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जानिये- यूपी में कैसे गोशाला ट्रस्ट की जमीन पर खड़ी हो गईं 'मौत की इमारतें'

गांव में आचार्य साहित्य प्रचार गोशाला ट्रस्ट एवं योग आश्रम की 300 बीघा जमीन बेचने के मामले में प्राधिकरण की लापरवाही सामने आई है।

By JP YadavEdited By: Updated: Sat, 29 Sep 2018 12:35 PM (IST)
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जानिये- यूपी में कैसे गोशाला ट्रस्ट की जमीन पर खड़ी हो गईं 'मौत की इमारतें'

नोएडा (धर्मेंद्र चंदेल)। ग्रेटर नोएडा वेस्ट के शाहबेरी गांव में अवैध इमारतों का जाल प्राधिकरण की हीलाहवाली के चलते ही फैला था। गांव में आचार्य साहित्य प्रचार गोशाला ट्रस्ट एवं योग आश्रम की 300 बीघा जमीन बेचने के मामले में प्राधिकरण की लापरवाही सामने आई है। ट्रस्ट के सदस्यों ने नियम विरुद्ध 300 बीघा जमीन पर छोटे-छोटे भूखंड बनाकर 400 लोगों को बेच दी थी। इसी जमीन पर बाद में मौत की इमारत खड़ी हुई।

शाहबेरी में सबसे ज्यादा अवैध इमारतें ट्रस्ट की जमीन पर बनी हुई हैं। हाई कोर्ट ने ट्रस्ट की जमीन जिला जज की अनुमति के बेचने पर कड़ी आपत्ति जताई थी। हाई कोर्ट ने तब ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण को निर्देश दिए थे कि जमीन खरीदारों के नाम विज्ञापन के जरिए समाचार पत्रों में प्रकाशित कराए। इसके अलावा ट्रस्ट को निर्देश दिए गए थे कि वह भूखंड खरीदारों को कोर्ट में पेश करें। ऐसा न करने पर जमीन की रजिस्ट्री स्वत: रद मानी जाएगी।

उस समय प्राधिकरण अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए ट्रस्ट की जमीन खरीदने वालों के नाम समाचार पत्रों में प्रकाशित करा देता और कोर्ट में खरीदारों के पेश न होने की स्थिति में रजिस्ट्री स्वत: रद के आदेश पर अमल कराने के लिए पैरवी करता तो गांव में अवैध इमारत खड़ी नहीं होती।

रजिस्ट्री रद न होने पर खरीदारों ने उसे बिल्डरों और कालोनाइजरों को बेच दिया। इसके बाद ही गांव में अवैध इमारत बननी शुरू हुई। बिल्डरों ने फ्लैट बेचकर करोड़ों के व्यारे-न्यारे किए।

प्राधिकरण ने 2008 में गांव की बाकी भूमि के साथ ट्रस्ट की 300 बीघा जमीन का भी अधिग्रहण कर लिया था। इसके ट्रस्ट के सदस्यों ने हाई कोर्ट में चुनौती दी थी।  खसरा नंबर 11 की साढ़े नौ हेक्टेयर जमीन का अधिग्रहण रद करने की मांग की गई। प्राधिकरण की तरफ से तहसीलदार संजीव ओझा ने कोर्ट में जवाब दाखिल किया कि जमीन पर प्राधिकरण ने कब्जा ले लिया है।

ट्रस्ट ने अपनी जमीन 400 लोगों को बेच दी थी। तीन सौ लोगों के दाखिल खारिज भी हो गए। कोर्ट ने ट्रस्ट की जमीन बेचने पर आपत्ति की तो धर्मपाल आदि ने 29 मार्च 2011 को प्रार्थना पत्र देकर कहा कि याचिका वकील ने गलती से की। हमने कोई याचिका दायर नहीं की।  

यह था मामला

शाहबेरी गांव के लोगों ने 1980 में चंदा एकत्र कर 300 बीघा जमीन गोशाला ट्रस्ट व योग आश्रम के लिए खरीदी थी। जमीन को जिला जज की अनुमति के बाद ही बेचा जा सकता था। ट्रस्ट के सदस्यों ने जिला जज की अनुमति के बिना ही सारी जमीन को बिल्डरों को बेच दिया। गोशाला की जमीन का उपयोग आवासीय के लिए नहीं हो सकता। बिल्डरों ने जमीन पर नियम के विरुद्ध छह-छह मंजिला इमारत खड़ी कर दी। 

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