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अव्यवस्था की खुराक से वेंटिलेटर पर स्वास्थ्य व्यवस्था, इलाज के लिए दर-दर भटकने को मजबूर मरीज

अस्पतालों में मरीज बेहतर इलाज की उम्मीद में पहुंचते हैं। पर अस्पताल में कदम रखते ही उनका सामना भीड़ से होता है और उनकी मुश्किलें शुरू हो जाती हैं।

By Mangal YadavEdited By: Updated: Sun, 31 Mar 2019 01:23 PM (IST)
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अव्यवस्था की खुराक से वेंटिलेटर पर स्वास्थ्य व्यवस्था, इलाज के लिए दर-दर भटकने को मजबूर मरीज

नई दिल्ली [रणविजय सिंह]। 68 साल के बहादुर राम को हृदय की गंभीर बीमारी है। इलाज के खर्च की अब उन्हें चिंता नहीं रही। क्योंकि उन्हें आयुष्मान भारत का सहारा मिल गया है पर एम्स में उन्हें सर्जरी के लिए दो साल बाद की तारीख मिली। अभी हाल ही में तीन साल के मासूम फरहान को नौ दिनों तक लोकनायक अस्पताल में वेंटिलेटर नहीं मिल पाने के कारण उसे अंबु बैग के सहारे रखा गया।

अदालत का दरवाजा खट खटाकर उसके परिजनों ने अस्पताल को वेंटिलेटर देने पर मजबूर तो कर दिया पर वह मासूम 18 दिन बाद जिंदगी की जंग हार गया। यह सिर्फ एक-दो लोगों की कहानी नहीं है। बल्कि एम्स, सफदरजंग, आरएमएल, लोकनायक, जीटीबी सहित दिल्ली के तमाम बड़े अस्पतालों में इलाज के लिए पहुंचे ज्यादातर मरीजों की कहानी स्वास्थ्य सुविधाओं की पोल खोलती नजर आती है। चुनाव आने पर सभी राजनीतिक दल स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार के लिए बड़े-बड़े वादे तो बहुत करते हैं पर वे हकीकत नहीं बन पाते।

निजी अस्पतालों में इलाज इतना महंगा है कि निम्न मध्यम वर्गीय परिवारों के लिए उनमें इलाज करना संभव नहीं है। एम्स में 373 मरीजों पर हुए एक अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार इलाज का महंगा खर्च मरीजों को गरीबी की तरफ धकेल रहा है। गंभीर बीमारियों से लंबे समय तक पीड़ित रहने वाले 26.9 फीसद ग्रामीण व 42.2 फीसद शहरी मरीज बीमारी के कारण बेरोजगार हो जाते हैं। इलाज के लिए मरीजों को आभूषण व पैतृक जमीन तक बेचनी पड़ती हैं।

बहरहाल, इसका एक बड़ा कारण यह है कि बहुत कम लोगों को स्वास्थ्य योजनाओं का लाभ मिल पाता है। राष्ट्रीय परिवार कल्याण सर्वें की रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली में सिर्फ 15.7 फीसद परिवार किसी स्वास्थ्य योजना या स्वास्थ्य बीमा योजना से जुड़े हैं। इसलिए शेष लोगों पर इलाज का खर्च उठाने का दबाव है। इसका कारण बुनियादी ढांचे का अभाव है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) के अनुसार हर एक हजार की आबादी पर पांच बेड होना जरूरी है। दिल्ली में दूसरे शहरों के मुकाबले स्थिति थोड़ी बेहतर जरूर है फिर भी यहां एक हजार की आबादी पर करीब तीन बेड (2.99) उपलब्ध हैं। यहां के सभी अस्पतालों में कुल 57,194 बेड उपलब्ध हैं। जिसमें निजी अस्पतालों की भागीदारी 51 फीसद, केंद्र सरकार के अस्पतालों की भागीदारी 22.39 फीसद, दिल्ली सरकार के अस्पतालों की भागीदारी 19.84 फीसद व स्थानीय निकायों की भागीदारी करीब 6.7 फीसद है।

तय मानकों के अनुसार अस्पताल में उपलब्ध बेड का 10 फीसद वेंटिलेटर होना चाहिए। दिल्ली के सरकारी अस्पतालों में 27,893 बेड उपलब्ध हैं। इस लिहाज से सरकारी अस्पतालों में 2,7,83 वेंटिलेटर उपलब्ध होना चाहिए था। जबकि एक हजार से भी कम वेंटिलेटर उपलब्ध है। जबकि एम्स, सफदरजंग, आरएमएल, लोकनायक व जीटीबी अस्पताल में दूसरे राज्यों से काफी संख्या में मरीज इलाज के लिए पहुंचते हैं। गंभीर मरीजों को वेंटिलेटर की सुविधा भी नहीं मिल पाती।

