एनसीआर के शहरों में बने बड़े अस्पतालों ने आधुनिकीकरण के साथ इस क्षेत्र की चिकित्सा सुविधाओं को विश्व पटल पर भी ला दिया है, इससे एनसीआर मेडिकल पर्यटन केंद्र के रूप में भी उभरा है, लेकिन एक बड़ी आबादी ऐसी भी है, जो इन महंगे अस्पतालों में इलाज का खर्च उठाने में सक्षम नहीं है।
ऐसे में, एनसीआर के लोगों को घर के नजदीक किफायती, सुलभ और वेटिग रहित विश्वस्तरीय चिकित्सा सुविधाओं की आकांक्षा है। ताकि अस्पतालों में बेड, जांच सुविधाओं, आइसीयू, आक्सीजन और डाक्टरों की कमी से किसी की जान न जाए। चिकित्सा सुविधाओं की स्थिति और आमजन की आकांक्षाओं पर पेश है रणविजय सिंह की रिपोर्ट...
हर वार्ड में एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र हो
क्षेत्र के हर वार्ड में एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र होना चाहिए। जहां सुबह आठ से रात आठ बजे तक दो डाक्टरों की उपस्थिति रहे। जिसमें एक महिला डाक्टर भी जरूर हो। हर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में सामान्य ब्लड जांच, एक्स-रे, ईसीजी सहित बुनियादी पैथोलाजी जांच और एंबुलेंस की सुविधा होनी चाहिए। ताकि सामान्य बीमारियों के इलाज के लिए आमजन को बड़े अस्पताल में न जाना पड़े। अस्थमा, बीपी, डायबिटीज, थायराइड इत्यादि की दवाएं आसानी से मिल सकें।
बड़ा सरकारी सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल हो
एनसीआर के सभी संसदीय क्षेत्र में 1000 से 1500 बेड का एक बड़ा सरकारी सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल होना चाहिए। जहां गंभीर बीमारियों के इलाज की अत्याधुनिक सुविधाएं उपलब्ध हों। हर जिले में एक मल्टी स्पेशियलिटी अस्पताल और मेडिकल कालेज होना चाहिए। जहां विशेषज्ञ डाक्टर हों। इको, सीटी स्कैन, एमआरआई, पेट स्केन जैसी जांच उपलब्ध होनी चाहिए। खांसी-जुकाम, बुखार के मरीज प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों से रेफर होने पर ही देखे जाने चाहिए। क्लॉट बस्टर दवा, हार्ट अटैक और स्ट्रोक के मरीजों की हालत स्थिर करने की भी सुविधा होनी चाहिए।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों के अनुसार 1000 की आबादी पर पांच बेड होने चाहिए। दिल्ली में तीन बेड भी उपलब्ध नहीं है। एनसीआर के शहरों की स्थिति और बदतर है, इसलिए बुनियादी ढांचे का विस्तार कर तीन स्तरीय चिकित्सा सुविधा विकसित करने की जरूरत है।
जाम में फंसने से बचाने को एंबुलेंस के लिए हो अलग लेन
यातायात जाम एक बड़ी समस्या है। एनसीआर में भी एंबुलेंस के लिए अलग लेन होनी चाहिए। अस्पताल के आसपास की सड़कों पर कोई अवरोध नहीं होना चाहिए। ताकि एंबुलेंस जल्दी से अस्पताल पहुंच सके और मरीज को समय रहते इलाज मिल सके। एनसीआर में सड़क हादसे बढ़े हैं। समय पर इलाज नहीं मिलने के कारण हर वर्ष सैकड़ों ट्रामा मरीज जान गवां देते हैं। गौतमबुद्ध नगर, सोनीपत, पानीपत सहित एनसीआर के सभी प्रमुख शहरों के साथ ही हाईवे पर ट्रामा सेंटर की जरूरत है।
एम्स के मास्टर प्लान पर अमल करने की है दरकार
