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आपदा के लिए कितनी तैयार हैं शहरों की हाई-राइज़ सोसाइटी : ईलिया जाफ़र

आपदाओं के चलते हर साल अनगिनत जानें जाती हैं और फिर इस बात के तो सबूत हैं कि दुनिया भर में कई ऊंची इमारतें आपदाओं से बुरी तरह प्रभावित हुई हैं।ऐसी इमारतों की एक बुनियादी कमजोरी घटिया मटीरियल का इस्तेमाल करना और बिल्डिंग बनाने के नियम-कायदों का पालन नहीं करना है। किसी इमारत की मजबूती उसकी बुनियाद से आती है। उसकी स्टैबलिटी और सुरक्षा का यही आधार है।

By Jagran News Edited By: Anurag Mishra Updated: Mon, 21 Oct 2024 10:21 PM (IST)
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भूकंप संभावित क्षेत्रों में यदि बुनियाद मजबूत नहीं हुई तो भूकंप विनाश का कारण बन सकता है।

 अंग्रेजी की यह कहावत आपने भी सुनी होगी और गगनचुम्बी इमारतों के रूप में इसे चरितार्थ होते हुए देखा भी होगा। बेतहाशा पसरते शहरों में ऊंची-ऊंची इमारतें विकास और विस्तार का प्रतीक बन गई हैं। यह अनुमान है कि 2030 तक भारत की शहरी आबादी 600 मिलियन का आंकड़ा पार लेगी। इतनी आबादी कहां बसेगी? इस सवाल का एक ही जवाब है - ऊंची-ऊंची इमारतों में जो धड़ल्ले से बन रही हैं। हाल तक इस ऊंचाई की एक सीमा थी पर आज की गगनचुंबी इमारतें सचमुच गगन चूमने लगी हैं। मुंबई की एक इमारत तो 100 मंज़िल की है। इन ऊंची इमारतों में एक अपार्टमेंट अपने नाम कर लेना एक बड़ा सपना सच होने जैसा है, जो जिन्दगी भर की बचत के बाद संभव होता है। इसलिए फ्लैट चुनते समय लोग तमाम पहलुओं पर विचार करते हैं मसलन कीमत, लोकेशन, स्कूल और बाज़ार से दूरी, लोन मिलने की सुविधा, प्राकृतिक प्रकाश, हरियाली और फिर स्विमिंग पूल और जिम जैसी अत्याधुनिक सुविधाएं।जब हम ऊंची इमारतों की कल्पना करते हैं तो लोगों के मन में अक्सर दिल्ली, मुंबई आता है। लेकिन हम भूल जाते हैं कि टीयर-2 एवं टीयर-3 के शहरों खासकर बिहार, उत्तर प्रदेश के मैदानी पट्टी के शहरी इलाकों में आबादी घनत्व तेजी से बढ़ता जा रहा है और उससे निपटने के लिए इन शहरों में भी ऊंची इमारतों का जाल फैलता जा रहा है। पटना इसका उदाहरण है। इसमें एक-से-एक सुविधाएं हैं, जिनकी वजह से इनकी डिमांड भी है, लेकिन अपनी तमाम खूबियों के बावजूद अहम सवाल की ओर हमारा ध्यान नहीं जाता - क्या ये ऊंची-ऊंची इमारतें हर लिहाज से सुरक्षित हैं? दरअसल एक देश के तौर पर हम आपदा के लिए कितने तैयार हैं यह हम सभी जानते हैं और इस मामले में ऊंची इमारतें भी आपदा के खतरों से सुरक्षित नहीं हैं।

डॉ. ईलिया जाफ़र जन कल्याण और विकास क्षेत्र में कार्यरत प्रोफेशनल हैं ने बताया कि आपदाओं के चलते हर साल अनगिनत जानें जाती हैं और फिर इस बात के तो सबूत हैं कि दुनिया भर में कई ऊंची इमारतें आपदाओं से बुरी तरह प्रभावित हुई हैं।ऐसी इमारतों की एक बुनियादी कमजोरी घटिया मटीरियल का इस्तेमाल करना और बिल्डिंग बनाने के नियम-कायदों का पालन नहीं करना है। किसी इमारत की मजबूती उसकी बुनियाद से आती है। उसकी स्टैबलिटी और सुरक्षा का यही आधार है। भूकंप संभावित क्षेत्रों में यदि बुनियाद मजबूत नहीं हुई तो भूकंप विनाश का कारण बन सकता है। बाढ़ से भी बुनियाद कमज़ोर हो सकती है। ऐसे में जिस घर को सुरक्षित माना जाता है आपदा की आहूति चढ़ सकती है।शहरी क्षेत्रों में अक्सर ग्राउंड फ्लोर को पार्किंग बना दिया जाता है। इसके लिए पर्याप्त मज़बूती चाहिए जिस पर ध्यान नहीं दिया जाता है। भूकंप में सॉफ्ट स्टोरी ढह सकती हैं। इसके चलते निचली मंजिलें और ऊपरी मंजिलें भी ढह जाती हैं। इमारत में बेसमेंट या फिर युटिलिटी एरिया हो तो भारी बारिश या अचानक बाढ़ से अधिक नुकसान का खतरा रहता है। मुंबई में एक ऐसी ही बाढ़ 2017 में आई जिसमें एक चार मंजिला इमारत ढह गई। कई लोग घायल हो गए।

