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यूपीः बकाया नहीं देने पर इंदिरापुरम हैबिटेट सेंटर सील, 49 करोड़ रुपये बकाया थे

अहिंसा खंड स्थित हैबिटेट सेंटर को बुधवार को जिला प्रशासन और जीडीए ने सील कर दिया। करीबा 49 करोड़ रुपये बकाया राशि नहीं चुकाने पर यह कार्रवाई की गई।

By JP YadavEdited By: Updated: Thu, 05 Jul 2018 01:50 PM (IST)
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यूपीः बकाया नहीं देने पर इंदिरापुरम हैबिटेट सेंटर सील, 49 करोड़ रुपये बकाया थे

गाजियाबाद (जेएनएन)। अहिंसा खंड स्थित हैबिटेट सेंटर को बुधवार को जिला प्रशासन और जीडीए ने सील कर दिया। करीब 49 करोड़ रुपये बकाया राशि नहीं चुकाने पर यह कार्रवाई की गई। टीम ने सभी गेटों और सेंटर प्रबंधन के दोनों सेल्स ऑफिस पर सील लगा दी। नोटिस चस्पा करते हुए प्रबंधन और हैबिटेट सेंटर की सिक्योरिटी को निर्देश दिए कि किसी भी व्यक्ति के प्रवेश पर उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। कार्रवाई से करीब सौ दुकानें और 12 रेस्टोरेंट भी बंद हो गए।

वहीं, हैबिटेट सेंटर प्रबंधन, जीडीए की कार्रवाई को गलत बताते हुए हाई कोर्ट जाने की तैयारी कर रहा है।प्रशासनिक और जीडीए टीम बुधवार सुबह दस बजे हैबिटेट सेंटर पहुंची। यहां पहुंचते ही टीम ने दुकानें बंद कराते हुए दुकानदारों को बाहर जाने को कहा। जीडीए ओएसडी वीके सिंह ने बताया कि हैबिटेट सेंटर को किस्तों में भुगतान के आधार पर जमीन का आवंटन किया गया था। भुगतान में लगातार देरी होने पर जीडीए की ओर से इंदिरापुरम हैबिटेट सेंटर प्राइवेट लिमिटेड को नोटिस जारी किए जा रहे थे। प्रबंधन की ओर से जवाब नहीं देने पर हैबिटेट सेंटर को सील कर दिया गया। ब्याज लगाकर हैबिटेट सेंटर पर कुल करीब 49 करोड़ रुपये बकाया है।

अक्टूबर 2017 में भी हो चुका है सील

हैबिटेट सेंटर पर करीब 113.34 करोड़ रुपये बकाया तय कर जीडीए ने 2017 में प्रशासन को सूचित किया। इस पर प्रशासन ने आरसी जारी कर दी थी। बावजूद इसके बकाया जमा न होने पर जीडीए ने अक्टूबर 2017 में हैबिटेट सेंटर को सील कर दिया था। इसके खिलाफ प्रबंधन हाई कोर्ट चला गया। हाई कोर्ट के आदेश के बाद नवंबर में हैबिटेट सेंटर प्रबंधन ने 70.65 करोड़ रुपये जमा कराए। इसके बाद सील खोल दी गई थी। बुधवार को फिर सीलिंग की गई। 

नियम के विपरीत हुआ निर्माण

हैबिटेट सेंटर को लेकर दूसरा विवाद भू-उपयोग को लेकर चल रहा है। जीडीए का आरोप है कि इसमें स्वीकृत मानचित्र और भू-उपयोग के विपरीत निर्माण कार्य किया गया है। इसके लिए हैबिटेट सेंटर प्रबंधन को कई नोटिस दिए गए, जिसके बाद इन्होंने शमन कराने के लिए आवेदन दिया। उस आवेदन को खारिज किया जा चुका है। नोटिस में लाभ कमाने के लिए व्यावसायिक उपयोग के लिए ज्यादा निर्माण की बात कही गई है। फिलहाल इसी आपत्ति पर निर्माण कार्य रुका हुआ है। हैबिटेट सेंटर के लिए 12.5 एकड़ भूमि निर्धारित की गई। इसमें 45 फीसद हिस्से में सामाजिक एवं सांस्कृतिक उपयोग (कम्युनिटी ऑडिटोरियम, क्लब), 35 फीसद भूमि पर मनोरंजन उपयोग (मल्टीप्लेक्स छोड़ कर स्विमिंग पूल, गेमिंग जोन आदि) और 25 फीसद वाणिज्यिक उपयोग निर्धारित किया गया था। तीन चरणों में हैबिटेट सेंटर के निर्माण की योजना थी। पहले चरण में चार एकड़ भूमि में मॉल बनाकर खड़ा कर दिया। कुछ हिस्सा मनोरंजन उपयोग के लिए बना दिया। जनवरी 2016 में जीडीए ने आंशिक पूर्णता प्रमाण पत्र प्रदान कर दिया। इसमें स्कूल भी चल रहा है। दूसरे और तीसरे चरण का निर्माण शुरू हुआ था, जिस पर जीडीए ने आपत्ति लगा दी। फ्लोर एरिया रेश्यो (एफएआर) के अतिरिक्त और स्वीकृत मानचित्र में भू-उपयोग के विपरीत निर्माण किया जा रहा था।

