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न्यायपालिका के भारतीयकरण के लिए अनिवार्य हो संस्कृत का अध्ययन: डा. सुब्रमण्यम स्वामी

स्वामी अरुंधति वशिष्ठ अनुसंधान पीठ द्वारा हंसराज कालेज में विश्व हिंदू परिषद के पूर्व अध्यक्ष डा. अशोक सिंघल की जयंती पर न्यायपालिका के भारतीयकरण विषय पर आयोजित संगोष्ठी को मुख्य वक्ता के रूप में संबोधित कर रहे थे।

By JagranEdited By: Pradeep Kumar ChauhanUpdated: Wed, 28 Sep 2022 12:08 AM (IST)
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मीमांसा वैचारिकी को वर्तमान समय में देश की न्याय प्रक्रिया के साथ जोड़ा जाना चाहिए।
नई दिल्ली [राहुल चौहान]। पूर्व केंद्रीय मंत्री डा. सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा कि न्यायपालिका के भारतीयकरण के लिए विश्वविद्यालयों के विधि संकाय में संस्कृत विषय का अध्ययन अनिवार्य करना चाहिए। साथ ही मीमांसा वैचारिकी को वर्तमान समय में देश की न्याय प्रक्रिया के साथ जोड़ा जाना चाहिए।

डा. स्वामी ने आगे कहा कि आज विश्व भर में संस्कृत को अनेक विश्वविद्यालयों में वैज्ञानिक भाषा के रूप में पढ़ाया जा रहा है परंतु भारत में बौद्धिक वर्ग के कई लोग अपनी औपनिवेशिक सोच से ग्रसित होने के कारण संस्कृत की महत्ता को कमतर आंकते हैं।

स्वामी अरुंधति वशिष्ठ अनुसंधान पीठ द्वारा हंसराज कालेज में विश्व हिंदू परिषद के पूर्व अध्यक्ष डा. अशोक सिंघल की जयंती पर न्यायपालिका के भारतीयकरण विषय पर आयोजित संगोष्ठी को मुख्य वक्ता के रूप में संबोधित कर रहे थे।

संगोष्ठी को तीर्थंकर महावीर विश्वविद्यालय मुरादाबाद के अधिष्ठाता प्रो. हरबंस दीक्षित और आइपी विश्वविद्यालय के प्रो. अमर पाल सिंह ने भी संबोधित किया। इस मौके पर डीयू प्राक्टर प्रो. रजनी अब्बी, एनसीवेब की निदेशक प्रो. गीता भट्ट, डा. राजकुमार भाटिया, डा. प्रभांशु ओझा, कई महाविद्यालयों के प्राचार्य, शिक्षक एवं विद्यार्थी उपस्थित रहे। डा. संजय कुमार ने धन्यवाद ज्ञापित किया।

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