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Ram Mandir: अयोध्‍या में विवादित ढांचे के नीचे मंदिर है, यह कहने पर जब जाते-जाते बची केके मोहम्मद की नौकरी

Ram Mandir News यह बात 1990 की है उस समय चंद्रशेखर देश के प्रधानमंत्री थे उस समय वामपंथी इतिहासकार प्रो इरफान हबीब रोमिला थापर आदि ने अखबारों में एक बयान दिया कि अयोध्या में विवादित ढांचे के नीचे कुछ नहीं मिला है और ढांचा सपाट जमीन पर खड़ा है इन लोगों ने तर्क दिया कि पुरातत्वविद प्रो बी बी लाल को भी वहां खोदाई में ऐसा कुछ नहीं मिला है।

By V K Shukla Edited By: Abhishek Tiwari Updated: Sun, 31 Dec 2023 11:26 AM (IST)
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राम जन्मभूमि को लेकर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के पूर्व निदेशक पद्मश्री डॉ के के मोहम्मद का संस्मरण
वी के शुक्ला, नई दिल्ली। बहुत पहले ही खोदाई में यह बात साबित हो गई थी विवादित ढांचा के नीचे मंदिर (Ram Mandir) है। अयोध्या राम जन्मभूमि स्थान पर 1976-77 में पुरातत्वविद प्रो बी बी लाल के नेतृत्व में खाेदाई हुई थी, उस खोदाई में मैं भी शामिल रहा था।

उस खोदाई में वहां राम मंदिर के प्रमाण मिले थे। मगर जब मैंने 1990 में यह बात सार्वजनिक रूप से कह दी थी तो मेरी नौकरी जाते जाते बची थी।क्या हुई थी घटना, आइए सुनते हैं पद्मश्री डा केके मोहम्मद की कहानी, उन्हीं की जुबानी।

यह बात 1990 की है, उस समय चंद्रशेखर देश के प्रधानमंत्री थे, उस समय वामपंथी इतिहासकार प्रो इरफान हबीब, रोमिला थापर आदि ने अखबारों में एक बयान दिया कि अयोध्या में विवादित ढांचे के नीचे कुछ नहीं मिला है और ढांचा सपाट जमीन पर खड़ा है, इन लोगों ने तर्क दिया कि पुरातत्वविद प्रो बी बी लाल को भी वहां खोदाई में ऐसा कुछ नहीं मिला है।इसलिए यह बात गलत है कि ढांचे के नीचे मंदिर के प्रमाण हैं।

विवादित ढांचे के नीचे मिले मंदिर होने के प्रमाण

अंग्रेजी के एक अखबार में इन लोगों का बयान छपा। इस पर प्रो लाल ने संबंधित अखबार से बात की और बताया कि आप के समाचार पत्र में गलत दावा किया गया है।उन्होंने बताया कि अयोध्या में विवादित ढांचे के नीचे मंदिर होने के प्रमाण मिले हैं। मगर उस समय इस मुद्दे पर प्रो लाल के साथ खड़ा हाेेने वाला कोई नहीं था।प्रो लाल अकेले पड़ गए थे।यह बात मुझे अच्छी नहीं लगी कि एक सच बात काे झुटलाया जा रहा है।

"खोदाई करने वाली टीम में मैं अकेला मुस्लिम था..."

इस पर मैंने एक अन्य अग्रेजी दैनिक के संपादक अरुण शौरी (बाद में केंद्रीय मंत्री) से बात की और उन्हें बताया कि प्रो लाल के साथ में अयोध्या में खोदाई में मैं भी शामिल था।मैं एक मुस्लिम हूं, मगर यह बात एक पुरातत्वविद होने के नाते कह रहा हूं कि अध्योया मेें विवादित ढांचे के नीचे के प्रमाण मिले हैं और इसके प्रमाण हमें वहां खाेदाई में मिले हैं। खोदाई करने वाली टीम में मैं अकेला मुस्लिम था।

मेरा बड़ा सा बयान उस अखबार में सभी संकरणों में प्रकाशित हुआ।इस पर बवाल तो हाेना की था।खूब बवाल मचाया गया, मैं उस समय भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के मद्रास कार्यालय में उप अधीक्षण पुरातत्वविद था, नई नई नौकरी लगी थी, उस समय प्रोबेशन पीरियड चल रहा था।

बात केंद्र सरकार तक पहुंची तो मुझे नाैकरी से निकालने की तैयारी हाे चुकी थी।उस समय मद्रास में एक राष्ट्रीय सेमिनार था, वहां भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के सचिव आर के त्रिपाठी पहुंचे हुए थे, उनके साथ उस समय के भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के महानिदेशक एन सी जोशी भी पहुंचे हुए थे, सेमिनार के बाद उन्होंने मुझे बुलवाया और अयोध्या में विवादित ढांचे के नीचे मंदिर के प्रमाण होने की बात तक मुझसे सवाल किए कि आप ने कैसे ये बयान दिया है।

तुम्हारे खिलाफ एक्शन ले रहा हूं...