2009 से विवादों के घेरे में है सेंटर

बकाया को लेकर हैबिटेट सेंटर वर्ष 2009 से विवादों में घिरा हुआ है। दो बार शासन स्तर से किस्तों में भुगतान करने का निर्णय होने के बावजूद बकाया अदा नहीं किया गया। इसी वजह से जीडीए सीलिंग करने को मजबूर हुआ।12005 में जीडीए ने हैबिटेट सेंटर के लिए 12.5 एकड़ भूमि आवंटित की थी। मूल आवंटी शोमैन क्लब था। 25 प्रतिशत राशि जमा कराने के बाद भूमि का कब्जा इन्हें दे दिया गया। 2009 तक बकाया राशि अदा नहीं की गई तो जीडीए ने नोटिस दिया। इस पर आवंटी ने शासन से री-शेड्यूलिंग कर किस्तों में भुगतान करने की अनुमति मांगी। तब शासन इस पर तैयार हो गया। शासन ने मूल बकाया और ब्याज को जोड़ कर आवंटी को 2013 तक किस्तों में भुगतान की अनुमति दे दी। फिर भी इन्होंने भुगतान नहीं किया। इस पर जीडीए ने कई बार नोटिस देने की कार्रवाई की। 2013 में आवंटी ने आर्थिक स्थिति बयां करते हुए फिर से शासन में री-शेड्यूलिंग की गुहार लगाई। शासन ने फिर से मूल और ब्याज को जोड़ कर किस्ते निर्धारित कर दीं। इन्होंने कुछ ही किस्तों का भुगतान किया। बाकी भुगतान रोक दिया। इस बीच शोमैन क्लब के हिस्सेदार प्रमोद गोयल ने 2015 में हैबिटेट सेंटर को अपनी फर्म विक्ट्री प्रोजेक्ट्स के नाम पूरी तरह से टेकओवर कर लिया। इसका बकाया अदा करने की जिम्मेदारी भी ले ली। उन्होंने सब्सिडियरी कंपनी इंदिरापुरम हैबिटेट सेंटर प्राइवेट लिमिटेड बनाकर हैबिटेट सेंटर के निर्माण की गतिविधियां जारी रखीं। जनवरी 2016 में पहले चरण का निर्माण पूरा होने पर मॉल में दुकानें आवंटित कर दीं। मॉल संचालित होने लगा, लेकिन बकाया का भगुतान नहीं किया। इस पर जीडीए ने कार्रवाई रूप में कई नोटिस दिए। 10 अक्टूबर 2017 में जीडीए ने मूल और ब्याज जोड़ कर 113.34 करोड़ रुपये बकाया की आरसी जारी की गई। बकाया जमा न करने पर 28 अक्टूबर को हैबिटेट सेंटर सील कर दिया गया। इसे लेकर हैबिटेट सेंटर प्रबंधन ने आरसी में अंकित बकाया के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दी। कोर्ट को उन्होंने अपना पक्ष रखा था कि जीडीए ने बकाया की गणना में गलती की है। यह भी बताया था कि उनके हिसाब से ब्याज समेत 70.65 करोड़ रुपये बकाया बनता है। उस पर कोर्ट ने आदेश दिया था कि हैबिटेट सेंटर के प्रबंधन द्वारा स्वीकार किया गया बकाया ब्याज के साथ अगली सुनवाई तक जमा करा दिया जाए। जिस पर प्रबंधन ने 70.65 करोड़ एकमुश्त जमा करा दिया। इस पर हैबिटेट सेंटर की सील खोल दी गई। हाईकोर्ट ने जीडीए से बकाया राशि की गणना का ब्योरा मांगा। उन्होंने हाईकोर्ट का बता दिया कि कब-कब शासन स्तर पर क्या फैसला हुआ। मूल और ब्याज समेत बकाया राशि का ब्योरा दाखिल कर दिया। बकाया वसूलने पर हाईकोर्ट का स्टे नहीं था। लिहाजा जिला प्रशासन ने बुधवार को बकाया राशि न मिलने पर सीलिंग कर दी।

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