इलाज के लिए लंबी लाइन

अस्पतालों में मरीज बेहतर इलाज की उम्मीद में पहुंचते हैं। पर अस्पताल में कदम रखते ही उनका सामना भीड़ से होता है और उनकी मुश्किलें शुरू हो जाती हैं। पहले ओपीडी कार्ड के पंजीकरण के लिए लाइन, फिर डॉक्टर को दिखने के लिए घंटों इंतजार। डॉक्टर के देखने के बाद दवा व जांच के लिए लाइन। तमाम बड़े अस्पतालों में कमोबेश यही हालात हैं।

सर्जरी के लिए छह साल तक का इंतजार

एम्स में मरीजों का दबाव इतना है कि सर्जरी के लिए तीन माह से छह साल तक का समय दिया जाता है। ऐसे में मरीजों की जिदंगी खतरे में आ जाती है। कैंसर जैसी बीमारी की सर्जरी के लिए भी छह माह तक की वेटिंग है। सबसे अधिक समस्या हार्ट व न्यूरो की बीमारियों से पीड़ित मरीजों को ङोलनी पड़ती है। क्योंकि हार्ट की सर्जरी के लिए छह साल तक समय दिया जाता है। वहीं न्यूरो की सर्जरी के लिए डेढ़ साल तक की वेटिंग है। हालांकि इसका बड़ा कारण यह है कि दिल्ली में सिर्फ चार सरकारी अस्पतालों में ही हार्ट व न्यूरो की बीमारियों के इलाज की सुविधा है।

कितने चुनाव आए कितने बीते, नहीं बने अस्पताल

राजधानी में स्वास्थ्य का मजबूत ढांचा तैयार करने के लिए वर्षो से दर्जन भर अस्पताल बनाने की योजना है। इनमें से कई अस्पतालों की योजना डेढ़ दशक से अधिक पुरानी है। इस दौरान कितने चुनाव आए और बीत गए पर नए अस्पताल नहीं बन पाए। कागजों में ही उनके बेड बढ़ते रहे।

एम्स में सर्जिकल ब्लॉक बनकर तैयार है पर शुरू नहीं हो पा रहा है। इसके अलावा दो नए ब्लॉक का काम भी जल्द पूरा होने की उम्मीद है। जिसमें ओपीडी ब्लॉक व मातृ व शिशु ब्लॉक शामिल है। एम्स ने मार्च तक इन तीनों ब्लॉकों में इलाज शुरू करने की योजना बनाई थी पर ऐसा नहीं हो सका। इसके अलावा दिल्ली सरकार द्वारका, बुराड़ी व आंबेडकर नगर में तीन अस्पताल बना रही है।

लंबे समय से इन अस्पतालों का निर्माण चल रहा है। आंबेडकर नगर व बुराड़ी में अस्पताल इस महीने तैयार करने का लक्ष्य था पर यह कब तक शुरू होंगे इसका जवाब दिल्ली के स्वास्थ्य सेवाएं महानिदेशालय के अधिकारी नहीं दे पा रहे हैं। द्वारका में सितंबर तक अस्पताल का निर्माण पूरा करने की योजना है।

34 सालों में नहीं बना अस्पताल

बाहरी दिल्ली का गांव सिरसपुर, करीब 1985 में वहां अस्पताल का शिलान्यास किया गया था। फिर भी 34 सालों में भी अस्पताल नहीं बन पाया। पहले वहां 200 बेड का अस्पताल बनाने की योजना थी जिसे अब 1500 कर दिया गया है। इसके अलावा मादीपुर, सरीता विहार, हस्तसाल व ज्वालापुरी में लंबे समय से प्रस्तावित अस्पतालों का काम थोड़ा आगे बढ़ा है। वर्ष 2022 तक इनका निर्माण पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है।

सफदरजंग का हुआ विस्तार

केंद्र के सफदरजंग अस्पताल में 800 बेड के सुपर स्पेशियलिटी व 500 बेड के इमरजेंसी सेंटर का निर्माण पूरा हुआ। जहां मरीजों का इलाज शुरू हो चुका है। हालांकि दोनों सेंटर की क्षमता का अभी पूरा उपयोग नहीं हो पा रहा है। डॉक्टरों व नर्सो की कमी के कारण करीब आधे ऑपरेशन थियेटर बंद पड़े हैं।

