पढ़िए कोरोना काल में अनाथ हुए बाल गोपाल को कैसे आधुनिक 'यशोदा' दे रहीं जीवन
जिस तरह से देवकी से दूर हुए श्रीकृष्ण को मां यशोदा ने अपनी गोद में सहेज लिया था और उन पर वात्सल्य लुटाने लग गईं थीं उसी तरह से जिन बच्चों ने अपनी मांओं को कोरोना काल में गंवाया उनकी मदद करने के लिए बहुत सी महिलाएं सामने आई हैं।
नई दिल्ली, यशा माथुर। Janmashtami 2021 राहुल के पिता नहीं थे। गरीबी में मां किसी तरह से उसका भरण-पोषण कर रही थीं कि उन्हें कोरोना संक्रमण ने आ घेरा। समय पर सही इलाज न मिलने के कारण उन्होंने इस दुनिया को छोड़ दिया। अब मासूम राहुल का इस दुनिया में कोई नहीं था। उसे पता ही नहीं था कि उसकी मां उठ क्यों नहीं रहीं, उससे बात क्यों नहीं कर रहीं? गरीब के लिए न तो पड़ोस से कोई मदद है, न ही पास में कोई नाते-रिश्तेदार। ऐसे में राहुल का जिम्मा कौन लेगा? यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न था जिसके हल के लिए केंद्र व राज्य सरकारें मदद के लिए आगे आई हैं और एक प्रक्रिया के तहत इन्हें संरक्षण प्रदान कर रही हैं।
मानसिक स्वास्थ्य प्रमुख पहलू: जिन बच्चों ने इस महामारी में अपने माता-पिता को खोया है उन बच्चों को खाना-पानी देने के अलावा उनकी मानसिक स्वस्थता को बनाए रखना बेहद जरूरी हो जाता है। मुंबई की मनोचिकित्सक डा. अंजलि छाबरिया इस मुश्किल को सुलझाने में लगी हैं। वह कहती हैं, अनाथ बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य का खयाल रख रहे सरकार के सलाहकारों को हमने प्रशिक्षित किया है। इंडियन साइकेट्रिक सोसाइटी के कई मनोचिकित्सक इस काम से जुड़े हैं और हम इन बच्चों के साथ काम कर उन्हें मानसिक रूप से बिल्कुल ठीक करने की कोशिश कर रहे हैं। इसके साथ ही अगर किसी बच्चे को बाल चिकित्सक या किसी थेरेपी की जरूरत है, वहां भी मदद कर रहे हैं। इसमें महाराष्ट्र सरकार का महिला एवं बाल विकास विभाग अच्छा काम कर रहा है। इससे जुड़े कर्मचारी और अधिकारी बच्चों के पास जाकर उनकी मदद कर रहे हैं।
उठा रहीं पढ़ाई का जिम्मा: स्वयंसेवी संस्थाओं एवं वैयक्तिक प्रयासों के जरिए कोविड महामारी से प्रभावित बच्चों की शिक्षा की जिम्मेदारी संभालने वाली संस्थाओं में से एक हैदराबाद स्थित प्रज्ज्वला संस्था भी है। इसने कई बच्चों की पढ़ाई का पूरा खर्च उठाने का जिम्मा लिया है। ये बच्चे तेलंगाना, गुजरात एवं राजस्थान से हैं। संस्था की संस्थापक सुनीता कृष्णन का कहना है कि कोविड-19 के कारण निराश्रित हुए या अपने किसी एक अभिभावक को खोने वाले बच्चे उनसे संपर्क कर सकते हैं। वह अगले दो वर्ष तक उनकी पढ़ाई का सारा खर्च वहन करेंगी।
