पी. चिदंबरम के खिलाफ ट्रायल कोर्ट की कार्यवाही पर दिल्ली हाईकोर्ट ने लगाई रोक; पढ़ें क्या है मामला
Delhi Today News दिल्ली हाई कोर्ट ने पी. चिदंबरम के खिलाफ एयरसेल-मैक्सिस मनी लॉन्ड्रिंग मामले में ट्रायल कोर्ट की कार्यवाही पर रोक लगा दी है। चिदंबरम ने आरोप पत्र का संज्ञान लेने के ट्रायल कोर्ट के आदेश को चुनौती दी है। इस मामले की अगली सुनवाई अब 22 दिसंबर को होगी। आगे विस्तार से जानिए आखिर पूरा मामला क्या था?
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। एयरसेल-मैक्सिस से जुड़े मनी लाॉन्ड्रिंग मामले में ट्रायल कोर्ट में चल रही कार्यवाही पर दिल्ली हाई कोर्ट ने बुधवार को रोक लगा दी है।
न्यायमूर्ति मनोज कुमार ओहरी की पीठ ने चिदंबरम की याचिका पर ईडी को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। मामले में अगली सुनवाई 22 दिसंबर को होगी।चिदंबरम ने आरोप पत्र का संज्ञान लेने के ट्रायल कोर्ट के आदेश काे चुनौती दी है। कांग्रेस नेता ने कार्रवाई पर रोक लगाने की मांग की है।
पूरा मामला एयरसेल-मैक्सिस सौदे में विदेशी निवेश संवर्धन बोर्ड (एफआइपीबी) की मंजूरी देने में अनियमितताओं से संबंधित हैं। यह मंजूरी 2006 में दी गई थी जब चिदंबरम केंद्रीय वित्त मंत्री थे।
अदालत ने ईडी से मांगा जवाब
अदालत ने प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) से भी एयरसेल-मैक्सिस मनी लॉन्ड्रिंग मामले में उनके खिलाफ ईडी द्वारा दायर आरोप पत्र पर संज्ञान लेने के ट्रायल कोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली चिदंबरम द्वारा दायर याचिका के संबंध में जवाब मांगा।न्यायमूर्ति मनोज कुमार ओहरी की पीठ ने ईडी को नोटिस जारी करते हुए ट्रायल कोर्ट की कार्यवाही पर रोक लगा दी और मामले को विस्तृत सुनवाई के लिए जनवरी 2025 के लिए सूचीबद्ध कर दिया।चिदंबरम ने वरिष्ठ अधिवक्ता एन हरिहरन के माध्यम से अधिवक्ता अर्शदीप सिंह खुराना और अक्षत गुप्ता की सहायता से कहा कि ट्रायल कोर्ट के न्यायाधीश ने, आरोपित आदेश में, पीएमएलए की धारा 3 के तहत अपराध का संज्ञान लेने में गलती की, जो पीएमएलए की धारा 4 के तहत दंडनीय है, बिना धारा 197(1), सीआरपीसी के तहत किसी भी पूर्व मंजूरी के, यहां याचिकाकर्ता के अभियोजन के लिए प्रतिवादी/ईडी द्वारा प्राप्त किया गया है, इस तथ्य के बावजूद कि याचिकाकर्ता कथित अपराध के कथित कमीशन के समय एक लोक सेवक (वित्त मंत्री होने के नाते) था।
याचिका में कहा गया है कि विषय मामले में दिनांक 13.06.2018 और 25.10.2018 की अभियोजन शिकायतों में, प्रतिवादी/ईडी ने आरोप लगाया है कि याचिकाकर्ता, भारत सरकार के तत्कालीन वित्त मंत्री के रूप में, रुपये तक के कुल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) के लिए एफआईपीबी की मंजूरी देने के लिए सक्षम था। 600 करोड़ से अधिक की राशि के लिए मंजूरी देने के लिए सक्षम प्राधिकारी आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति (सीसीईए) थी।
यह आरोप लगाया गया है कि याचिकाकर्ता/पी चिदंबरम ने कथित रूप से अवैध रूप से 800 मिलियन अमरीकी डॉलर (लगभग 3565.91 करोड़) के लिए एफआईपीबी की मंजूरी दी, जो कि प्रतिवादी/ईडी के मामले के अनुसार केवल सीसीईए द्वारा ही दी जा सकती थी।यह भी पढ़ें- UP By-Election Voting Live: यूपी की नौ विधानसभा सीटों पर अब तक 20.5% मतदान, इस हॉट सीट सबसे ज्यादा वोटिंग
प्रतिवादी/ईडी द्वारा याचिकाकर्ता के खिलाफ अभियोजन शिकायतों में दिनांक 13.06.2018 और 25.10.2024 को लगाए गए आरोपों के अनुसार वह एक लोक सेवक था, और कथित अपराध तत्कालीन वित्त मंत्री, भारत सरकार के रूप में अपने कर्तव्यों के निर्वहन में कार्य करते हुए या कार्य करने का दावा करते हुए किया गया था। इसके अलावा, धारा 65 पीएमएलए सीआरपीसी के सभी प्रावधानों को पीएमएलए के तहत कार्यवाही पर लागू करता है, जिसमें धारा 197 सीआरपीसी भी शामिल है, याचिका में कहा गया है।
यह भी पढे़ं- 'जिसे 4 बार डिप्टी CM बनाया उसके साथ अन्याय कैसे हुआ?', शरद पवार का भजीते अजित पवार पर तीखा हमलाइस प्रकार, धारा 197(1), सीआरपीसी के तहत संरक्षण याचिकाकर्ता और एलडी तक विस्तारित होता है। विशेष न्यायाधीश ने प्रतिवादी/ईडी द्वारा धारा 197(1), सीआरपीसी के तहत पूर्व मंजूरी प्राप्त किए बिना याचिकाकर्ता के खिलाफ पीएमएलए की धारा 4 के साथ धारा 3 के तहत अपराध का संज्ञान लेने में गलती की, याचिका में कहा गया।
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