बेटे का यौन उत्पीड़न करना व्यक्ति ही नहीं समाज और परिवार के खिलाफ भी है अपराध, दिल्ली HC की टिप्पणी
हाई कोर्ट ने टिप्पणी की है कि अपीलकर्ता पिता पर पीड़ित बच्चे का जैविक पिता होने के नाते उसकी रक्षा करने का सामाजिक पारिवारिक नैतिक कर्तव्य था लेकिन उसने विभिन्न अवसरों पर उसका यौन शोषण किया था। अदालत ने उक्त टिप्पणी चार साल के अपने बेटे का यौन उत्पीड़न करने के मामले में दोषी ठहराने के निर्णय को चुनौती देने वाली अपीलकर्ता पिता की याचिका को खारिज करते हुए की।
By Vineet TripathiEdited By: Abhishek TiwariUpdated: Sun, 05 Nov 2023 12:52 PM (IST)
विनीत त्रिपाठी, नई दिल्ली। बाल यौन शोषण से जुड़े मामले को गंभीर मुद्दा बताते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने टिप्पणी की कि अपीलकर्ता पिता पर पीड़ित बच्चे का जैविक पिता होने के नाते उसकी रक्षा करने का सामाजिक, पारिवारिक, नैतिक कर्तव्य था, लेकिन उसने विभिन्न अवसरों पर उसका यौन शोषण किया था।
अपीलकर्ता द्वारा किये गये अपराध को हल्के में नहीं लिया जा सकता। यह न केवल व्यक्ति के खिलाफ बल्कि समाज और परिवार के खिलाफ भी अपराध है।
चार साल के बेटे का यौन उत्पीड़न
अदालत ने उक्त टिप्पणी चार साल के अपने बेटे का यौन उत्पीड़न करने के मामले में दोषी ठहराने के निर्णय को चुनौती देने वाली अपीलकर्ता पिता की याचिका को खारिज करते हुए की।अदालत ने कहा कि ऐसे अपराध को बहुत संवेदनशीलता के साथ देखने की जरूरत है। ऐसे मामले में आरोपित को उसकी सामाजिक, आर्थिक पृष्ठभूमि या अन्य घरेलू जिम्मेदारियों के बावजूद पर्याप्त सजा देना अदालत का गंभीर कर्तव्य है।
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