देश में सूखा, बाढ़ और मिट्टी में नमी की मिलेगी सटीक जानकारी, IIT-ISRO ने सुपर कंप्यूटर से तैयार किया यह सिस्टम
Delhi News भारत जैसे कृषि प्रधान देश में जो काफी हद तक ताजे पानी की मौसमी उपलब्धता पर निर्भर करता है। कृषि के लिए पानी की उपलब्धता और मिट्टी की स्थिति की जानकारी फसल चक्र के लिए मायने रखती है। ऐसी जगह भौगोलिक बारीकियों के अनुरूप उच्च-मानकों का मॉडल देश की अर्थव्यवस्था और खाद्य सुरक्षा के लिए आवश्यक है।
उदय जगताप, नई दिल्ली। भारत जैसे कृषि प्रधान देश में, जो काफी हद तक ताजे पानी की मौसमी उपलब्धता पर निर्भर करता है। कृषि के लिए पानी की उपलब्धता और मिट्टी की स्थिति की जानकारी फसल चक्र के लिए मायने रखती है। ऐसी जगह भौगोलिक बारीकियों के अनुरूप उच्च-मानकों का मॉडल देश की अर्थव्यवस्था और खाद्य सुरक्षा के लिए आवश्यक है।
इसको ध्यान में रखते हुए भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) दिल्ली और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने कंप्यूटर आधारित हाइड्रोलिक मॉडल तैयार किया है। इंडियन लैंड डेटा एसिमिलेशन सिस्टम (आईएलडीएस) मॉडल आईआईटी के सुपर कंप्यूटर में तैयार किया गया है।
डेटा विश्लेषण के आधार पर पूर्वानुमान करेगा। यह देश में सूखे की स्थिति, बाढ़ की स्थिति, मिट्टी में नमी के हालात की सटीक जानकारी देगा। जिससे समय रहते जरूरी इंतजाम कर फसल उत्पादन को बेहतर बनाया जा सकेगा।
मानसून के वक्त देश के कई इलाकों में बाढ़ और भूस्खलन के मामले सामने आते रहते हैं। कई बार पूर्वानुमान लगाने में समय अधिक लग जाता है। इस दुविधा को दूर करने के लिए इसके बाद समय रहते बचाव कार्य किए जा सकेंगे।
मॉडल तैयार करने वाले आईआईटी दिल्ली सिविल इंजीनियरिंग विभाग के प्रो. मानबेंद्र सहरिया ने कहा, मॉडल सिर्फ भारत में है ही नहीं समूचे दक्षिण एशिया में काम कर रहा है। इसके जरिये बाढ़ और भूस्खलन जैसी आपदाओं से भी बचाव किया जा सकेगा।
पूरे दक्षिण एशिया के डेटा एक घंटे में विश्लेषण कर देगा और पांच से 10 मिनट में बाढ़ की स्थिति और नदी में जल स्तर बढ़ने की स्थिति का आकलन करके बता देगा। मॉडल पड़ोसी मुल्कों की नदियों के बारे में भी जानकारियां देगा। पाकिस्तान, बांग्लादेश और चीन की भारत की सीमा से लगी नदियों में अगर वहां जल स्तर बढ़ता है तो उसका हमारे इलाकों में क्या असर पड़ेगा, पहले ही विश्लेषण कर बता देगा।
उन्होंने कहा कि मॉडल सतही और जमीन के अंदर के पानी की स्थिति का आकलन करके बताएगा। प्रो. सहरिया ने कहा, यह एकल प्रणाली पर आधारित मॉडल है। इससे पहले एक मॉडल के जरिये, मिट्टी की नमी, नदियों में जल की स्थिति, जमीन के ऊपर और जमीन के अंदर उपलब्ध पानी के बारे में जानकारी नहीं जुटाई गई हैं।
सहरिया ने कहा, अभी तक जो मॉडल काम करते हैं, वे विशिष्ट नदियों के बेसिन के इलाकों के बारे ही जानकारी दे पाते हैं। कृष्णा और गोदावरी इलाके में ऐसा मॉडल काम कर रहा है। लेकिन, पूरे देश के डेटा का विश्लेषण एक साथ करने की जरूरत थी। इसलिए मॉडल तैयार किया गया है। हमने तीन लाख स्क्वेयर किलोमीटर क्षेत्र का आकलन किया है।
उन्होंने बताया कि 2022 में असम में आई बाढ़ के वक्त मॉडल ने पहले सी वहां की स्थिति का आकलन कर लिया था। इसकी जानकारी संबंधित एजेंसियों को दी गई थी। आगे भी ऐसे सटीक अनुमान लगाने में यह मॉडल सक्षम होगा। इससे पहले भारत और दक्षिण एशिया के देशों के सेटेलाइ डेटा का विश्लेषण एक साथ हाई- रेज्युलेशन पर काम करने वाली तकनीक उपलब्ध नहीं हैं।
आइएलडीएस से संबंधित शोध पत्र जनरल आफ हाइड्रोलॉजी में प्रकाशित हुआ है। देश के अलग-अलग इलाकों में पानी की उपलब्धता, मिट्टी की स्थिति आदि का आकलन अगले शोध पत्र में प्रकाशित किया जाएगा। इसको इसरो के अंतरक्षित अनुप्रयोग केंद्र (एसएसी) अहमदाबाद को सौंप दिया गया है।
दो वर्ष का लगा समयप्रो. मानबेंद्र सहरिया ने कहा, दो वर्ष में इसे पूरा किया गया है। इसरो और नासा के गोडार्ड स्पेस फ्लाइट सेंटर के सहयोग से विकसित किया गया है। आईआईटी दिल्ली के अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी सेल के तहत इसे तैयार किया गया है। आइएलडीएस को विकसित करने में 1981 से 2021 तक के सेटेलाइट डेटा का उपयोग किया गया है। इसमें अखिल भारतीय अवलोकन रिकार्ड का सहारा लिया गया है।
नासा के वैश्विक वायुमंडलीय रीएनालिसिस डेटासेट, कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय का अर्ध-वैश्विक वर्षा डेटासेट सीएचआइआरपीएस और भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के डेटा का इस्तेमाल किया गया है। इसके जरिये रिमोट सेंसिंग डेटा का सटीक इस्तेमाल किया जा सकेगा। प्रोजेक्ट के लिए फंड इसरो से दिया गया है। शोध में इसरो के वैज्ञानिक रोहित प्रधान, आईआईआरएस के निदेशक राघवेंद्र पी सिंह, आइएमडी के प्रमुख मृत्युंजय महापात्रा, आईआईटी पीएचडी के शोध छात्र भानु मगोत्रा, वेद प्रकाश शामिल रहे हैं।
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