लेडी हार्डिग मेडिकल कॉलेज का नहीं हुआ विस्तार

लेडी हार्डिग मेडिकल कॉलेज व उससे जुड़े अस्पतालों (कलावती शरण और सुचेता कृपलानी अस्पताल) के विस्तार के लिए वर्ष 2012 में पांच ब्लॉकों का निर्माण कार्य शुरू किया गया। इसमें कैंसर सेंटर, इमरजेंसी ब्लॉक, ओपीडी ब्लॉक, आइपीडी ब्लॉक व एकेडमिक ब्लॉक शामिल हैं। इस परियोजना को 586.49 करोड़ रुपये की लागत से जून 2014 में पूरा करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था पर जिस कंपनी को निर्माण की जिम्मेदारी दी गई थी उसने फंड से संबंधित विवाद के कारण बीच में ही काम छोड़ दिया।

इस वजह से वर्ष 2014 से निर्माण कार्य अधूरा पड़ा था। अब इसके निर्माण का रास्ता साफ हुआ है। दो साल में इसके बनने की उम्मीद है। इसके अलावा आरएमएल अस्पताल में सुपर स्पेशियलिटी सेंटर और मातृ व शिशु ब्लॉक की योजना पर अब तक काम शुरू नहीं हो पाया है।

एम्स विस्तार का इंतजार

एम्स की बेड क्षमता दोगुना से ज्यादा बढ़ाने की योजना है। इसके लिए एम्स ट्रॉमा सेंटर के परिसर में आधा दर्जन नए ब्लॉक बनाए जाने थे, लेकिन डॉक्टरों की आपत्ति के मद्देनजर योजना में बदलाव करना पड़ा। इस वजह से परियोजना पर काम शुरू नहीं हो पाया। हाल ही में केंद्र सरकार ने एम्स के नए मास्टर प्लान को मंजूरी दी है। इसके तहत करीब साढ़े दस हजार करोड़ की लागत संस्थान का विस्तार होगा।

योजना के अनुसार छह साल में 3000 बेड़ बढ़ाए जाएंगे। तब एम्स में करीब साढ़े पांच हजार बेड़ उपलब्ध होंगे। लोगों को इस योजना पर अमल का इंतजार है। इससे लोगों को काफी फायदा होगा।

आप ने किया ये दावा

आम आदमी पार्टी के प्रवक्ता दिलीप पांडे का कहना है कि स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार के लिए दिल्ली सरकार त्रिस्तरीय चिकित्सा प्रणाली पर काम कर रही है। प्राथमिक चिकित्सा सुविधा को बेहतर बनाने के लिए मोहल्ला क्लीनिक बनाए जा रहे हैं। इसकी सराहना विदेशों में भी हुई।

द्वितीय या तृतीय केयर अस्पतालों का भी विस्तार किया जा रहा है। द्वारका, अंबेडर नगर व बुराड़ी में तीन अस्पताल जल्दी बनकर तैयार हो जाएंगे। साथ ही मरीजों को निजी लैबों में अल्ट्रासाउंड, सीटी स्कैन, एमआरआइ जैसी जांच मुफ्त उपलब्ध कराई जा रही है। सरकारी अस्पतालों में सर्जरी के लिए 30 दिन से अधिक लंबा समय मिलने पर निजी अस्पतालों में निशुल्क सर्जरी की व्यवस्था की गई है।

भाजपा का आप पर सियासत करने का आरोप

भाजपा प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी का कहना है कि दिल्ली सरकार ने स्वास्थ्य सेवा के नाम पर सिर्फ सियासत की है। आयुष्मान योजना को दिल्ली में लागू नहीं करके मुख्यमंत्री केजरीवाल गरीबों के साथ अन्याय कर रहे हैं। आप ने नए अस्पताल बनाने, अस्पतालों मे 40 हजार बिस्तर बढ़ाने, एक हजार मोहल्ला क्लीनिक बनाने का वादा किया था जो पूरे नहीं हुए। अस्पतालों में इलाज के नाम पर मरीजों से भेदभाव हो रहा है। केंद्र सरकार ने स्टेंट की कीमत कम की।

मोहल्ला क्लीनिक पर कांग्रेस ने उठाए सवाल

कांग्रेस नेता डॉ. योगानांद शास्त्री का कहना है कि दिल्ली सरकार ने जो मोहल्ला क्लीनिक खोले हैं, उनमें से एक भी ठीक से नहीं चलते। मोहल्ला क्लीनिकों में दवाएं नहीं हैं। मोहल्ला क्लीनिक के नाम पर पैसों की बर्बादी हो रही है। दिल्ली में कांग्रेस सरकार के कार्यकाल जो डिस्पेंसरियां खोली गई थीं, उनमें से कइयों को बंद कर दिया गया। केंद्र सरकार आयुष्मान भारत पर सिर्फ गलत दावे करती रही है। जबकि हमने दिल्ली में यकृत व पित्त विज्ञान संस्थान (आइएलबीएस) जैसा अंतरराष्ट्रीय स्तर का अस्पताल व दिल्ली राज्य कैंसर इंस्टीट्यूट बनाया और उसे स्वायत्तता दी।

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