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Hindi Diwas 2021: हिंदी भाषा को आगे बढ़ाने के लिए सकारात्मकता के साथ पहल करना जरूरी

देश दुनिया की बड़ी ई-कामर्स कंपनियां भारत में हिंदी के विशाल बाजार को देखते हुए लोगों की जरूरत के सामान को हिंदी नाम के साथ खोजने की सहूलियत दे रही हैं। इसे हिंदी की ताकत समझते हुए हमारे विद्वानों को सरल-सहज भाषा में सामने लाने का अधिकाधिक प्रयास करना चाहिए।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Sat, 11 Sep 2021 11:42 AM (IST)
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नई पीढ़ी को हिंदी भाषा में नवोन्मेष की प्रेरणा मिले
नई दिल्ली, अरुण श्रीवास्तव। Hindi Diwas 2021 आपने टीवी पर एक अमेरिकी बहुराष्ट्रीय ई-कामर्स कंपनी के इस विज्ञापन पर जरूर गौर किया होगा। इसमें एक महिला पूछती है कि ‘सिल बट्टे’ को अंग्रेजी में क्या कहते हैं। इस सवाल को उस मोहल्ले में सभी एक-दूसरे से पूछते हैं, पर कोई इसे अंग्रेजी में नहीं बता पाता। तभी आत्मविश्वास से भरी एक लड़की उससे पूछती है कि आखिर वह अंग्रेजी नाम क्यों जानना चाहती है। इस पर वह महिला कहती है कि उसे ई-कामर्स साइट से उसे मंगाना है और इसके लिए साइट पर अंग्रेजी में ही उसे खोजना पड़ेगा।

लड़की कहती है कि अंग्रेजी में उसे ढूंढ़ने की क्या जरूरत है, अब तो वह किसी भी सामान को हिंदी में भी तलाश करके मंगा सकती हैं। इसी तरह का एक दिलचस्प मामला मेरी एक सहयोगी ने भी साझा किया। उनके किचन में काम आने वाला चिमटा टूट गया था। वह उन्हें कहीं मिल नहीं रहा था। आखिर उन्हें भी उसे ई-कामर्स साइट से मंगाने का विचार आया, पर मुश्किल उसके अंग्रेजी नाम को लेकर थी। लेकिन उक्त विज्ञापन का ध्यान आने के बाद जब उन्होंने हिंदी में ‘चिमटा’ लिखकर तलाशा, तो उन्हें वह तमाम तरह के चिमटे दिख गए। फिर उसमें अपनी पसंद का चिमटा उन्होंने घर बैठे मंगा लिया।

आज के समय में हर किसी के हाथ में स्मार्टफोन है। लोग वाट्सएप पर आसानी से संदेशों का आदान-प्रदान करते हैं और वह भी हिंदी में। तमाम लोग तो अक्सर वाट्सएप और फेसबुक पर हिंदी में लंबी-लंबी पोस्ट लिखते हैं। दिलचस्प बात यह है कि यह सब वह लोग भी करते हैं, जो हिंदी में अपना हाथ तंग होने या हिंदी में टाइप करना न जानने की बात करते हैं। दरअसल, सरल तकनीक की वजह से मोबाइल पर उनके द्वारा टाइप करना आसान हो गया है। यह संभव हो सका है यूनिकोड की वजह से। इसकी वजह से उन्हें संदेश भेजने और चैटिंग करने में खूब मजा आने लगा है। अगर देखा जाए, तो सुबह से देर रात तक की चैटिंग और पोस्ट में तमाम लोग हर दिन हिंदी में हजारों शब्द लिख देते हैं। बेशक तकनीक की वजह से चिट्ठी लिखने की परंपरा एक तरह से लुप्त हो गई है, लेकिन इसे बदलते समय की मांग ही कहा जाएगा।

विशालता की ताकत: देश और दुनिया की तमाम बड़ी और बहुराष्ट्रीय कंपनियों की नजर हिंदी के विशाल बाजार पर है। उन्हें अच्छी तरह पता है कि अगर इस बाजार के ग्राहकों तक पहुंचना है, तो उनकी सहूलियत के अनुसार अंग्रेजी के बजाय उनकी भाषा यानी हिंदी में ही उन तक पहुंचा जा सकता है। यही कारण है कि पिछले कुछ महीनों से उन्होंने टीवी और अन्य डिजिटल माध्यमों से जोर-शोर से यह प्रचार करना शुरू किया है कि हिंदीभाषियों को अब घर बैठे कोई भी सामान मंगाने के लिए परेशान होने की कतई जरूरत नहीं है। अंग्रेजी में पसंद के सामान को तलाशने के बजाय अब वे हिंदी में भी आसानी से उसे तलाश और मंगा सकते हैं। अंग्रेजी के सामने हिंदी के कमजोर होने को लेकर तमाम बातें की जाती रही हैं। यह भी कहा जाता है कि हमारी युवा पीढ़ी, किशोर और बच्चे हिंदी को लेकर उदासीन हैं। वे इस भाषा को पढ़ना-सीखना-बोलना नहीं चाहते। लेकिन क्या हम कभी इस बात पर भी विचार करते हैं कि आज के तेजी से बदलते दौर में जब तकनीक की मदद से तमाम सारी चीजें एक इशारे पर हो जा रही हैं, ऐसे में पुराने और बोझिल तरीके से हम नई पीढ़ी की हिंदी के प्रति दिलचस्पी भला कैसे बढ़ा सकते हैं।

