'माता-पिता से अलग रहने के लिए पति को नहीं किया जा सकता मजबूर...', दिल्ली HC ने पत्नी की अपील को किया खारिज
यह ऐसा मामला है जहां अपीलकर्ता ने बमुश्किल तीन महीने में ससुराल को छोड़ने का फैसला किया। दिल्ली हाई कोर्ट ने उक्त टिप्पणी क्रूरता और परित्याग के आधार पर पति को तलाक देने के पारिवारिक अदालत के आदेश को चुनौती देने वाली पत्नी की अपील को खारिज करते हुए की। कोर्ट ने कहा कि उचित कारण होने पर अलग रहने के दावे को क्रूरता नहीं कहा जा सकता है।
By Vineet TripathiEdited By: Abhishek TiwariUpdated: Thu, 12 Oct 2023 05:27 PM (IST)
विनीत त्रिपाठी, नई दिल्ली। दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि भारतीय संस्कृति में जब पति ने अपने माता-पिता के साथ संयुक्त परिवार में रहना चुना है तो केवल पत्नी की इच्छा पर शादी के पहले दिन से उसे अपने स्वजन से अलग होने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है।
अदालत ने कहा कि एक व्यक्ति की अपने माता-पिता और जीवनसाथी के प्रति समान जिम्मेदारी होती है और इसके लिए दोनों के बीच एक नाजुक संतुलन बनाए रखना आवश्यक है।
अदालत ने उक्त टिप्पणी क्रूरता और परित्याग के आधार पर पति को तलाक देने के पारिवारिक अदालत के आदेश को चुनौती देने वाली पत्नी की अपील को खारिज करते हुए की। जनवरी 2012 में दाेनाें ने शादी की थी और तीन महीने बाद ही अलग हो गए थे।
तीन महीने में किया ससुराल को छोड़ने का फैसला
पारिवारिक अदालत के निर्णय को बरकरार रखते हुए न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत व न्यायमूर्ति नीता बंसल कृष्णा की पीठ ने कहा कि ससुराल वालों के साथ मतभेद, कार्य प्रतिबद्धताएं या विचारों में मतभेद जैसी असंख्य स्थितियां हैं जो शादी को बनाए रखने के लिए अलग आवास की उसकी मांग को उचित बना सकती हैं।Also Read-'अपने बच्चे के पितृत्व को अस्वीकार करने से अधिक क्रूर कुछ नहीं', तलाक के मामले को लेकर दिल्ली HC की अहम टिप्पणी
अदालत ने कहा कि कुछ उचित कारण होने पर अलग निवास के दावे को क्रूरता का कार्य नहीं कहा जा सकता है। हालांकि, पत्नी अलग निवास के अपने दावे को सही नहीं ठहरा पाई। यह एक ऐसा मामला है जहां अपीलकर्ता ने बमुश्किल तीन महीने में ससुराल को छोड़ने का फैसला किया।उसके द्वारा दावा किया गया कोई भी आधार किसी भी सुबूत से साबित नहीं हुआ है। इस तथ्य को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है कि 12 साल से अधिक की अवधि में ऐसा अभाव मानसिक क्रूरता के समान है। पति ने दावा किया कि उसके माता-पिता के साथ ससुराल में रहने से इन्कार करके उसकी पत्नी ने क्रूरता की। पति ने तर्क दिया कि उसकी पत्नी पहले ही दिन से अलग आवास की मांग कर रही थी।
आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।अदालत ने कहा कि कुछ उचित कारण होने पर अलग निवास के दावे को क्रूरता का कार्य नहीं कहा जा सकता है। हालांकि, पत्नी अलग निवास के अपने दावे को सही नहीं ठहरा पाई। यह एक ऐसा मामला है जहां अपीलकर्ता ने बमुश्किल तीन महीने में ससुराल को छोड़ने का फैसला किया।उसके द्वारा दावा किया गया कोई भी आधार किसी भी सुबूत से साबित नहीं हुआ है। इस तथ्य को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है कि 12 साल से अधिक की अवधि में ऐसा अभाव मानसिक क्रूरता के समान है। पति ने दावा किया कि उसके माता-पिता के साथ ससुराल में रहने से इन्कार करके उसकी पत्नी ने क्रूरता की। पति ने तर्क दिया कि उसकी पत्नी पहले ही दिन से अलग आवास की मांग कर रही थी।