दिल्ली के ललिता पार्क में भी 2010 में एक इमारत ढह गई। इसकी वजह कमज़ोर नींव और ऊपर से बाढ़ बताई गई। ऐसी इमारतों में बिना परमिशन फ्लोर जोड़ने से सुरक्षा जवाब दे जाती है और कानून की तो धज्जियां उड़ जाती है।एक अन्य बड़ी चिंता आग से सुरक्षा की है। ऊंची इमारतें डिजाइन करते हुए कई बातों का ध्यान रखना अत्यावश्यक है, जैसे आग लगने पर निकास, ऐसी सामग्रियों का इस्तेमाल जिनमें आग पकड़ने का खतरा नहीं हो और फिर आग फैलने से रोकने के लिए स्प्रिंकलर सिस्टम लगाना। 'फसाडÓ या 'इंटीरियरÓ में ज्वलनशील पदार्थों का उपयोग जोखिम को काफी हद तक बढ़ा सकता है। आज की ऊंची इमारतों में लिफ्ट और एचएवीसी जैसे जटिल सिस्टम होते हैं, जाहिर है ऐन वक्त पर सिस्टम काम नहीं करने का बड़ा खतरा रहता है। लिफ्ट में लोगों के फंसने या आग लगने की घटनाएं होती हैं, जो डिजाइन व मेंटेनेंस में कमी के चलते बढ़ सकती हैं।ऊंची इमारतों के लिए चक्रवात और तेज़ हवाएँ चलना भी खतरनाक हो सकता है। उनकी बड़ी-बड़ी खिड़कियों को तूफान से नुकसान पहुंच सकता है और तेज हवा के झोंके में कमजोर छतें उड़ सकती हैं। तूफान से विंड टेनल बन सकते हैं, जिससे इमारतों पर हवा का भार बढ़ और इस तरह जोखिम बढ़ जाता है। जिस इलाके की जमीन मजबूत नहीं होती वहां बहुमंजिला इमारतें कैसे ढह जाती हैं इसकी याद दिलाती है 2013 में उत्तराखंड में आई बाढ़ और भूस्खलन की घटना।

भूस्खलन के मद्देनजर केरल में किए गए एक अध्ययन में पश्चिमी घाट की खड़ी ढलानों पर ऊंची इमारतें नहीं बनाने की सलाह दी गई। दिल्ली जैसे इलाकों में जमीन का धंसना एक अन्य गंभीर खतरा है, जिसके परिणामस्वरूप ऊंची इमारतों की सुरक्षा की अलग कठिनाइयां हैं।जहां तक किसी इमारत की सुरक्षा का सवाल है यह समझना होगा कि ऊंचाई ही एकमात्र अहम पहलू नहीं है। डिजाइन, निर्माण की गुणवत्ता और नियमित मेंटेनेंस जैसे कई महत्वपूर्ण पहलू हैं। ऊंची इमारतों में कई बारीक सिस्टम होते हैं और इनमें किसी भी खराबी के गंभीर परिणाम हो सकते हैं, चाहे लिफ्ट में हो या एचएवीसी सिस्टम में। इसलिए ऊंची इमारतों में रहने वाले, खास कर भूकंप संभावित क्षेत्रों के लोग यह सुनिश्चित करें कि उनके स्ट्रक्चर का रैपिड विज़ुअल स्क्रीनिंग हो और राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण से अनुशंसित अन्य मानकों पर भी आकलन किया जाए। किसी स्ट्रक्चर के विभिन्न हिस्सों के सुरक्षा आकलन के लिए नॉन-डिस्ट्रक्टिव टेस्टिंग (एनडीटी) तकनीक इस्तेमाल कर सकते हैं। बाढ़ संभावित क्षेत्रों में इमारतों के लिए बेसमेंट में मैकेनिकल और इलैक्ट्रिकल सिस्टम को इन्सुलेट कर देने से बाढ़ के नुकसान से बचा जा सकता है।

हाई-राइज़ बिल्डिंग किसी शहर के विकास की निशानी होती हैं और इनका जीवन शानदार दिखता है लेकिन इनके अपने कुछ खतरे भी हैं। हालांकि इन खतरों से बचने के उपाय किए जा सकते हैं जैसे इमारत के डिजाइन, निर्माण और नियमित सुरक्षा का आकलन करना। इससे यह सुनिश्चित होगा कि गगनचुम्बी इमारतों में रहने वाले लोग सुरक्षित हैं। इन चिंताओं को दूर करने के कदम उठा कर हम संभावित खतरों को कम कर सकते हैं। ऊंची इमारतों के रहवासियों के लिए निश्चंत होकर जीने का आनंद सुनिश्चित कर सकते हैं।

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