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Friendship Day 2022: मम्मी-पापा को अपना बेस्ट फ्रेंड बनाकर आसान करें जिंदगी, बता रहे बाल मनोचिकित्‍सक; होंगे ये बड़े बदलाव

अगस्त के पहले रविवार को हर वर्ष मनाया जाता है मित्रता दिवस। मित्रता यानी जो मुश्किलों में मजबूती का अहसास कराए। दोस्तो यदि हम कहें कि पापा-मम्मी बन सकते हैं हमारे बेस्ट फ्रेंड तो आप भी कहेंगे क्यों नहीं?

By GeetarjunEdited By: Updated: Fri, 05 Aug 2022 04:28 PM (IST)
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Friendship Day 2022: मम्मी-पापा को अपना बेस्ट फ्रेंड बनाकर आसान करें जिंदगी, बता रहे बाल मनोचिकित्‍सक।

नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। अगस्त के पहले रविवार को हर वर्ष मनाया जाता है मित्रता दिवस। मित्रता यानी जो मुश्किलों में मजबूती का अहसास कराए। दोस्तो, यदि हम कहें कि पापा-मम्मी बन सकते हैं हमारे बेस्ट फ्रेंड तो आप भी कहेंगे क्यों नहीं? पर यह भी मानेंगे कि यह इतना भी नहीं आसान। क्या करें कि पापा-मम्मी बन जाएं हमारे बेस्ट फ्रेंड?

'अमुक ड्रेस पहन लूं तो अक्‍सर मना हो जाता है। कह दिया जाता कि नहीं आता है अभी मुझे कपड़ों का चयन। जब उनसे पूछता हूं दोस्तों के घर जाऊं थोड़ा खेल लें तो पढ़ाई करने को कह दिया जाता है। जब मन करता है घर में मोबाइल गेम खेलने का, तो देखता हूं कि मम्‍मी की आंखें बड़ी हो जाती हैं। वे मोबाइल नहीं देना चाहती हैं। समझ नहीं आता कि उन्हें अपना दोस्त कैसे मान लें?'

यह आपबीती सौरभ ने सुनाई। जब सौरभ यह कहते हैं कि जैसे-जैसे वे बड़े हो रहे हैं पैरेंट्स से करीबी के बजाय दूरी महसूस करते हैं। कोई परेशानी बतानी हो तो कई बार सोचना पड़ता है। डर लगता है कि कहीं पैरेंट्स डांट न दें तो हो सकता है कि आपमें से कई ऐसा ही कुछ महसूस करते हों। दोस्तो, क्यों न आज फ्रेंडशिप डे पर इस समस्या का हल तलाशा जाए। कैसे हो सकते हैं मम्मी-पापा बेस्ट फ्रेंड? बता रहे हैं निमहंस, बेंगलुरु के वरिष्ठ बाल मनोचिकित्‍सक और एडिशनल प्रोफेसर रूपेश बीएन...

  • बातचीत में खुलापन रखें। संकोच होता हो तो लिखकर अपनी बात रख सकते हैं।
  • पैरेंट्स के साथ कोई कामन हाबी हो तो साथ मिलकर उसे करें।
  • पैरेंट्स से किसी मुश्किल लगती समस्या पर सलाह मांगें। इससे आप दोनो और करीब आएंगे।
  • यदि किसी बात पर असहमति है तो आदरपर्वूक मना करें। यह उन्हें अच्छा महसूस कराएगा।
  • आप उनसे संबंधित महत्वपूर्ण दिवस याद रखें। उनके जन्मदिन या सालगिरह पर कोई भाव भरा संदेश या उपहार देंगे तो उन्हें खुशी होगी।
  • वे चाहे गुस्सैल हैं, थोड़ा जल्दी बुरा मान जाते हैं तो भी उन्हें स्वीकार करें। जैसे भी हैं वे आपके हैं। उनसे प्यार करें और जताएं भी। आप देखेंगे आपकी और उनकी दोस्ती गाढ़ी होती जाएगी।

पैरेंटस करें पहल

रतीय मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य संस्‍थान और तंत्रिका विज्ञान (बेंगलुरु) के बाल मनोचिकित्‍सक प्रो. रूपेश बीएन ने बताया कि पैरेंटस अपने बड़े होते बच्‍चों के दोस्‍त बनें, यह अक्सर कहा जाता है लेकिन सफलतापूर्वक अमल नहीं हो पाता इस बात पर। यदि उन्हें आपसे कोई समस्या है तो उन्‍हें अनदेखा करने या नाराज होन जाने के बजाय उन्‍हें ध्यान से सुनिए। अगर बाहरी प्रभाव के कारण वे आपसे दूर दूर रहते हैं, शेयर नही करते तो अपने पास बिठाकर प्यार से बात करें।

साथ ही, अपनी कमजोरियों को पहचानिए और उन्हें अपने बच्चों के सामने स्वीकार कीजिए। कभी-कभी ईमानदारी से खुद का आकलन भी जरूरी है। क्या आप अपने बच्चे से बहुत ज्यादा अपेक्षाएं रखते हैं या बहुत जल्दी गुस्सा हो जाते हैं या बहुत जल्दी अपना धैर्य खो देते हैं या फिर आप बहुत ज्‍यादा अधिकार जमाते हैं। ठीक तरीके से आकलन कर सकें और बच्‍चों से दोस्‍ती की दिशा में खुद करें पहल तो उनसे दोस्‍ती की राहें आसान हो सकती हैं।

साल में दो-दो मित्रता दिवस!

अक्‍सर यह असमंजस होता है कि 30 जुलाई और अगस्त के पहले रविवार में से कौन-सा है असली फ्रेंडशिप डे। पर देखा जाए तो दोनों ही दिन मनाया जाता है मित्रता दिवस। 30 जुलाई, 1958 को आधिकारिक तौर पर अंतरराष्ट्रीय मित्रता दिवस मनाने की घोषणा की गई। लेकिन भारत समेत बांग्लादेश, मलेशिया, संयुक्त अरब अमीरात और संयुक्त राज्‍य अमेरिका जैसे देश अगस्त के पहले रविवार को ही दोस्ती दिवस मनाते हैं। अगस्‍त में सबसे पहले मित्रता दिवस साल 1935 में अमेरिका में मनाया गया था।

जरूरी है यह संवाद

चाइना यूथ एंड चिल्ड्रन रिसर्च सेंटर के निदेशक सन हान्गयान के अनुसार आधुनिक मीडिया और टेक्नोलाजी के आगमन से बच्चों के पास सीखने और सूचना प्राप्त करने के कई विकल्प मौजूद हैं। आज आठ साल का बच्चा बड़ों की जिम्मेदारियों को अच्छी तरह समझ सकता है। इसलिए उसे अपनी जिम्मेदारियों को समझाने की कोशिश कीजिए।

उसमें इस बात की समझ पैदा कीजिए कि माता-पिता को यह प्राकृतिक अधिकार है कि वे बच्चों का मार्गदर्शन करें ताकि वह बड़े होकर जिम्मेदार पुरुष और महिला बनें। हान्‍गयान के मुताबिक, इस तरह के संवाद के बाद संभव है कि अभिभावक खुद उनकी अद्भुत समझ पर मुग्‍ध हो जाएं।

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