'समाज पर हानिकारक प्रभाव पड़ेगा', दुष्कर्म के बुजुर्ग आरोपी की जमानत खारिज करते हुए HC की अहम टिप्पणी
Delhi Crime News हाई कोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि नाबालिग से दुष्कर्म के आरोपित बुजुर्ग को जमानत देने का समाज पर हानिकारक प्रभाव पड़ेगा। इस मामले में पीड़िता के पिता ने निचली अदालत के आदेश को चुनौती देते हुए याचिका दायर की थी। इसी याचिका पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने ऐसा कहा है। पढ़िए पूरा मामला क्या है?
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। 13 वर्षीय किशोरी से दुष्कर्म करने वाले 60 वर्षीय आरोपित बुजुर्ग को दिल्ली हाई कोर्ट ने जमानत देने से इनकार कर दिया। हाई कोर्ट ने निचली अदालत से दी गई जमानत को रद करते हुए महत्वपूर्ण टिप्पणी की है।
न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की पीठ ने टिप्पणी की कि भले ही अदालतें आमतौर पर जमानत देने के आदेशों में हस्तक्षेप नहीं करती हैं, लेकिन इस मामले में आरोपित को जमानत पर रिहा करने से समाज पर हानिकारक प्रभाव पड़ेगा।
अदालत ने कहा कि शीर्ष अदालत द्वारा निर्धारित किया गया है कि जब जमानत देने के लिए आवश्यक बुनियादी आवश्यकताओं को ट्रायल कोर्ट द्वारा पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया जाता है, तो हाई कोर्ट द्वारा जमानत आदेश रद करना उचित होगा। ऐसे में अदालत की राय है कि ऐसे अपराधियों को जमानत देने से समाज पर हानिकारक प्रभाव पड़ेगा और वास्तव में पोक्सो अधिनियम के उद्देश्यों के विपरीत होगा।
ट्रायल कोर्ट के आदेश को दी गई थी चुनौती
अदालत ने उक्त टिप्पणी व आदेश पीड़िता के पिता द्वारा दायर अपील याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया। इसमें आरोपित को जमानत देने के ट्रायल कोर्ट के 27 अगस्त 2022 के आदेश को चुनौती दी गई थी।
आरोप है कि पड़ोस में रहने वाले बुजुर्ग ने नौ अक्टूबर 2019 में नाबालिग लड़की को एक इमारत के बाथरूम में ले गया था और उसके साथ छेड़छाड़ की थी। इस दौरान एक व्यक्ति ने उसे देख लिया और पीड़िता को बचा लिया।
पोक्सो की धारा-छह के तहत दर्ज किया गया था मामला
इस मामले में आरोपित के विरुद्ध भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा-376 (दुष्कर्म) और यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम (पोक्सो) की धारा-छह के तहत मामला दर्ज किया गया था।
यह भी पढ़ें- 'हम जिम्मेदार लोगों को निलंबित करेंगे', नाले में गिरने से मां-बच्चे की मौत पर हाईकोर्ट ने की सख्त टिप्पणीमामले पर विचार के बाद अदालत ने कहा कि पीड़िता की गवाही से स्पष्ट रूप से पता चलता है कि पोक्सो अधिनियम की धारा-तीन के तहत प्रथम दृष्टया आरोपित के खिलाफ मामला बनता है और जमानत देते समय ट्रायल कोर्ट ने पीड़िता की गवाही पर ध्यान नहीं दिया है।
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