चंद्रयान की सफलता से खुलेगी नई राह, भविष्य में धूमकेतु पर भी लैंडर उतार सकेगा भारत
नोएडा स्थित एमिटी इंस्टीट्यूट ऑफ स्पेस साइंस ऑफ टेक्नोलॉजी के निदेशक एमएस प्रसाद के अनुसार चंद्रयान-2 की कामयाबी के बाद भविष्य में लैंडर उतारने की जमीन तैयार हो सकती है।
By JP YadavEdited By: Updated: Mon, 22 Jul 2019 10:38 AM (IST)
नोएडा [चंद्रशेखर वर्मा]। सोमवार को लांच किए जा रहे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (Indian Space Research Organisation) के अभियान चंद्रयान-2 का लैंडर चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरेगा। यहां से चंद्रमा के भूमध्य रेखा की दूरी करीब 600 किमी होगी।
भविष्य में धूमकेतु पर भी लैंडर उतार सकेगा भारत एमिटी इंस्टीट्यूट ऑफ स्पेस साइंस ऑफ टेक्नोलॉजी के निदेशक एमएस प्रसाद के अनुसार, चंद्रयान-2 अगर चांद की सतह पर उतरने में कामयाब रहता है तो भारत के लिए यह बड़ी उपलब्धि होगी। इस अभियान की सफलता भविष्य में किसी धूमकेतु (comets) पर लैंडर उतारने की जमीन तैयार कर सकती है।
रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (Defence Research and Development Organisation) के पूर्व निदेशक रह एमएस प्रसाद इसरो में शोध कार्य भी कर चुके हैं। उनके अनुसार यदि भारत का यह प्रयास सफल होता है, तो आने वाले समय में पूरे विश्व को इसका फायदा मिलेगा। दक्षिणी ध्रुव पर रोवर उतारने वाला भारत पहला देश होगा।
खास बात यह है कि चंद्रमा के भूमध्य रेखा से दक्षिणी ध्रुव पर लैंडर के उतरने की जगह से दूरी 600 किलोमीटर होगी। भूमध्य रेखा से इतनी कम दूरी पर लैंडर उतारना काफी मुश्किल होता है। अगर चंद्रयान-2 ऐसा करने में सफल हो जाता है, तो इसी तकनीक का सहारा लेकर आने वाले समय में धूमकेतु पर लैंडर उतारा जा सकेगा। इससे शोध व अन्य कार्यों के लिए काफी मिलेगी।
प्रज्ञान करेगा पानी, बर्फ, सूर्य की रोशनी की खोजएमएस प्रसाद ने बताया कि प्रज्ञान रोवर दक्षिणी ध्रुव पर पानी, बर्फ और सूर्य की रोशनी की खोज करेगा। दक्षिणी ध्रुव पर सूर्य की रोशनी अधिक होती है। इससे वहां जीवन की संभावनाओं की तलाश हो सकेगी। ये तीनों तत्व अगर वहां मौजूद हैं, तो जीव आसानी से जीवित रह सकते हैं।
यहां पर बता दें कि धूमकेतु जमे हुए गैस, पत्थर और धूल से बनी हुई कॉस्मिक गेंद होती हैं, जो सूर्य के चारों ओर परिक्रमा कर रही हैं। जब ये जमे हुए होते हैं, तो उनका आकार एक छोटे से सूर्य जैसा होता है। वहीं, परिक्रमा करते हुए जब ये सूर्य के निकट आ जाते हैं तो बहुत गर्म हो जाते हैं और गैस एवं धूल का वमन करते हैं जिसके कारण विशालकाय चमकती हुई पिंड का निर्माण हो जाता है जो कभी कभी ग्रहों से भी बड़े आकार के होते हैं। दूसरे खगोलीय पिंडों कि खोज थोड़े लेट से हुई किन्तु धूमकेतु एक ऐसा पिंड है जिसके बारे में लोग प्राचीन काल से जानते हैं। चीन में इस बात का रिकॉर्ड उपस्थित है कि 240 BC पहले हैली नाम के धूमकेतु कि उपस्थिति दर्ज कि गई थी। दुबारा सन्न 1066 AD में इंग्लैंड में भी हैली धूमकेतु के बारे में रिकॉर्ड मिला।
वर्ष 1999 तक लगभग 890 धूमकेतु सूचीबद्ध किये जा चुके हैं और उनके परिक्रमा पथ को भी पहचाना जा चूका है। इनमे से 184 पीरियाडिक धूमकेतु हैं यानि कि उनको परिक्रमा पूरा करने में 200 से कम वर्ष लगते हैं।क्या धूमकेतु ने पहुंचाया धरती पर पानी
आर्यभटट् प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान एरीज के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. शशिभूषण पांडे का कहना है कि यह संभव है कि पृथ्वी पर पानी पहुंचाने में धूमकेतुओं की भूमिका रही होगी। आखिर इतना जल कहां से आया, इसके बारे में आज तक सही जानकारी नहीं मिल पाई है। माना जाता है कि बर्फीला होने के कारण धूमकेतु में काफी मात्रा में जल होता है। शायद पूर्व में कोई धूमकेतु पृथ्वी से टकरा गया होगा और काफी जल धरती पर पहुंच गया। इसके बाद ही पृथ्वी में जीवन संभव हुआ होगा।दिल्ली-NCR की ताजा खबरों और स्टोरीज को पढ़ने के लिए यहां पर करें क्लिक
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