खीचें बड़ी लकीर: विद्वान और बड़े-बुजुर्ग अक्सर कहते हैं कि किसी लकीर को छोटा करने का सर्वोत्तम तरीका उसे खुरचना-मिटाना नहीं, बल्कि उसके सामने बड़ी लकीर खींच कर दिखाना होता है। हिंदी के बारे में बात करें तो अंग्रेजी या किसी अन्य भाषा को हिंदी का दुश्मन मानकर उसका विरोध करने के बजाय बदलते समय के मुताबिक इसे सरल-सहज और दिलचस्प बनाने की दिशा में काम करने की कहीं ज्यादा जरूरत है। यह हमारे हिंदी के विद्वान लेखकों, साहित्यकारों, शिक्षाविदों, अध्यापकों, पत्रकारों आदि की जिम्मेदारी है कि गंभीर और दुरूह विषयों को हिंदी में रोचक तरीके से बताएं-पढ़ाएं। आज भी विज्ञान, गणित, अर्थशास्त्र जैसे तमाम कठिन माने जाने वाले विषयों की अच्छी और प्रामाणिक मानी जानी वाली किताबें अंग्रेजी में ही उपलब्ध हैं, जिसकी वजह से तमाम विद्यार्थी उन्हें अंग्रेजी में पढ़ने को मजबूर होते हैं। प्रतिभाशाली होते हुए भी अंग्रेजी में कमजोर होने के कारण वे प्राय: उन विषयों में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाते। कई बार यह भी होता है कि सिर्फ अंग्रेजी के चलते ही रुचि होने के बावजूद वे उस विषय से विमुख होने लगते हैं। अच्छी बात यह है कि इस बात को महसूस करते हुए देश के विभिन्न भागों में कुछ उत्साही शिक्षकों के अलावा पढ़ने-पढ़ाने में रुचि रखने वाले युवा भी हिंदी और अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में कठिन विषयों को पढ़ाने की पहल करते दिख रहे हैं। हालांकि साहित्यकारों और लेखकों की तरफ से अभी भी बड़ी पहल किया जाना बाकी है।

हिंदी में तकनीकी पाठ्यक्रम: इस साल सरकार की तरफ से उठाया गया यह कदम भी स्वागत योग्य है, जिसमें उच्च शिक्षा के कई पाठ्यक्रमों को हिंदी सहित देश की अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में संचालित करने की अनुमति दी गई है। इससे देश के उन असंख्य युवाओं को जरूरी खुशी हुई होगी, जो अंग्रेजी कमजोर होने के कारण अपनी पसंद के विषय नहीं पढ़ पा रहे थे। इस कदम से अपनी भाषा में उच्च शिक्षा हासिल कर न केवल अपने सपने पूरे कर सकेंगे, बल्कि अपनी प्रतिभा से देश के विकास में भी योगदान कर सकेंगे। हालांकि उच्च शिक्षा हासिल करने की इच्छा रखने वाले युवाओं की आवश्यकता को देखते हुए केंद्र और राज्य सरकारों के अलावा विश्वविद्यालय अनुदान आयोग और अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद को तकनीकी विषयों की गुणवत्तायुक्त किताबों को हिंदी में उपलब्ध कराने की भी सक्रिय पहल करनी चाहिए। इस दिशा में न केवल अंग्रेजी पुस्तकों का सरल हिंदी में अनुवाद हो, बल्कि विद्वान लेखकों को इन विषयों पर हिंदी में लिखने के लिए प्रेरित किया जाए। उन्हें प्रोत्साहित करने के लिए आकर्षक मानदेय और पुरस्कार भी दिए जाने चाहिए।

आत्मविश्वास के साथ बढें आगे : कोई भी भाषा किसी की राह में बाधा नहीं बल्कि सहायक ही बनती है। ऐसे में हिंदी को मजबूत और समृद्ध करने के लिए अंग्रेजी का विरोध करने के बजाय हमें अपनी भाषा का आनंद उठाना चाहिए। हम हिंदी का लुत्फ उठाते हुए इसमें बातें करते हुए, लिखते हुए दूसरों को भी इसके लिए प्रेरित करते रहें। अंग्रेजी भी जरूर सीखें, पर उसे अपने ऊपर हावी कतई न होने दें। खुद को कमतर या हीन समझने के बजाय किसी भी मंच पर आत्मविश्वास के साथ अपनी बात हिंदी में रखें। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी ने तो संयुक्त राष्ट्र में अपनी बात बिना किसी झिझक के हिंदी में रखी थी। हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री भी दुनिया के तमाम मंचों पर प्रभावी तरीके से अपनी बात हिंदी में रखते हैं।

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