ग्लोबल से लोकल तक पहुंचा जलवायु परिवर्तन का असर : पर्यावरण विशेषज्ञ
चीन की बाढ़ हो या दिल्ली में विस्तारित मानसून के दौरान अनियमित रिकॉर्ड तोड़ वर्षा दोनों ही मुसीबतों का कारण जलवायु परिवर्तन ही रहा है। विशेषज्ञों की मानें तो जलवायु परिवर्तन की प्रमुख वजह मानवीय गतिविधियों के द्वारा जीवाश्म ईंधन का जलाया जाना और वनों की कटाई है।
By Pradeep ChauhanEdited By: Updated: Fri, 10 Dec 2021 07:10 AM (IST)
राजस्थान (नीमली)/ नई दिल्ली [संजीव गुप्ता]। जलवायु परिवर्तन सिर्फ वैश्विक अवधारणा भर नहीं रहा बल्कि इसका दुष्प्रभाव अब स्थानीय स्तर पर भी दिखने लगा है। अगर भारत की ही बात करें तो पिछले कुछ वर्षों के दौरान चरम मौसमी घटनाएं जलवायु परिवर्तन की वजह से ही सामने आई हैं। चीन की बाढ़ हो या दिल्ली में विस्तारित मानसून के दौरान अनियमित रिकॉर्ड तोड़ वर्षा, दोनों ही मुसीबतों का कारण जलवायु परिवर्तन ही रहा है। विशेषज्ञों की मानें तो जलवायु परिवर्तन की प्रमुख वजह मानवीय गतिविधियों के द्वारा जीवाश्म ईंधन का जलाया जाना और वनों की कटाई है। इन दोनों वजहों की निरंतरता के कारण ही धरती 1850 (पूर्व औद्योगिक काल) से 1.09 डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म हो चुकी है।
वहीं, विशेषज्ञों के मुताबिक बीता दशक (2011-2020) 1.25 लाख वर्षों में सबसे गर्म दशक के तौर पर दर्ज किया गया है। यह सभी तथ्य बृहस्पतिवार को राजस्थान में नीमली स्थित अनिल अग्रवाल एनवायरमेंट ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट (एएईटीआइ) में सेंटर फार साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) की ओर से आयोजित दो दिवसीय सम्मेलन मंथन-5 के पहले दिन जलवायु विशेषज्ञों ने सामने रखे। ग्लासगो में आयोजित कान्फ्रेंस आफ पार्टीज (कोप-26) से शिरकत करके लौटीं सीएसई की जलवायु विशेषज्ञ अवंतिका गोस्वामी ने बताया कि हर 0.5 डिग्री तापमान की अतिरिक्त वृद्धि धरती को और गर्म बनाएगी, जिसके कारण सूखा और अतिवृष्टि की समस्या प्रबल रूप धारण कर सकती है। उन्होंने कहा कि ग्रीन हाउस गैसों (कार्बन डाई आक्साइड और मीथेन ) के उत्सर्जन में कमी लाने के ठोस प्रयास नहीं किए जाते हैं तो आने वाले वर्षों में न सिर्फ तापमान बढ़ेगा बल्कि गरीबी की मार झेलने वाली आबादी इसका सबसे बड़ा शिकार बनेगी।
उन्होंने बताया कि कोप-26 के दौरान भारत ने अपना और विकासशील देशों का पक्ष मजबूती के साथ रखा लेकिन अंतरराष्ट्रीय फलक पर मांगों को लेकर अनदेखी की गई है जो बेहद चिंताजनक है। ज्यादातर विकसित देश कोयले के इस्तेमाल को चरणबद्ध तरीके से खत्म करने की नसीहत भारत को ही दे रहे हैं जबकि 15 गुना अधिक तक उत्सर्जन करने वाले विकसित देश अपने उत्सर्जन में कटौती को लेकर चुप्पी साधे हुए हैं। अवंतिका गोस्वामी ने सम्मेलन के दौरान बताया कि सर्वाधिक चिंता का विषय यह है कि वातावरण में मौजूदा कार्बन डाई ऑक्साइड की सांद्रता 414 पार्ट्स प्रति मिलियन तक पहुंच गई है जबकि इसका सामान्य सुरक्षित स्तर 350 पार्ट्स प्रति मिलियन तक रखा गया था। डाउन टू अर्थ के प्रबंध निदेशक रिचर्ड महापात्रा ने बताया कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण हवाओं का तापमान बढ़ जाता है और उसके बहाव की दिशा बदल जाती है और उसका असर मौसम की चरम घटनाओं के रूप में सामने आता है।
उत्तरी ध्रुव क्षेत्र जो कि बेहद ठंडे होते हैं वहा भी बढते तापमान का असर दिखाई दे रहा है। वह भी क्षेत्र भी गर्म हो रहे हैं जिसकी वजह से तूफान और बेमौसमी घटनाओं में इजाफा हो रहा है। मिसाल के तौर पर उत्तर प्रदेश में जीका और डेंगू बढ़ने की वजह भी तापमान में 1.2 डिग्री की बढोत्तरी है, जो कि मच्छरों के प्रसार के लिए अनुकूल वातावरण तैयार करती है। इनमें टिड्डी दल का हमला भी शामिल है जो कि किसानों के 10 से 15 फीसदी फसलों को नुकसान पहुंचा रही है।
उन्होंने राज्य और जिला व गांव स्तर के जलवायु परिवर्तन से निपटने वाली योजनाओं को लागू करने की अनिवार्यता पर भी बल दिया। इसके अलावा विशेषज्ञों ने आइपीसीसी रिपोर्ट के आधार पर कहा कि यदि तापमान में बढोत्तरी जारी रही तो दिल्ली-एनसीआर का इलाका भी आने वाले वर्षों में न सिर्फ मानसून की लंबी अवधि बल्कि भारी और अनियमित वर्षा से त्रस्त रह सकता है।
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