इस पर मैंने उन्हें बताया कि बयान मैंने एक पुरातत्वविद की हैसियत से दिया है, मैं उस खोदाई में शामिल रहा हूं।इस पर मैंने उन्हें संस्कृति में एक स्लोक सुना दिया। इस पर वह और भड़क गए और कहा कि मैं इलाहाबाद का ब्राहमण हूं और तुम मुझे संस्कृत के स्लोक सुना रहे हो। कहा कि मैं तुम्हारे खिलाफ एक्शन ले रहा हूं, तुम्हें निलंबित कर रहा हूं, तुम्हारी अभी नौकरी भी पक्की नहीं हुई है, तुम्हारी नौकरी भी जाएगी।

इस पर मैंने उनसे कहा कि मैंने अपना कर्तव्य निभाया है, जो सच है उसे बताया है, जो राष्ट्र हित में है, वह बात कही है, अब अगर नौकरी जाती है तो इसके लिए भी मैं तैयार हूूं।इस पर वह कुछ नार्मल हुए, उनके व्यवहार में बदलाव आया और उन्होंने कहा कि एक्शन तो तुम्हारे खिलाफ मुझे लेना ही है।अब देखते हैं कि क्या एक्शन लिया जाए?

उस समय मदास में वरिष्ठ आइएएस एच महादेवन और मद्रास विश्वविद्यालय के प्रभावशाली प्रोफेसर के बी रमन ने मेरी मदद की, तो मुझे निलंबित नहीं किया गया और मेरी नाैकरी बच गई, मगर मेरा तबादला मद्रास से गोवा कर दिया गया।बाद में मुझे पता चल कि मेरे खिलाफ कार्रवाई के लिए ऊपर से दबाव था, क्योंकि उस समय केंद्र सरकार में प्रो इरफान हबीब आदि की चलती थी, वे लोग मेरे खिलाफ कार्रवाई के लिए दबाव बना रहे थे।

बाद में 2019 में प्रो इरफान हबीब के शिष्य अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के प्रो सैयद अली नदीम रिजवी ने मेरे खिलाफ बयान दे दिया कि मैं अयोध्या की खोदाई में शामिल नहीं था।इस पर मैंने लाल साहेब से संपर्क किया, लाल साहेब उस समय अमेरिका में थे, उन्होंने वहां से पत्र भेजा और साफ किया कि के के मोहम्मद अयोध्या राम जन्मभूमि खोदाइ में मेरी टीम के सदस्य थे।

प्रो. बीबी लाल ने 1976-77 में कराई थी अयोध्या में खोदाई

मैं यह स्पष्ट करना चाहता हूं कि प्रो बीबी लाल ने 1976-77 में अयोध्या में खोदाई कराई थी, प्रो लाल उस समय शिमला एडवांस स्टडीज के निदेशक थे। इससे कुछ साल पहले उन्होंने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के महानिदेशक के पद से त्यागपत्र दिया था।उस समय मैं एएसआइ के स्कूल आफ आर्किलोजी का छात्र था। हम 10 छात्रों की टीम अयोध्या में प्रो लाल के साथ इसी खोदाई में गई हुई थी।

ढांचे के सर्वे मिले थे मंदिर के 12 पिलर

इसमें एक छात्र मलेशिया, एक नेपाल और अन्य छात्र भारत से थे।उनमें पूर्व केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश की पत्नी जयश्री भी शामिल थीं। उन दिनों विवादित ढांचे में पूजा होती थी, दूर दूर से लोग वहां पूरा करने पहुंचते थे। उसमें रामलला की मूर्ति रखी थी। हम लाेगाें ने उस ढांचे का सर्वे किया था, जिसमें मंदिर के 12 पिलर मिले थे।

इस ढांचे के पासपास खोदाई हुई थी जिसमें खंडित मूर्तियां मिली थीं और अन्य प्रमाण मिले थे, जो मस्जिद में कभी नहीं रखे जाते हैं। इस्लाम में इसे हराम माना जाता है। ईंटों की नीव मिली थी, ये सब ऐसे प्रमाण थे जो ढांचे के नीचे मंदिर हाेने की बात की पुष्टि करते थे।

मिलती रहीं पीएफआइ से धमकियां

एक सीजन ही खोदाई चली थी, लाल साहेब ने अपनी रिपोर्ट में यह सब बातें लिखी थीं मगर इसे कभी अपनी ओर से सार्वजनिक नही किया ओर न ही इसे मुद्दा बनाया और न ही उनका ऐसा कोई मकसद था।

उन्होंने केवल एक पुरातत्वविद के लिहाज पर ही इसे लिया था। अयोध्या में राम मंदिर के प्रमाण की बात कहने पर मुझे बाद मेें भी कुछ तत्वों द्वारा खासकर पीएफआइ से धमकियां मिलती रहीं और आज भी कुछ लोग मुझसे बैर मानते हैं।

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