इस अस्पताल में आम लोगों का इलाज नहीं होता। ऐसे में आम मरीजों के लिए एम्स ही एक मात्र विकल्प था।
14 जून को शुरू हुई थी बोन मैरो प्रत्यारोपण यूनिट
सफदरजंग अस्पताल में करीब दो माह पहले 14 जून को बोन मैरो प्रत्यारोपण यूनिट शुरू की गई थी, लेकिन उस वक्त किसी मरीज का प्रत्यारोपण नहीं हुआ था। इसका कारण यह है कि बोन मैरो प्रत्यारोपण एक जटिल प्रक्रिया है। इसके लिए डोनर की तलाश करना भी आसान नहीं होता। इसलिए पहले डोनर और मरीज का जेनेटिक मिलान किया जाता है।
इसके लिए एचएलए ( ह्यूमन ल्यूकोसाइट एंटीजन) जांच की जाती है। एचएलए का मिलान होने के बाद बोन मैरो प्रत्यारोपण के लिए प्रक्रिया शुरू की जाती है। सफदरजंग अस्पताल में पहला बोन मैरो प्रत्यारोपण होने के बाद मरीजों को इलाज के लिए एम्स के बाद दूसरा विकल्प मिल गया है। बताया जा रहा है कि सफदरजंग अस्पताल में एक अन्य मरीज को बोन मैरो प्रत्यारोपण की प्रक्रिया चल रही है। अगले कुछ दिनों में दूसरे मरीज को भी बोन मैरो प्रत्यारोपण हो जाएगा।