"हिजाब नहीं तो किताब नहीं' जैसे नारों की जिद से बचें छात्राएं: फिरोज बख्त अहमद
Hijab Controversy प्रसिद्ध शिक्षाविद व मौलाना आजाद उर्दू विश्वविद्यालय के पूर्व कुलाधिपति फिरोज बख्त अहमद ने पूरे विवाद पर चिंता जताते हुए कहा कि स्कूल प्रबंधन द्वारा एकदम से ताबड़-तोड़ इस उसूल को लाने की कोई जरूरत नहीं थी।
नई दिल्ली [नेमिष हेमंत]। Hijab Controversy:- कर्नाटक के उडुपी के एक शिक्षण संस्थान में छात्राओं के हिजाब पहनकर आने पर पाबंदी ने देश में धार्मिक सियासी संग्राम छेड़ दिया है। इसे लेकर राजनीतिक बयानबाजी भी तेज है। बड़े-बड़े राजनीतिज्ञ उतर आए हैं। कई राजनीतिक दलों के मंत्रियों की भी राय आने लगी है। पाकिस्तान ने इसे लेकर देश में अल्पसंख्यक के असुरक्षित होने का आरोप लगाया है। हालांकि, इस विवाद से देश के प्रसिद्ध मुस्लिम शिक्षाविद चिंतित नजर आते हैं। उनके मुताबिक जिस तरह से इसे अहं का विषय बना दिया गया है। वह छात्राओं के पढ़ाई के रास्ते में रोड़े ही अटकाएगा।
प्रसिद्ध शिक्षाविद व मौलाना आजाद उर्दू विश्वविद्यालय के पूर्व कुलाधिपति फिरोज बख्त अहमद ने पूरे विवाद पर चिंता जताते हुए कहा कि स्कूल प्रबंधन द्वारा एकदम से ताबड़-तोड़ इस उसूल को लाने की कोई जरूरत नहीं थी। अगर लाना था तो इस शिक्षण सत्र के बाद ला सकते थे। तब तक लोग मानसिक रूप से तैयार हो जाते।
वह कहते हैं कि अगर शिक्षा संस्था यह नियम बना ही दिया है तो यह सभी छात्र, अभिभावक और अध्यापकों के लिए बाध्य होगा और उन्हें इसे मानना चाहिए क्योंकि वे उस संस्था से जुड़े हैं और उनके लिए इसकी हैसियत एक कानून जैसी होगी। यह तस्वीर पूरी तरह से स्पष्ट है। वह कहते हैं कि इस्लाम में पर्दा है। पर हिजाब इस्लाम का प्रिसिंपल अंग नहीं है। कपड़े के हिजाब से बढ़कर अंदर के रूह का हिजाब ज्यादा जरूरी है।
इस संबंध में उन्होंने छात्राओं से आग्रह करते हुए कहा कि किसी भी धार्मिक या खुद को धर्मनिरपेक्ष जानने वाले, बहलाने - फुसलाने, भटकाने, भड़काने, जहर उगलने वाले और आग लगाकर अपनी सियासी रोटियां सेंकने वालों की बातों में न आएं और ऐसे नारों से बचें, जैसे, "हिजाब नहीं तो किताब नहीं', क्योंकि उन्हे आगे चल कर फातिमा बीवी, सानिया मिर्जा, प्रोफेसर, आर्किटेक्ट व फौजी आदि बनना है, जिसके लिए कक्षा में उपस्थिति करना अति आवश्यक है।
उन्होंने चिंता जताते हएु कहा कि अब 42 दिन हो गए हैं, वे तब से स्कूल नहीं जा रही है। ऐसे में उन्हेें वेहिजाब की जिद छोड़ कर पढ़ाई करनी चाहिए। बाकी का काम वह कोर्ट और अल्लाह पर छोड़ दें। कोर्ट का फैसला सब पर बाध्य होगा। भारत न तो शरीयत से चलेगा और न ही सनातन धर्म से बल्कि संविधान से।