मामी बनीं मां: कोरोना महामारी के दौरान जब तीन भाई-बहनों ने अपने माता-पिता दोनों को खो दिया और जब किराया नहीं दे पाने के कारण उनके मकान मालिक ने उन्हें घर से निकाल दिया तो उन्हें उनकी मामी ने अपनी गोद में समेट लिया। बच्चों के मामा ने कहा कि ये मेरी बहन के बच्चे हैं और मैं और मेरी पत्नी इनकी परवरिश करेंगे। कोरोना संक्रमण के कारण जब अपने बच्चों का साथ उनके माता-पिता से छूटा तो शुरुआत में रिश्तेदारों ने जिम्मा लिया, लेकिन बाद में सरकार को सूचना देना भी अनिवार्य था। असीमा भट्ट रंगमंच कलाकार और लेखिका हैं। उन्होंने कोरोनाकाल में अनाथ हुए बच्चों को निजी स्तर पर और स्वयं सहायता समूहों के जरिए इतना सहयोग दिया है कि अनाथ हुए बच्चे उन्हें मां कहने लगे हैं। असीमा कहती हैं कि मेरे कोई संतान नहीं है, लेकिन अब यही बच्चे मुझे मां कहकर पुकारने लगे हैं और अब ये मेरी जिंदगी का अटूट हिस्सा बन गए हैं।
सरकारी मशीनरी से जोड़ा है: केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने एक ट्वीट करके बताया था कि भारत सरकार ने सभी राज्यों से संपर्क करके कोविड-19 की वजह से अपने मां-बाप को खोने वाले बच्चों को जेजे एक्ट के तहत संरक्षण देना सुनिश्चित करने के लिए कहा है। महिला व बाल विकास मंत्रालय ने राज्यों से अपील की है कि वे बाल कल्याण समितियों के जरिए जरूरतमंद बच्चों के बारे में सक्रिय रूप से पता करते रहें साथ ही समितियों को काम पर भी लगाएं। प्रमुख संस्थाओं की जिम्मेदार महिलाएं भी कुछ ऐसा ही चाहती हैं। प्रोत्साहन इंडिया फाउंडेशन की संस्थापक निदेशक सोनल कपूर कहती हैं, पहले जरूरतमंद बच्चों की पहचान करने, उनकी बात सुनने और समझने के साथ ही अंत में उन्हें सरकारी मशीनरी एवं योजनाओं से जोडऩे की कोशिश करना है। फिलहाल, संगठन की ओर से पीडि़त परिवारों व बच्चों को राशन एवं प्रोटीन युक्त खाद्य सामग्री उपलब्ध कराई जा रही है। यही नहीं उन्हें मानसिक तकलीफ से उबारने के लिए सत्र भी आयोजित किए जा रहे हैं।
गोद लेने के लिए हैं नियम: गुरुग्राम के बड फाउंडेशन की संस्थापक दिव्या वैष्णव ने बताया कि थोड़े दिन के लिए देखभाल करना ठीक है। रिश्तेदार कुछ समय के लिए देख लें तो ठीक हैं, लेकिन स्थायी देखभाल करने के लिए बच्चे को जिले में बाल कल्याण समिति (सीडब्ल्यूसी) को सूचित करना होगा। गोद लेने की प्रक्रिया सेंट्रल एडाप्शन रिसर्च एजेंसी (कारा) के द्वारा ही होगी। इसकी वेबसाइट पर सारे नियम स्पष्ट रूप से अंकित हैं। कोई भी संस्था काम कर रही हो उसे भी पास के पुलिस थाने या चाइल्ड हेल्पलाइन (1098) या बाल कल्याण समिति को सूचना देनी होगी। वे ही अंतिम निर्णय लेंगे साथ ही बच्चे की उम्र और विशेष जरूरतों के मुताबिक उसकी व्यवस्था की जाएगी। बाल कल्याण समिति उचित जांच-परख के बाद किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल व संरक्षण) अधिनियम (जेजे एक्ट) के तहत बच्चे को शेल्टर होम भेजेगी। अगर कोई रिश्तेदार बच्चे को ले जाना चाहे तो उन्हेंं सोशल इनवेस्टिगेटिंग रिपोर्ट देनी होती है। हम भी ऐसा बच्चा मिलने पर चाइल्ड हेल्पलाइन को सूचित कर देते हैं।
[इनपुट: अंशु सिंह]