Kachre Se Azadi: जैव अपशिष्ट का सुरक्षित निस्तारण कैसे किया जाए, EPCA सदस्य ने बताया तरीका
Kachre Se Azadi जैव अपशिष्ट के सुरक्षित निस्तारण के लिए जरूरी है कि इसका पृथक्करण सही ढंग से किया जाए।
By Mangal YadavEdited By: Updated: Wed, 12 Aug 2020 01:42 PM (IST)
नई दिल्ली। अभी तक हम गीला कचरा अलग, सूखा कचरा अलग के नियमों को पूरी तरह आत्मसात कर भी नहीं पाए थे कि अब कोरोना काल में जैविक चिकित्सीय अपशिष्ट ने नई चुनौतियों को जन्म दे दिया है। आलम यह है कि दिल्ली-एनसीआर में जितनी तेजी से संक्रमित मरीजों की संख्या बढ़ रही है उतनी ही तेजी से जैविक अपशिष्ट में भी इजाफा हुआ है। स्थिति का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि मई महीने की तुलना में अपशिष्ट 14 गुना तक बढ़ गया है। जैविक अपशिष्टं के निस्तारण के लिए शहर में दो कंपनी एसएमएस वाटर ग्रेस प्राइवेट लिमिटेड और बायोटिक वेस्ट सॉल्यूशन लिमिटेड हैं, जो प्रतिदिन क्रमश: 24 टन और 50 टन कचरे का निदान कर सकते हैं।
दक्षिणी दिल्ली नगर निगम और उत्तरी दिल्ली नगर निगम पर होम क्वारंटाइन में रह रहे मरीजों के घरों से कोविड-19 जैविक अपशिष्ट एकत्रित करने की जिम्मेदारी है। वे इस अपशिष्ट को बिजली बनाने वाले संयंत्रों में भेज रहे हैं, जिनमें इन्हें जलाने की क्षमता है।
हर स्तर पर लापरवाही
जैव अपशिष्ट के सुरक्षित निस्तारण के लिए जरूरी है कि इसका पृथक्करण सही ढंग से किया जाए। पीपीई किट, मास्क, दस्ताने इत्यादि को पीले रंग के बैग में एकत्र कर अस्पतालों के इंसीनरेटर में जलाने के लिए भेजा जाना चाहिए। खाने पीने के सामान को सामान्य कचरे में शामिल किया जाना चाहिए क्योंकि इसके निस्तारण की पहले से व्यवस्था है। लेकिन अफसोस कि ऐसा हो नहीं पा रहा है। इस लापरवाही के लिए कोई एक पक्ष जिम्मेदार नहीं है। अपशिष्ट के सही निस्तारण में अस्पतालों के स्तर पर भी लापरवाही हो रही है और स्थानीय निकायों के स्तर पर भी। दोनों तरह के अपशिष्ट को मिलाकर इन्हें ही आगे निस्तारण के लिए भेजा जा रहा है। नतीजा, बमुश्किल 74 टन जैविक अपशिष्ट का ही निस्तारण हो पा रहा है।
गंभीरतापूर्वक हो रिपोर्ट का क्रियान्वयन
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) द्वारा साझा किए गए आंकड़ों पर आधारित एक रिपोर्ट, जिसे सुप्रीम कोर्ट में भी दिया गया है, उसमें कहा गया है कि नगर निगमों को यह सुनिश्चित करने के लिए निर्देशित किया जाना चाहिए कि वे घरों के कचरे के पृथक्करण के बारे में लोगों को शिक्षित करें और जैविक अपशिष्ट को निस्तारण के लिए सिर्फ उचित स्थान पर ही भेजें। ऐसा करने पर ही इस जैविक अपशिष्ट का सुरक्षित निस्तारण संभव हो पाएगा। वरना लापरवाही से समस्या बढ़ती ही जाएगी।
पर्यावरण प्रदूषण रोकथाम व नियंत्रण प्राधिकरण (ईपीसीए) ने भी इस मामले में सुझाव दिया है कि सभी नगर निगमों और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डो को निर्देश दिए जाएं कि वे जैविक अपशिष्ट का पता लगाने के लिए सीपीसीबी द्वारा विकसित कोविड-19 बीडब्ल्यूएम मोबाइल एप्लिकेशन का उपयोग करें। ईपीसीए की रिपोर्ट में हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और दिल्ली के प्रदूषण नियंत्रण बोर्डो को दिशा-निर्देश दिए जाने का भी जिक्र है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सभी सामान्य सुविधाओं के संयंत्रों में ऑनलाइन सतत उत्सर्जन निगरानी प्रणाली (ओसीईएमएस) स्थापित हो और इससे प्राप्त डाटा राज्य बोर्ड और सीपीसीबी की वेबसाइट दोनों पर प्रसारित हो।
इस रिपोर्ट पर सुप्रीम कोर्ट ने भी राज्य सरकारों, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड या समितियों और स्थानीय निकायों को कुछ सख्त निर्देश जारी किए हैं। जरूरी है उन पर ईमानदारी और गंभीरता से क्रियान्वयन हो। सामूहिक सहयोग से ही इस समस्या का कोई ठोस और स्थायी समाधान निकल सकता है।(पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण एवं संरक्षण प्राधिकरण (ईपीसीए) की सदस्य सुनीता नारायण से संवाददाता संजीव गुप्ता से बातचीत पर आधारित।)
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