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दिल्ली हाई कोर्ट में अस्पताल की तरफ से बताया गया कि मृत्यु के बाद बदल जाते हैं अधिकार, पढ़िए क्या है एक परिवार से जुड़ा पूरा मामला?

माता-पिता ने अपने अविवाहित मृत बेटे की मौत के बाद उसके संरक्षित वीर्य का नमूना देने के संबंध में सर गंगाराम अस्पताल को निर्देश देने की मांग को लेकर याचिका दायर की है। याचिका पर सुनवाई के बाद मामले पर अंतिम जिरह के लिए 13 मई को सूचीबद्ध कर दिया।

By Vinay Kumar TiwariEdited By: Updated: Sun, 06 Feb 2022 12:23 PM (IST)
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मई में अंतिम जिरह के बाद होगा तय कि माता-पिता को कानूनी अधिकार है या नहीं

नई दिल्ली [विनीत त्रिपाठी]। दिल्ली हाई कोर्ट में एक दिलचस्प मामला सामने आया है। माता-पिता ने अपने अविवाहित मृत बेटे की मौत के बाद उसके संरक्षित वीर्य का नमूना देने के संबंध में सर गंगाराम अस्पताल को निर्देश देने की मांग को लेकर याचिका दायर की है। न्यायमूर्ति वी कामेश्वर राव की पीठ ने इस याचिका पर सुनवाई के बाद मामले पर अंतिम जिरह के लिए 13 मई को सूचीबद्ध कर दिया। अदालत मामले में यह तय करेगी कि अविवाहित बेटे की मौत के बाद उसके वीर्य पर माता-पिता का अधिकार है या नहीं।

अधिवक्ता कुलदीप सिंह के माध्यम से दायर याचिका में गुरविंदर सिंह ने कहा कि कैंसर ग्रस्त उनके 30 वर्षीय बेटे की सितंबर 2020 में मौत हो गई थी। डाक्टरों ने कहा था कि उसके इलाज में अपनाई जा रही प्रक्रिया से प्रजनन क्षमता खत्म हो सकती है। ऐसे में जून 2020 में युवक के वीर्य के नमूने को अस्पताल की आइवीएफ लैब में संरक्षित किया गया था। वंश को आगे बढ़ाने के लिए ऐसा किया गया। याचिकाकर्ता ने कहा कि बेटे की मौत के बाद जब उसके वीर्य के नमूने की मांग की तो अस्पताल ने देने से मना कर दिया। उन्होंने दलील दी कि बेटे की मौत के बाद वे उसकी शेष शारीरिक संपत्ति के एकमात्र दावेदार हैं।

याचिका में सवाल उठाया गया है कि अविवाहित बेटे के वीर्य के नमूने पर किसका अधिकार है।अस्पताल की तरफ से पेश हुए अधिवक्ता सुभाष कुमार ने दलील दी कि अस्पतालों को एक जीवित व्यक्ति की अनुमति से शुक्राणु एकत्र करने और संरक्षित करने की अनुमति है, लेकिन व्यक्ति की मृत्यु के बाद कानूनी अधिकार बदल जाते हैं। उन्होंने कहा कि चूंकि इस मामले पर अब तक कोई स्पष्ट दिशानिर्देश नहीं हैं तो कलकत्ता हाई कोर्ट के अशोक कुमार चटर्जी बनाम भारत सरकार के एक मामले में सुनाए गए फैसले पर भरोसा करते हुए याचिकाकर्ता को वीर्य देने से इन्कार कर दिया था।

कलकत्ता हाई कोर्ट ने उक्त मामले में कहा था कि मृतक के साथ पिता-पुत्र के संबंधों के आधार पर याचिकाकर्ता (पिता) को ऐसी अनुमति का कोई मौलिक अधिकार नहीं है। वहीं, याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने इस मामले को अलग करने की मांग करते हुए कहा कि अशोक कुमार चटर्जी विवाहित थे। इस मामले में मृतक अविवाहित था और उसका कोई अन्य कानूनी उत्तराधिकारी नहीं था।

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