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Delhi: बढ़ गई दुनिया की कोयला-आधारित स्‍टील निर्माण क्षमता, चीन को पीछे छोड़ शीर्ष पर पहुंचा भारत

कोयला आधारित इस्पात उत्पादन को कम करने के बजाय इस्पात निर्माताओं ने वास्तव में 2022 में इन अत्यधिक प्रदूषणकारी संयंत्रों के निर्माण में आठ प्रतिशत की वृद्धि की है। मतलब इस्पात उद्योग को अब 554 बिलियन डालर के फंसे हुए परिसंपत्ति जोखिम का सामना करना पड़ रहा है। वहीं पहली बार भारत कोयला आधारित स्‍टल उत्‍पादन क्षमता के विस्‍तार के मामले में चीन को पछाड़कर शीर्ष पर पहुंच गया है।

By sanjeev GuptaEdited By: Shyamji TiwariUpdated: Thu, 27 Jul 2023 06:49 PM (IST)
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घटने की जगह बढ़ गई दुनिया की कोयला-आधारित स्‍टील निर्माण क्षमता
नई दिल्ली, राज्य ब्यूरो। ग्‍लोबल एनर्जी मॉनीटर की पेडल टू द मेटल 2023 नामक नई रिपोर्ट यह कहती है कि दुनिया में स्‍टील उत्‍पादन के लिए ब्‍लास्‍ट फर्नेस- बेसिक आक्‍सीजन फर्नेस पद्धति का इस्‍तेमाल करने वाली कोयला आधारित उत्‍पादन क्षमता वर्ष 2021 के 350 एमटीपीए के मुकाबले 2022 में बढ़कर 380 एमटीपीए हो गई है। यानी कोयला आधारित इस्पात उत्पादन को कम करने के बजाय, इस्पात निर्माताओं ने वास्तव में 2022 में इन अत्यधिक प्रदूषणकारी संयंत्रों के निर्माण में आठ प्रतिशत की वृद्धि की है।

स्ट्रेंडेड एसेट का सामना कर रहे इस्पात उद्योग

यह ऐसे वक्‍त हुआ है, जब लंबी अवधि के डीकार्बनाइजेशन लक्ष्‍यों को हासिल करने के लिए दुनिया की कुल उत्‍पादन क्षमता में कोयले की हिस्‍सेदारी में नाटकीय रूप से गिरावट आनी चाहिए। कोयला आधारित इस्पात क्षमता में वृद्धि का मतलब है कि इस्पात उद्योग को अब 554 बिलियन डालर के फंसे हुए परिसंपत्ति जोखिम या स्ट्रेंडेड एसेट का सामना करना पड़ रहा है।

ग्‍लोबल स्‍टील प्‍लांट ट्रैकर के डेटा के वार्षिक सर्वेक्षण में पाया गया है कि कोयला आधारित स्‍टील उत्‍पादन क्षमता में वृद्धि का लगभग पूरा काम (99 प्रतिशत) एशिया में ही हो रहा है और चीन तथा भारत की इन परियोजनाओं में कुल हिस्‍सेदारी 79 प्रतिशत है। ध्यान रहे कि एशिया कोयला आधारित इस्पात उत्पादन का केंद्र है, जहां 83 प्रतिशत चालू ब्लास्ट फर्नेस, 98 प्रतिशत निर्माणाधीन और 94 प्रतिशत आगामी सक्रिय होने वाली भट्टियां हैं।

इसको देखते हुए यह जरूरी है कि जलवायु आपदा से बचने के लिए पूरे एशिया में निवेश संबंधी फैसले तेजी से बदले जाएं। नई तकनीक, ग्रीन स्टील की मांग और कार्बन की कीमतों के साथ वैश्विक स्तर पर बाजार बदल रहा है। एशियाई उत्पादकों के सामने एक विकल्प है, चाहे वे दशकों से अधिक कोयले में निवेश करें या भविष्य के इस्पात क्षेत्र में निवेश करें।

चीन को पीछे छोड़ शीर्ष पर पहुंचा भारत

इतिहास में ऐसा पहली बार है जब भारत कोयला आधारित स्‍टील उत्‍पादन क्षमता के विस्‍तार के मामले में चीन को पछाड़कर शीर्ष पर पहुंच गया है। भारत में कोयला आधारित ब्‍लास्‍ट फर्नेस-बेसिक ऑक्‍सीजन फर्नेस क्षमता का 40 प्रतिशत हिस्‍सा विकास के दौर से गुजर रहा है, जबकि चीन में यही 39 प्रतिशत है। हाल के वर्षों में कोयला आधारित इस्पात निर्माण का कुछ भाग उत्पादन के स्वच्छ स्‍वरूपों को दे दिया गया है, मगर यह बदलाव बहुत धीमी गति से हो रहा है।

इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी के वर्ष 2050 के नेटजीरो परिदृश्‍य के मुताबिक, इलेक्ट्रिक आर्क फर्नेस क्षमता की कुल हिस्‍सेदारी वर्ष 2050 तक 53 प्रतिशत हो जानी चाहिए। इसका मतलब है कि 347 मीट्रिक टन कोयला आधारित क्षमता को या तो छोड़ने अथवा रद्द करने की जरूरत होगी और इलेक्ट्रिक आर्क फर्नेस की 610 मैट्रिक टन क्षमता को मौजूदा क्षमता में जोड़ने की आवश्‍यकता होगी।

ग्‍लोबल एनर्जी मॉनीटर में भारी उद्योग इकाई की कार्यक्रम निदेशक केटलिन स्‍वालेक ने कहा, "स्‍टील उत्‍पादकों और उपभोक्‍ताओं को डीकार्बनाइजेशन की योजनाओं के प्रति अपनी महत्‍वाकांक्षा को और बढ़ाने की जरूरत है। स्टील उत्‍पादन में कोयले के इस्‍तेमाल में कमी लाई जा रही है, लेकिन यह काम बहुत धीमी रफ्तार से हो रहा है। कोयला आधारित उत्‍पादन क्षमता में वृद्धि कर रहे विकासकर्ता भविष्‍य में इसकी कीमत अरबों में चुकाने का खतरा मोल ले रहे हैं।"

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