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जानिए कैसे छोले-भटूरों के साथ जुड़ा पहाड़गंज का नाम, पढ़िए रोचक स्‍टोरी

सबसे पुरानी दुकानों में से एक राधे श्याम के संचालक सुभाष कुमार अग्रवाल ने बताया कि वर्ष 1958 में उनके पिता राधे श्याम ने पहाड़गंज की गलियों में सिर पर खाने की पोठली में रखकर छोले भठूरे बचने की शुरूआत की थी।

By Prateek KumarEdited By: Updated: Sat, 28 Nov 2020 06:44 PM (IST)
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पहाड़गंज की एक पहचान बने छोले भूटूरों की 100 से अधिक दुकानों से हैं।
नई दिल्ली, राहुल सिंह। राजधानी दिल्ली की एक पहचान यहां के व्यंजन भी हैं। अगर आप खाने पीने के शौकीन है तो दिल्ली के छोले भठूरों का स्वाद जरूर लिया होगा, लेकिन क्या आप जानते हैं कि पहाड़गंज से ही दिल्ली में छोले-भटूरों की शुरूआत हुई। जो धीरे देश-विदेश में खाने का एक नया चटकारे वाला व्यंजन बनकर तैयार हुआ। जिसे खाने के लिए दूरदराज से लोग आज भी बड़ी संख्या में पहाड़गंज पहुंचते हैं। यहां आज भी 100 से अधिक छोटी बड़ी छोले-भटूरों की दुकानें हैं, जो करीब 60 से 65 साल से अपना स्वाद लोगों को चखा रही हैं। पहाड़गंज में सबसे पुरानी दुकानों की बात करें तो वह सीता राम और राधे श्याम की दुकान हैं, जहां आज भी सुबह सात बजे से लेकर शाम तक लोगों की कतार भटूरे खाने के लिए लगी रहती हैं।

सिर पर रखकर बेचे थे भटूूरे

सबसे पुरानी दुकानों में से एक राधे श्याम के संचालक सुभाष कुमार अग्रवाल ने बताया कि वर्ष 1958 में उनके पिता राधे श्याम ने पहाड़गंज की गलियों में सिर पर खाने की पोठली में रखकर छोले-भटूरे बचने की शुरुआत की थी। इसके बाद उन्होंने 1962 में साइकिल खरीदी और उस पर रखकर छोले भटूरे बेचे। सुभाष ने बताया कि उनके पिता के साथ सीता राम की दुकान के तत्कालीन संचालक ने भी पहाड़गंज के इनपेयर सिनेमा पर रेहड़ी लगाकर भटॅूरे बेचने की शुरूआत की थी। इसके बाद उनके पिता रेलवे स्टेशन के पास आ गए और इमरजेंसी के समय उन्हें गली में भेज दिया गया, जहां 1978 में उन्होंने यहां एक दुकान खरीदी थी, जो अब तीन हो गई हैं।

90 आने से शुरू हुई प्लेट आज 70 रुपये पर पहुंची

सुभाष ने बताया कि उनकी दुकान करीब 60 साल पुरानी हैं, जिसके चलते लगातार रेट बदलता रहा है। उन्होंने बताया कि शुरुआत में एक प्लेट का रेट करीब 90 आने हुआ करता था, जो धीरे-धीरे बढ़ते हुए आज 70 रुपये पर आ गया है। उन्होंने कहा कि पिता की मौत के बाद भी उन्होंने आज भी अपने स्वाद को बरकरार रखा है। इसके चलते आज भी उनकी दुकान पर सुबह से ही लोगों की लाइन लगनी शुरू हो जाती हैं। उन्होंने कहा कि उनके पिता पहले भटूरों में आलू का मसाला भरते थे, लेकिन इसके बाद सभी ने इसका प्रयोग करना शुरू कर दिया। इसके बाद अब उन्होंने भटूूरों के अंदर पनीर भरना शुरू कर दिया है।

रेल यात्रियों की पहली पसंद बनते हैं छोले भठूरे

पहाड़गंज की एक पहचान बने छोले-भटूरों की 100 से अधिक दुकानों से हजारों रेल यात्री आज भी आकर यही से भोजन करते हैं और पैक कराकर अपने सफर के दौरान भी इसका प्रयोग करते हैं। छोले भटूरों की दुकान संचालक गणेश अग्रवाल ने कहा कि यात्रियों की वजह से विशेष पैकिंग की जाती है। इसके चलते 24 घंटे तक छोले और भटूरे खराब नहीं होते हैं और सफर के दौरान लोगों का सहारा बनते हैं। वहीं, कोरोना संक्रमण में पैकिंग को विशेष खयाल रखा जाता है। एक दुकानकार राजीव कुमार ने कहा कि पहाड़गंज की हर दुकान के स्वाद में अपना असर हैं, जिसके चलते ग्राहक हमेशा दुकान तक पहुंचता है।

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