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कठिन ट्रेनिंग की बदौलत ही हर युद्ध में दुश्मनों को दी शिकस्त

देश के लिए इन तीनों बड़ी जंग में वीरता के साथ लड़ने वाले सूबे सिंह को तीनों बार मेडल मिला। पत्नी ने बढ़ाया हौसला सूबे सिंह के युद्ध में जाते समय पत्नी रिसालो देवी उनका हौसला बढ़ाती थीं।

By Edited By: Updated: Tue, 31 Jul 2018 01:49 PM (IST)
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कठिन ट्रेनिंग की बदौलत ही हर युद्ध में दुश्मनों को दी शिकस्त

नई दिल्ली (संजय बर्मन)। देश की रक्षा के लिए अपनी कुर्बानी भी देनी पड़े तो भी कोई गम नहीं। रणभूमि में दुश्मनों के नापाक इरादों को चकनाचूर करना ही मेरा उद्देश्य रहा है। यह कहना है 1962, 65 और 71 की जंग लड़ने वाले सूबे सिंह का। उम्र 78 साल हो चुकी है, लेकिन युद्ध का जिक्र आते ही भुजाएं फड़कने लगती हैं। आंखें अर्जुन की तरह जैसे लक्ष्य को देखने लगती हैं। उम्र के इस पड़ाव में याददाश्त थोड़ी कमजोर तो हो गई है, लेकिन जाट रेजीमेंट में रहते हुए लड़े गए हर युद्ध की एक-एक बातें उन्हें याद हैं।

वाजितपुर ठाकरान के रहने वाले सूबे सिंह गरीब परिवार से थे। बचपन से ही उनका सपना देश की सेवा करना था। वह आर्मी में सिपाही के पद पर भर्ती हुए। सूबे सिंह कहते हैं कि आर्मी की ट्रेनिंग काफी कठिन होती है। उसी कठिन ट्रेनिंग की बदौलत मैं और मेरी रेजीमेंट हर युद्ध में दुश्मनों को मुंहतोड़ जवाब देने में सफल हुए।

सूबे सिंह बताते हैं कि 1962 की जंग में असम के तेजपुर क्षेत्र में 4 जाट रेजीमेंट के साथ लड़ रहा था। चीनी सेना पहाड़ी क्षेत्र से हमला कर रही थी। हमें उनकी सही स्थिति की जानकारी नहीं थी। भारतीय जांबाज उसी दिशा में जा रहे थे, जिस दिशा में गोलीबारी हो रही थी। हमें लगातार 15 दिन तक भोजन और पानी उपलब्ध नहीं हुआ।

इस दौरान हम सभी पेड़-पौधे के पत्ते खा रहे थे और गंदा व तैलीय पानी पी रहे थे। इसके बावजूद हमारा जज्बा कम नहीं हुआ था। हमारे अंदर जंग जीतने का जुनून था। थोड़ी देर की खामोशी के बाद सूबे सिंह 1965 की जंग के बारे में बताने लगते हैं। कहते हैं, बाघा बॉर्डर पर लड़ते समय पूरी रेजीमेंट पाकिस्तानी सेना पर हावी रही। भारी बमबारी हो रही थी। हमने पाकिस्तानी सेना को 15वें दिन खदेड़ने पर मजबूर कर दिया था। उनका पीछा करते हुए हमारी सेना के जांबाज लाहौर के नजदीक तक पहुंच गए थे।

पाकिस्तानी सेना द्वारा नदी में करंट छोड़ने के कारण सेना हमारे जांबाज वहीं रुक गए। 1971 की थी सबसे मुश्किल जंग सूबे सिंह का मानना है कि सबसे मुश्किल जंग 1971 की थी। जम्मू-कश्मीर के छंब इलाके में जितने दिन भी लड़ाई हुई उतने दिन भारी बमबारी हुई। टैंक गरज रहे थे गोले बरस रहे थे। भारत और पाकिस्तान दोनों देशों की वायुसेना काफी बमबारी कर रही थीं। दिन में ही अंधेरा छा जाता था। उस माहौल में भी उन्होंने बहादुरी से लड़ते हुए कई पाकिस्तानी सैनिकों को मौत के घाट उतारा।

आखिरकार 14 दिनों तक लड़ने के बाद हमने जंग जीत ली। देश के लिए इन तीनों बड़ी जंग में वीरता के साथ लड़ने वाले सूबे सिंह को तीनों बार मेडल मिला। पत्नी ने बढ़ाया हौसला सूबे सिंह के युद्ध में जाते समय पत्नी रिसालो देवी उनका हौसला बढ़ाती थीं। वह कहती हैं कि 71 की लड़ाई में जाने से पहले उनकी आंखों से आंसू नहीं निकले। उन्होंने देश की रक्षा करने के लिए उन्हें वीरता के साथ लड़ने के लिए कहा, चाहे इसमें उन्हें अपनी कुर्बानी ही क्यों न देनी पड़े।

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