एम्स में बेहतर इलाज की उम्मीद में एनसीआर के अलावा देश भर से मरीज पहुंचते हैं। मरीजों का दबाव अधिक की वजह से एम्स में पहुंचने के बाद मरीज जांच और सर्जरी के लिए मरीजों को लंबा इंतजार करना होता हैं। इसलिए वर्षों से लंबित एम्स को विश्वस्तरीय आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय में तब्दील करने के लिए बनी परियोजना एम्स मास्टर प्लान पर अमल करने की जरूरत है। इससे एम्स में 3000 बेड और 100 आपरेशन थियेटर बढ़ेंगे।
मातृ एवं शिशु के इलाज की सुविधाओं में चाहिए विस्तार
संस्थागत प्रसव बढ़ने से दिल्ली में मातृ मृत्यु दर बहुत कम हो गई है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने वैश्विक स्तर पर सतत विकास को वर्ष 2030 तक के लिए लक्ष्य निर्धारित किए हैं। हालांकि दिल्ली लक्ष्य हासिल कर चुका है, लेकिन नवजात व शिशु मृत्यु दर निचले स्तर पर लाना अब भी चुनौती है। सरकारी अस्पतालों में अब भी एक बेड ही दो प्रसूताओं को देने की मजबूरी होती है।
हृदय रोग और कैंसर के इलाज की सुविधाएं बढ़ें
हृदय रक्तवाहनियों की बीमारियों से सबसे अधिक मौत होती हैं। एम्स के एक अध्ययन के अनुसार हार्ट अटैक और स्ट्रोक से पीड़ित दो तिहाई मरीजों की मौत अस्पताल पहुंचने से पहले ही हो जाती है। यह अध्ययन एनसीआर में हार्ट अटैक और स्ट्रोक से जान गंवाने वाले लोगों पर किया गया था। कैंसर के इलाज की सुविधाओं का बड़ा अभाव है। आडियो-वीडियो कंसल्टेशन से सामान्य बीमारियों एवं मरीजों का फालोअप इलाज संभव है, ऐसे में डिजिटल एवं टेली-कंसल्टेशन की सुविधा बढ़ाने की जरूरत है।
हरियाणा में प्रस्तावित चिकित्सा परियोजनाएं
फरीदाबाद- जिला नागरिक बादशाह खान अस्पताल परिसर में चाइल्ड एंड मदर यूनिट प्रस्तावित है। एम्स से मंजूर फतेहपुर बिल्लौच में 20 बेड के अस्पताल के साथ मदर चाइल्ड यूनिट शुरू हो तो स्वास्थ्य सेवाएं मिलने लगेंगी। हालांकि सेक्टर-30 में जच्चा-बच्चा को बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं के लिए यूनिट का शुभारंभ हुआ है।
पलवल- यहां पीकू वार्ड तैयार है, लेकिन स्टाफ की कमी के चलते शुरू नहीं हो सका है। जिला नागरिक अस्पताल में नर्सिंग कालेज भी बन गया, लेकिन स्टाफ नहीं है।
गुरुग्राम- जिला नागरिक अस्पताल को नए सिरे से बनाया जाना था, इसे 400 से बढ़ाकर 700 बेड का करना प्रस्तावित है। आठ महीने पहले सीपीडब्ल्यूडी से करार के तहत 4.72 करोड़ की मांग गई, जो चार दिन पहले ही जारी हुई है। यहां बर्न वार्ड नहीं है और सेक्टर-10 स्थित नागरिक अस्पताल में बुनियादी ढांचागत सुविधाओं का अभाव है। बजट जारी न होने से नया भवन बनना बाकी है।
सोनीपत- करनाल से दिल्ली तक 100 किमी हाईवे पर कहीं ट्रामा सेंटर नहीं है। पानीपत और सोनीपत में कोई ट्रामा सेंटर नहीं है। घायलों को रोहतक पीजीआइ या खानपुर कलां स्थित बीपीएस महिला मेडिकल कालेज भेजना पड़ता है। लोहारू-मेरठ हाईवे पर गांव खेवड़ा के पास महज 11 एकड़ जगह ही तय की जा सकी है।
प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों का नेटवर्क हो मजबूत
डॉक्टर अस्पतालों में डाक्टरों की कमी एक बड़ी समस्या है, इसलिए अस्पतालों में स्थायी तौर पर डाक्टरों की नियुक्ति होनी चाहिए। ताकि अस्पतालों में पर्याप्त संख्या में डाक्टर उपलब्ध हों और मरीज परेशान न हों। 75 किलोमीटर दिल्ली से दूर हापुड़ के जिला अस्पताल में 24 घंटे बिजली नहीं रहती है। एक्स-रे नहीं हो पाता है, और ब्लड बैंक नहीं शुरु हो सका।
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