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Delhi: मुगल बादशाह शाहजहां इस मीनार पर खड़े होकर करते थे शिकार की तलाश

Hastsal minar दिल्ली में मीनार का जिक्र होते ही हर किसी के जुबां पर महरौली स्थित कुतुब मीनार का ही ख्याल आता है

By Mangal YadavEdited By: Updated: Fri, 11 Sep 2020 03:00 PM (IST)
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Delhi: मुगल बादशाह शाहजहां इस मीनार पर खड़े होकर करते थे शिकार की तलाश

नई दिल्ली [गौतम कुमार मिश्रा]। दिल्ली में मीनार का जिक्र होते ही हर किसी के जुबां पर महरौली स्थित कुतुब मीनार का ही ख्याल आता है। लेकिन आप यह जानकर हैरान रह जाएंगे कि दिल्ली के हस्तसाल गांव में कुतुब मीनार जैसी ही नजर आने वाली एक और मीनार है। देखने में यह मीनार कुतुब मीनार की जुड़वां बहन जैसी लगती है। कुतुब मीनार की उम्र करीब 800 वर्ष होने को है वहीं हस्तसाल मीनार की उम्र करीब 370 वर्ष है। भले ही दोनों की उम्र में 430 वर्षों का फासला है लेकिन छोटी होने के बावजूद कुतुब मीनार की तुलना में इसकी हालत बदहाल नजर आती है। लेकिन आज भले ही यह मीनार बदहाल हो लेकिन इसका अतीत बड़ा शानदार है।

इस मीनार की उपरी मंजिलों पर खड़े होकर मुगल बादशाह शाहजहां शिकार की तलाश करते थे। उनके सैनिक यहां खड़े होकर शाही हाथियों पर नजर रखते थे। वक्त के थपेड़ों को सहती यह मीनार अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ती नजर आती है। आलम यह है कि अब पांच मंजिलों में इसकी केवल ढाइ मंजिलें शेष हैं। ऐसा लगता है मानों यह आज की पीढ़ी से यह अपील कर रही है कि महरौली वाली बड़ी बहन के समान ही मेरी भी देखभाल हो।

लाल पत्थर से बनी है मीनार

मुगल बादशाह शाहजहां के कार्यकाल में वर्ष 1650 में यह मीनार बनकर तैयार हुआ। कुतुब मीनार की तर्ज पर लाल पत्थर से बने इस मीनार को देखकर लोग कभी कभी भ्रम के शिकार हो जाते हैं। इसकी दीवारों पर महीन नक्काशी की गई है। ऊपर जाने के लिए मीनार के अंदर से सीढ़ियां हैं। यहां आने वाले लोगों को लगता है, वे मानों कुतुब मीनार की जुड़वां प्रतिकृति देख रहे हों।

शाही हाथियों पर यहां से रखी जाती थी नजर

कभी इस इलाके में बड़े-बड़े तालाब हुआ करते थे। मुगल काल में इन तालाबों में शाही हाथियों का झुंड घंटों मस्ती करता था। सैनिक इन हाथियों पर दूर से नजर रख सकें इसके लिए बकायदा एक मीनार बनाई गई। मीनार के पास से ही साहिबी नदी गुजरती थी। आज का नजफगढ़ नाला कभी साहिबी नदी तंत्र का एक हिस्सा हुआ करता था। हस्तसाल गांव के पास साहिबी का डूब क्षेत्र हुआ करता था। गांव में कई जोहड़ (तालाब) हुआ करते थे। पानी में चौड़ी पत्तीवाले पटेरा घास होते थे। हाथी इन्हें बड़े चाव से खाते थे। इस जगह की इसी खासियत के कारण यहां शाही हाथियों को लाया जाता था। इस मीनार की उपरी मंजिलों पर खड़े होकर सैनिक हाथियों पर नजर रखते थे।

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