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भारतीय संस्कृति और प्रभु श्रीराम एक-दूसरे के पूरक: रामनाथ कोविंद

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने द्वारका में आयोजित रामलीला में कहा कि भारतीय संस्कृति और प्रभु श्रीराम एक-दूसरे के पूरक हैं। उन्होंने कहा कि श्रीराम हमारी पहचान हैं और उनके बिना भारतीय संस्कृति अधूरी है। उन्होंने लोगों से मर्यादा पुरुषोत्तम के आचरण को जीवन में आत्मसात करने की बात कही। रामलीला में रावण के विशालकाय पुतले का दहन भी किया गया।

By Jagran News Edited By: Geetarjun Updated: Sat, 12 Oct 2024 10:15 PM (IST)
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रामलीला में तीर चलाते पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद।

जागरण संवाददाता, पश्चिमी दिल्ली। द्वारका श्री रामलीला सोसाइटी के तत्वावधान में द्वारका सेक्टर-10 में आयोजित हो रही रामलीला में पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद अपनी पत्नी सविता कोविंद व बेटी स्वाति कोविंद के साथ पहुंचे। अन्याय के प्रतीक रावण के विशालकाय पुतले (211 फीट ऊंचा) का दहन करने से पूर्व रामनाथ कोविंद ने लोगों से मर्यादा पुरुषोत्तम के आचरण को जीवन में आत्मसात करने की बात कही।

भारतीय संस्कृति व प्रभु श्रीराम को एक दूसरे के पूरक करार देते हुए कहा कि हम सब प्रभु श्रीराम के हैं, और प्रभु श्रीराम हम सबके हैं। प्रभु श्रीराम हमारी पहचान हैं। उनके बिना भारतीय संस्कृति अधूरी है। हम सभी को अपने आचरण में मर्यादा पुरुषोत्तम के उच्चतम आदर्शों को समाहित करने का प्रयास करना चाहिए।

राष्ट्रपति का संबोधन

पूर्व राष्ट्रपति ने अपने संबोधन में रामलीला के सफल आयोजन के लिए आयोजन समिति के मुख्य संरक्षक राजेश गहलोत सहित तमाम पदाधिकारियों को बधाई देते हुए कहा कि भारत के स्वर्णिम अतीत के सफल मंचन के लिए द्वारका श्री रामलीला सोसाइटी की भूरि भूरि प्रशंसा करता हूं। रामलीला का आयोजन भारत की सांस्कृतिक विरासत को नई शक्ति प्रदान करने की एक कोशिश है।

हम उस देश के वासी हैं, जहां...

कहा भी जाता है कि हम सब उस देश के वासी हैं, जिस देश में गंगा बहती है और जहां राम की लीला होती है। श्रीराम सनातन धर्म के आधार स्तंभ हैं। उनके चरित्र में नैतिकता, मर्यादा, मानव मात्र के प्रति प्रेम, वानर, भालू, गिलहरी, पक्षियों सहित समस्त जीवधारियों के प्रति अनुराग के आदर्शों के दर्शन हम सभी को दिखाई देते हैं।

तुलसी दास का दोहा सुनाया

श्री रामचरितमानस के अयोध्या कांड में गोस्वामी तुलसी दास जी ने कहा कि नीति प्रीति परमारथ स्वारथ, कोउ न राम सम जान जथारथ अर्थात जीवन के सभी पक्षों का आदर्श रूप देखना हो तो श्री राम के चरित्र में देखने को मिलेगा। पूर्व राष्ट्रपति ने कहा कि श्रीराम जो सदगुण व धार्मिकता के प्रतीक हैं, न केवल अपने साहस व नेतृत्व के लिए बल्कि व्यक्तिगत संबंधों में भी अपने कर्तव्यों व समर्पण के प्रति गहरी भावना के लिए स्मरणीय है।

एक पति के रूप में भगवान राम अपनी पत्नी सीता के प्रति प्रेम सम्मान व प्रतिबद्धता का उदाहरण हैं, वहीं एक भाई के रूप में भरत के साथ प्रेम व सम्मान का संबंध साझा किया। उनका रिश्ता हमें त्याग व पारिवारिक बंधनों की मजबूती के बारे में सीख देता है। एक पुत्र के रूप में भगवान राम ने आज्ञाकारी संतान के उच्चतम रूप का उदाहरण प्रस्तुत किया।

माता कैकेयी की इच्छा के कारण 14 वर्षों तक वनवास में भेजे जाने के अन्याय के बावजूद राम ने अपने पिता राजा दशरथ के वचन का सम्मान करते हुए बिना किसी विरोध के इसे स्वीकार किया। रावण जो उनका शत्रु था, उसको भी भगवान राम ने सम्मान व करुणा से युक्त व्यवहार दिया। राम ने अपने अनुज लक्ष्मण को रावण के अंतिम क्षणों में उससे शिक्षा लेने के लिए भेजकर रावण के सदगुणों के प्रति सम्मान दिखाया।

यह कार्य हमें याद दिलाता है कि एक महापुरुष अपने शत्रु के सदगुणों का भी सम्मान करता है। भगवान राम सदगुण, अनुशासन, और धर्म के प्रति अटूट समर्पण के प्रतीक हैं। एक शिष्य के रूप में उन्होंने अपने गुरु वशिष्ठ व विश्वामित्र के प्रति विनम्रता व सम्मान की गहरी छाप को मूर्त रूप दिया।

रावण का दहन देखने पहुंची हजारों की भीड़

करीब 211 फीट ऊंचा रावण के पुतले का दहन देखने रामलीला ग्राउंड में हजारों की संख्या में लोग पहुंचे। लोगों के यहां पहुंचने का सिलसिला दो बजे से ही शुरू हो गया। पूर्व राष्ट्रपति के आगमन के मद्देनजर सुरक्षा जांच की व्यवस्था के बीच हर तरफ लंबी लंबी कतारें नजर आईं। आज लोगों को मंच पर लीला से जुड़े तमाम प्रसंग की झलक दिखाई गई।

कलाकारों ने अपने सधे अभिनय की सभी पर छाप छोड़ी। जैसे जैसे मंचन अपने अंतिम पड़ाव की ओर पहुंच रहा था, दर्शक जय श्रीराम के नारे लगा रहे थे। उधर पुत्र व भाई को खो चुका रावण अभी भी आत्मसमर्पण करने के बजाय युद्ध को आतुर था। अंत में प्रभु श्रीराम ने कहा कि रावण अगर अभी भी युद्ध चाहता है तो युद्ध ही सही। पहले हनुमान, फिर लक्ष्मण और अंत में प्रभु श्रीराम ने रावण का सामना किया। अंत में प्रभु श्रीराम ने रावण की नाभि पर तीर चलाकर उसका अंत किया।

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