Exclusive: आबोहवा को नुकसान पहुंचा रहे पेड़ों की खैर नहीं, सरकार ने उठाया बड़ा कदम
दिल्ली-एनसीआर सहित देशभर में आबोहवा को नुकसान पहुंचा रहे विलायती कीकर सहित अन्य हानिकारक विदेशी पेड़-पौधों की अब खैर नहीं है। इन पौधों से छुटकारा पाने की दिशा में केंद्र सरकार ने हाल ही में एक विशेष कमेटी का गठन किया है।
By Mangal YadavEdited By: Updated: Fri, 06 Aug 2021 08:56 AM (IST)
नई दिल्ली [संजीव गुप्ता]। दिल्ली-एनसीआर सहित देशभर में आबोहवा को नुकसान पहुंचा रहे विलायती कीकर सहित अन्य हानिकारक विदेशी पेड़-पौधों की अब खैर नहीं है। इन पौधों से छुटकारा पाने की दिशा में केंद्र सरकार ने हाल ही में एक विशेष कमेटी का गठन किया है। यह कमेटी अपनी रिपोर्ट में इन सभी हानिकारक पेड़-पौधों से वनस्पति और जलवायु बचाने के लिए रिपोर्ट और कार्ययोजना दोनों तैयार करेगी।
केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रलय द्वारा गठित इस छह सदस्यीय कमेटी का अध्यक्ष वन महानिदेशक, भारत सरकार को बनाया गया है, जबकि उप महानिरीक्षक (वन एवं वन्य जीव) राकेश कुमार जगनिया कमेटी के सदस्य सचिव बनाए गए हैं। कमेटी के अन्य सदस्यों में एक सेवानिवृत्त वन अधिकारी और दो आला अधिकारियों के साथ-साथ राजधानी के मशहूर वनस्पति विज्ञानी प्रो. सीआर बाबू को भी सदस्य रखा गया है।सदस्य सचिव की ओर से कमेटी की अधिसूचना भी जारी कर दी गई है। इस अधिसूचना में कमेटी के गठन का उद्देश्य विदेशी एवं आक्रामक प्रजाति के पेड़-पौधों के प्रबंधन के निमित्त राष्ट्रीय नीति एवं कार्ययोजना तैयार करना बताया गया है।
जल व जमीन ही नहीं जानवरों का भी दुश्मन है विलायती कीकरविलायती कीकर धरती और जल का ही नहीं बल्कि इंसान और बेजुबानों जानवरों का भी बड़ा दुश्मन है। एनसीआर में बहुतायात में मिलने के कारण यह आबोहवा में ही घुलकर दिल्लीवासियों को श्वास और एलर्जी सरीखी बीमारियों का शिकार बना रहा है। यह और इसी प्रजाति के अन्य पेड़- पौधे इलेलोपैथी नाम का रसायन छोड़ते हैं। यह रसायन आसपास किसी अन्य वनस्पति के पेड़-पौधे को पनपने ही नहीं देते। इस रसायन से जमीन की उर्वरक क्षमता भी प्रभावित होती है और भूजल का स्तर भी नीचे चला जाता है।
कीकर कई रोगों के लिए है रामबाण इलाज हिमाचल में बबूल को कीकर कहा जाता है। इसका वानस्पतिक नाम अकेशिया निलोटिका है। इसके पत्ते, बीज व छाल में औषधीय गुण होते हैं। इसमें पीले फूल लगते हैं। मटर के आकार की फली के दाने विभिन्न असाध्य रोगों के लिए रामबाण हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार इस पौधे में भगवान विष्णु का निवास माना जाता है।प्राचीन समय में इसकी पूजा होती थी। हिमालयन जड़ी-बूटी उत्पादन एवं संरक्षण परिषद के राज्य महासचिव सीता राम ने बताया कि जिन लोगों को कीकर के गुणों की जानकारी है, वे इसकी लकड़ी की दातुन भी करते हैं, जो दांतों के लिए बहुत लाभ देती है। किसी अंग में जलन होने पर इसकी छाल का काढ़ा मिश्री के साथ पीने से राहत मिलती है। पत्तों को पीसकर घाव पर लगाने से घाव ठीक हो जाता है। कीकर के पत्ते तथा छाल का चूर्ण शहद में मिलाकर सेवन करने से खांसी में लाभ होता है। इसके कोमल पत्तों को गाय के दूध में पीस कर रस की बूंदें आंखों में डालने से आंखों का दर्द ठीक होता है। इससे आंखों की सूजन में भी लाभ होता है।
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