Khelo India Para Games: बचपन से पोलियोग्रस्त थे दोनों पैर, जज्बे से ऊंचाई छू रहे दिल्ली के सुधीर
साल 2018 में 12वीं तक पढ़ाई करने के बाद वह एक आटा चक्की में काम करते थे। वहां मन न लगने की वजह से उन्होंने खेलों में आने का मन बनाया। उनका बड़ा भाई राजेंदर सिंह 800 मीटर में दौड़ लगाता था और स्पोर्ट्स में सेना में नौकरी करता है। जिसको देखकर उन्होंने भी खेल में जमकर मेहनत करनी शुरू कर दी थी।
By Nikhil PathakEdited By: Abhishek TiwariUpdated: Sun, 17 Dec 2023 11:08 AM (IST)
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। जिंदगी के सफर में जीत उन्हीं की होती है, जो चुनौतियों से घबराकर बढ़ना नहीं छोड़ते। ऐसी ही एक कहानी राजधानी के डिस्कस थ्रोअर सुधीर की है। उनके दोनों पैर बचपन से ही पोलियोग्रस्त थे।
पांच वर्ष पहले खेलों में आए सुधीर को कैंसर ने अपनी चपेट में ले लिया था। इस कारण इसी वर्ष मार्च माह में एम्स अस्पताल में कैंसरग्रस्त उनका दाहिना पैर काटना पड़ा। इसके बावजूद उनका जज्बा कम नहीं हुआ।
खेलो इंडिया पैरा गेम्स में पदक से चूके
पैर कटने के नौ महीने बाद सुधीर ने मैदान में वापसी की और खेलो इंडिया पैरा गेम्स में डिस्कस थ्रो की एफ-55 वर्ग में 29.79 मीटर के थ्रो के साथ चौथे स्थान पर रहे, लेकिन यह उनके निराश होने का नहीं बल्कि खुशी मनाने का वक्त था क्योंकि कैंसर को हराकर नई जिंदगी पाने के बाद वह मैदान में लौटे हैं। अपने प्रदर्शन पर सुधीर ने कहा कि उन्हें किसी पदक नहीं जीत पाने का कोई गम नहीं है। जिंदा हूं और खेल रहा हूं यह मेरे लिए खुशी की बात है।सुधीर ने साल 2021 में ओडिशा में आयोजित पैरा नेशनल्स में डिस्क्स थ्रो में 32.04 मीटर के साथ रजत पदक जीता था। इसी खेल में उन्होंने जेवलिन थ्रो में भी 23.98 मीटर के साथ कांस्य पदक जीता था। इसके बाद वर्ष 2022 में बेंगलुरू में आयोजित पैरा नेशनल्स में सर्जरी से ठीक पहले उन्होंने डिस्क्स थ्रो में कांस्य पदक जीता था।
इटली में डिस्कस थ्रो में जीता था रजत पदक
वह इटली में साल 2022 में आयोजित ग्रां प्री में भी डिस्कस थ्रो में ही रजत पदक जीता था। वह अपने कोच डॉ. सतपाल की देखरेख में अभ्यास करते हैं। सुधीर ने बताया कि बचपन से दोनों पैरों में दिक्कत होने के कारण पढ़ाई या अन्य कोई काम नहीं कर सका। फिर खेलों का रुख किया। मेरे पास मेरा खेल है, कोच है, दोस्त हैं, जो मेरी जिंदगी में ताकत हैं। उनके पिता एक किसान हैं।साल 2018 में 12वीं तक पढ़ाई करने के बाद वह एक आटा चक्की में काम करते थे। वहां मन न लगने की वजह से उन्होंने खेलों में आने का मन बनाया। उनका बड़ा भाई राजेंदर सिंह 800 मीटर में दौड़ लगाता था और स्पोर्ट्स में सेना में नौकरी करता है। जिसको देखकर उन्होंने भी खेल में जमकर मेहनत करनी शुरू कर दी थी।
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