इंदिरा गांधी की तुलना तानाशाह हिटलर से क्यों? बदल दिए थे सुप्रीम कोर्ट के तीन बड़े फैसले; राहुल को भूलना न चाहिए दादी का कड़वा सच
पत्रिका पाञ्चजन्य में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की तुलना तानाशाह हिटलर से की गई है। पाञ्चजन्य के आने वाले अंक के संपादकीय में कटाक्ष करते हुए कहा गया है कि आज राहुल गांधी घूम-घूम कर कह रहे हैं कि केंद्र सरकार संविधान बदलना चाहती है लेकिन वे अपनी दादी इंदिरा गांधी की चर्चा कभी नहीं करते जिन्होंने आपातकाल लागू कर पूरे लोकतंत्र की हत्या कर दी थी।
नेमिष हेमंत, जागरण नई दिल्ली। आपातकाल के 50 वर्ष पूरे होने के मौके पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का मुखपत्र मानी जाने वाली पत्रिका पाञ्चजन्य ने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का उल्लेख कर कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी की घेराबंदी की है, जिन्होंने हाल ही में संपन्न हुए आम चुनाव में मौजूदा सरकार पर संविधान बदलने की चाहत रखने का आरोप लगाया था।
पाञ्चजन्य के आने वाले अंक के संपादकीय में कटाक्ष करते हुए कहा गया है कि आज राहुल गांधी घूम-घूम कर कह रहे हैं कि केंद्र सरकार संविधान बदलना चाहती है, लेकिन वे अपनी दादी इंदिरा गांधी की चर्चा कभी नहीं करते, जिन्होंने आपातकाल लागू कर पूरे लोकतंत्र की हत्या कर दी थी।
इंदिरा गांधी की तुलना तानाशाह हिटलर से की गई
वहीं, पत्रिका के आने वाले अंक के कवर पेज पर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की तुलना तानाशाह हिटलर से की गई है। संपादकीय में पाञ्चजन्य के संपादक हितेश शंकर ने लिखा है कि एक ऐसा दौर, जब शासन का अहंकार जनमानस पर कहर बनकर टूटा। उन यातनाओं के बारे में सोचकर आज भी सिहरन होती है।
इंदिरा को संविधान के तिरस्कार की शिक्षा अपने पिता से मिली थी
21 महीने के उस कालखंड में निरंकुश शासन ने प्रत्यक्ष रूप से जो किया, उसे न तो भूला जा सकता है और न ही भूलना चाहिए। आगे लिखा कि वास्तव में इंदिरा गांधी को संविधान के तिरस्कार की शिक्षा अपने पिता जवाहर लाल नेहरू से मिली थी, जिन्होंने कहा था कि यदि संविधान कांग्रेस की नीतियों के विपरित जाता हैं, तो उसे बदलकर अपने अनुकूल बनाया जाना चाहिए।
यह भी पढ़ें- Excise Policy Case: अरविंद केजरीवाल की रिहाई पर अभी फैसला नहीं, सुप्रीम कोर्ट में अब इस दिन होगी सुनवाई
इंदिरा गांधी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के तीन फैसलों को पटल दिया
लेख में सिलसिलेवार तरीके से बताया गया कि कैसे, इंदिरा गांधी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के तीन फैसलों को पटल दिया। न्यायमूर्ति एएन रे का जिक्र करते हुए बताया गया है कि कैसे केशवानंद मामले में अपेक्षित फैसला नहीं आने पर प्रधानमंत्री कार्यालय से न्यायमूर्ति ने उनको फोन कर पूछा था कि उन्हें भारत के मुख्य न्यायाधीश का पद स्वीकार है? उन्हें यह सोचने के लिए मात्र दो घंटे का समय दिया गया और तीन वरिष्ठ न्यायाधीशों को दरकिनार कर उनको 26 अप्रैल 1973 को पद पर नियुक्त कर दिया गया।
यह भी पढ़ें- Lok Sabha session 2024: संसद में कौन-सा सांसद किस सीट पर बैठेगा, यह कौन और कैसे तय करता है?
1975 में संविधान में 39वां और 41वां संशोधन किया गया
न्याय प्रक्रिया में तानाशाही को लेकर मनमानी जारी रही, आगे 1975 में संविधान में 39वां और 41वां संशोधन किया, जिसमें यह व्यवस्था की गई कि राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री व लोकसभा अध्यक्ष के चुनाव को अदालत में किसी भी आधार पर न तो चुनौती दी जा सकती है न ही मुकदमा दर्ज किया जा सकता है। इसी तरह सरकार के पक्ष में फैसला देने पर एमएच बेग को देश का मुख्य न्यायाधीश बना दिया गया। बाद में भी उन्हें लाभ मिला।
लेख में बताया गया है कि इंदिरा गांधी को इस बात का भान था कि जिस तरह मोतीलाल नेहरू व गांधी जी के सहयोग से उनके पिता जवाहर लाल कांग्रेस और भारतीय जनता पर थोप दिए गए थे और नेहरू के एकाधिकार व उनके प्रति चाटुकारिता की परंपरा के चलते ही इंदिरा भी सरकार पर थोपी गई थीं। इसलिए उन्हें मालूम था कि इस अनैतिक परंपरा के बूते खुद भी संविधान पर अपनी मनमर्जी थोप सकती है और उन्होंने ऐसा किया भी।